साहित्यशिल्पी-बदलते परिदृश्य में हिंदी भाषा की स्वीकार्यता–क्रमांक-3-ब

Started by Atul Kaviraje, November 17, 2022, 09:21:49 PM

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Atul Kaviraje

                                      "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "बदलते परिदृश्य में हिंदी भाषा की स्वीकार्यता - [आलेख]" 

      बदलते परिदृश्य में हिंदी भाषा की स्वीकार्यता - [आलेख] – क्रमांक-3-ब-
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     परिचालन, भूमंडलीकरण, विनियमन और सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के सहारे यह क्षेत्र निरंतर प्रगति कर रहा है। हिंदी में तकनीकी प्रगति के साथ आय के नए तरीके भी सामने आ रहे है। हाल ही में हैदराबाद के गुगल ऑफिस में `गुगल ब्लागर्स' की एक मिटिंग हुई। इस मिटिंग से आये `टेक्नो स्पॉट डॉट नेट' के ओनर श्रीमान आशीष मेहतो एवम मानव मिश्र ने बताया कि सिर्फ गूगल के हिंदी ब्लागर्स की सालाना आय करोड़ों में होगी। सामान्य रूप से हर ब्लाग्स का ओनर जो महिने में 30 से 35 घंटे के लिए देखा जाता है वह 25 से 200 डालर तक कमायी कर सकता है। इसतरह स्पष्ट है कि तकनीकी विकास से हिंदी भाषा का विकास राष्ट्र का विकास और रोजगार के नए स्वरूपों का परिचायक है। भारत और हिंदी के विकास के लिए शासन और समाज को हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति मित्रवत होना होगा ताकि जल्द से जल्द भारतीयों को यह एहसास हो कि आर्थिक और राजनीतिक सफलता के लिए अंग्रेजी आवश्यक नहीं है। वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार हिंदी, 2050 तक अधिकांश व्यावसायिक दुनिया पर हावी रहेगी, इसके बाद स्पेनिश, पुर्तगाली, अरबी और रूसी। यदि आप अपनी भाषा पाठ्यक्रम से अधिक पैसा प्राप्त करना चाहते हैं, तो ऊपर सूचीबद्ध भाषाओं में से एक का अध्ययन करना शायद एक सुरक्षित शर्त है।

     केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों की पहल के साथ , कई सामाजिक एवं साहित्यिक संस्थाएं हिंदी को एक लिंक भाषा के रूप में प्रसार के लिए काम कर रहे हैं। हिंदी भाषी आबादी का बड़ा भाग विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के लिए एक आकर्षक बाजार बनाता है, और इस बाजार का लाभ उठाने के लिए लोगों को भाषा से परिचित होने की जरुरत है। इस तरह की भूमिका के लिए किसी भी भारतीय भाषा से लगभग कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होने के कारण, देश के एक बड़े हिस्से पर एक लिंगुआ फ्रैंका के रूप में हिंदी की पहले से मौजूद स्थिति, उन लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनती जा रही है जो अपने क्षेत्र के बाहर रोजगार के अवसर तलाशते हैं।कई स्वैच्छिक एजेंसियां हिंदी के ज्ञान को फैलाने में व्यस्त हैं और फिल्मों और रेडियो एवं सोशल मीडिआ के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से उनके कार्य में सहायता मिलती है। हमें हिंदी भाषा के अस्‍तित्‍व को बनाये रखना है तो सबसे पहले सैकड़ों बोलियों जैसे – बुंदेलखंडी, भोजपुरी, गढ़वाली, अवधी, मागधी आदि की रक्षा करनी होगी। ऐसी क्षेत्रीय बोलियां ही हिंदी की प्राणवायु हैं। आज हिंदी का ज्ञान गैर-हिंदी क्षेत्रों में फैल रहा है और देश में सार्वभौमिक लिंगुआ फ़्रैंका के रूप में हिंदी के उद्भव का सूर्य चमक रहा है।

--सुशील शर्मा
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-17.11.2022-गुरुवार.