साहित्यशिल्पी-जैन धर्म में संथारा अर्थात संलेखना-2-ब

Started by Atul Kaviraje, November 19, 2022, 09:39:21 PM

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Atul Kaviraje

                                    "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख.

मुनिश्री सुमेरमलजी का चैविहार संथारे में देवलोकगमन मृत्यु को महोत्सव बनाने का विलक्षण उपक्रम है संथारा [आलेख] - ललित गर्ग--2--ब
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     जो मरण ज्ञानपूर्वक होता है वह सुखद एवं भव भ्रमण विनाशक होता है। प्रत्येक जीव मरण समय में होने वाले दुःखों से भयभीत है, मरण से नहीं। अपने मरण को सुखद और स्वाधीन करने के लिए मरण संबंधी ज्ञान होना आवश्यक है। मरण का ज्ञान अर्थात् संलेखना मरण/समाधिमरण करने का ज्ञान होना आवश्यक है। मनुष्य जीवन का सर्वोत्कृष्ट महोत्सव मृत्यु है। आत्मकल्याण करने के लिए संलेखना धारण कर अपनी मृत्यु का महोत्सव मनाना जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि हो सकती है। मनुष्य को जीवन में राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक आदि विविध प्रकार के उत्सव मनाने का अवसर प्राप्त होता है। प्रत्येक उत्सव का अपनी-अपनी जगह महत्व है। उनके महत्व का कारण उनमें अनेक विशेषताएं हैं। विशेष समय पर आते हैं, अनेक बार मनाने का अवसर प्राप्त होता है किन्तु मृत्यु महोत्सव जीवन के अंत में एक बार ही मनाने का अवसर प्राप्त होता है। संसार में जीवों को जन्म-जरा-मृत्यु से मुक्त कराने वाला उत्सव ही सर्वोत्कृष्ट उत्सव है। इसलिए जैनाचार्यों ने मृत्यु को महोत्सव कहा है। जैन धर्म के मृत्यु महोत्सव एवं कलात्मक मृत्यु को समझना न केवल जैन धर्मावलम्बियों के लिये बल्कि आम जनता के लिये उपयोगी है। यह समझना भूल है कि संथारा लेने वाले व्यक्ति का अन्न-जल जानबूझकर या जबरदस्ती बंद करा दिया जाता है। संथारा स्व-प्रेरणा से लिया गया निर्णय है। जैन धर्म-दर्शन-शास्त्रों के विद्वानों का मानना है कि आज के दौर की तरह वेंटिलेटर पर दुनिया से दूर रहकर और मुंह मोड़कर मौत का इंतजार करने से बेहतर है संथारा प्रथा। यहाँ धैर्यपूर्वक अंतिम समय तक जीवन को पूरे आदर और समझदारी के साथ जीने की कला को आत्मसात किया जाता है। मुनिश्री सुमेरमलजी सुदर्शन का संथारा निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के कल्याण का निमित्त बनेगा एवं उन्हें भी अमरत्व प्राप्त होगा, यही विश्वास है।

-ः ललित गर्ग:- दिल्ली
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-19.11.2022-शनिवार.