समालोचन-कविता-डूबते हरसूद पर पिकनिक

Started by Atul Kaviraje, November 12, 2022, 10:12:36 PM

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Atul Kaviraje

                                      "समालोचन"
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मित्रो,

     आज पढते है, "समालोचन" इस ब्लॉग की एक कविता. इस कविता का शीर्षक है- "डूबते हरसूद पर पिकनिक"

     निरंजन इस अर्थ में हिंदी के महत्वपूर्ण कवि हैं कि उनके यहाँ घर-बाहर की अछूती स्मृतियाँ, अनछुए अनुभव की ताज़गी लिए आती हैं. यह ऐसा क्षेत्र है जो मुख्य धारा की हिंदी कविता में सिरे से गायब है. घर-गृहस्ती में प्रेम के साथ भी बहुत चीजें होती हैं जैसे कि टेलीफोन का बिल, टॉवेल या फिर इस गृहस्ती के पहिये की धुरी में फँसी हुई ऊँगली से रिसता हुआ लहू. जहां कविता की संभावना नहीं होती अमूमन निरजंन वही से अन्वेषित करते हैं कविता. उनकी कविताओं की सुगन्ध 'आचार की बरनी' से बाहर आती है-खट्टी-मीठी.

     ये कविताएँ बाहर के चीख-पुकार से जब कभी घर लौटती हैं, उनमें घर का विश्वास और उन्ही के शब्दों में कहें तो 'मध्य वर्ग का भरोसा' मिलता है.

                                डूबते हरसूद पर पिकनिक--
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जब तक ज़िन्दा था
भले ही उपेक्षित रहा हो
मगर इन दिनों चर्चा
और आकर्षण का केन्द्र है हरसूद

जुट रही तमाशबीनों की भीड़
कैसा लगेगा यह शहर जलमग्न होकर
हरसूद एक नाव नहीं थी जिसमें कर दिया गया हो कोई छेद
जीता-जागता शहर था
जिसकी एक-एक ईंट को तोड़ा उन्हीं हाथों ने
जिन्होंने बनाया था कभी पाई -पाई जोड़ कर

फैला है एक हज़ार मेगावाट का अँधेरा
जलराशि का एक बेशर्म क़फन बनकर
जिसके नीचे दबी हुई है सिसकियां और स्वप्न

                   किलकारियां और लोरियां
                   ढोलक की थाप और थिरकती पदचाप
                   नोंकझोंक और मान-मनौवल

यह कैसा दौर है!
तलाशा जाता है एक मृत सभ्यता को खोद-खोद कर
मोहनजोदड़ो, हड़प्पा और भीमबेटका में
और एक जीवित सभ्यता
देखते-ही-देखते
अतल गहराईयों में डुबो दी जाती है.

कभी गये हों या न गये हों
फिलहाल आप सभी आमंत्रित हैं
देखने को एक समूचा शहर डूबते हुए
सुनने को एक चीत्कार जल से झांकते
शिखर और मीनारों की....!

अभी ठहरें कुछ दिन और
फिर नर्मदा में नौकाविहार करते समय
बताएगा खिवैया

--बाबूजी, इस बखत जहाँ चल रही है अपनी नाव
उसके नीचे एक शहर बसता था कभी-हरसूद !

--निरंजन श्रोत्रिय
(दिसंबर 31, 2010)
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                (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-समालोचन.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-12.11.2022-शनिवार.