साहित्यशिल्पी-कच्चे धागों से बने मजबूत रिश्ते का नाम है राखी [आलेख]-2

Started by Atul Kaviraje, November 21, 2022, 09:31:11 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "कच्चे धागों से बने मजबूत रिश्ते का नाम है राखी [आलेख]" 

                 कच्चे धागों से बने मजबूत रिश्ते का नाम है राखी [आलेख] –
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कच्चे धागों से बने मजबूत रिश्ते का नाम है राखी ० कई रिश्तों में रेशमी धागे भर रहे रंग [आलेख]- डॉ. सूर्यकांत मिश्रा--2--
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     व्यापारिक सोच और इंटरनेट की दुनिया ने राखी जैसे पवित्र त्योहार पर भी विपरीत असर डाला है। मुझे याद है जब मैं कक्षा ग्यारहवीं या कॉलेज में पढ़ रहा था, तब मेरी बहन द्वारा पर्व से पंद्रह दिन पूर्व खुद कशीदाकारी का नमूना गढ़ कर राखी बनाई जाती थी। बहन के स्नेहवश तैयार की गई उक्त राखी का प्यार अलग ही रंग दिखाता था और उसे उतारने का मन नहीं होता था। अब बाजार की चकाचौंध के बीच उलझकर खरीदी गई राखी कुछ घंटों में ही कलाई का साथ छोड़ जाती है। दूसरा नकारात्मक पहलू और अधिक त्रासद है। पहले की भांति अब बहने अपने दुरस्त निवासरत भाई को राखी के साथ कुमकुम रोली का टीका डाक द्वारा भेजने की जरूरत महसूस नहीं कर रही है। इंटरनेट के इस युग में राखी का स्नेहिल बंधन भी शानदार वीडियो या फोटोग्राफी के रूप में परंपरा को मानने तक सिमटकर रह गया है। क्या इस बात से इनकार किया जा सकता है कि बहन की उंगली से माथे पर सजा टीका जिस आनंद की अनुभूति कराता है, वह इस नए सिस्टम ने खत्म कर दिया है। अब यह त्योहार भी महज व्यापार तक सिमट गया है। एक राखी निर्माता यही चाहता है कि उसकी राखियां अधिक से अधिक बिकें, एक होटल व्यापारी भी यही कामना करता है कि उसकी सारी मिठाइयां हाथों-हाथ बिक जाएं। राखी के महत्व को किसी कवि ने बड़े अच्छे अंदाज में कुछ यूं बयां किया है-

कच्चे धागे में बंधी पवित्र डोर है राखी,
प्यार और मीठी शरारतों के साथ,
बहन की रक्षा का अधिकार है राखी।
जाट-पात भेदभाव को मिटाती,
एकता का अनूठा पाठ है राखी।
भाई-बहन के विश्वास और जज्बात
का पवित्र गठबंधन है राखी।।

     रक्षा-सूत्र का सम्मान जहां भाई-बहन के रिश्ते को मजबूती दे रहा है, वहीं नए रिश्ते बनाने में भी भूमिका निभाता रहा है। मुझे इस संबंध में हमारे देश के जांबाज क्रांतिकारी चंद्र शेखर आजाद के जीवन की एक सच्ची घटना याद आ रही है। बात उन दिनों की है जब क्रांतिकारी आजाद अंग्रेजों से भारत माता को आजाद कराने जंग लड़ रहे थे। ऐसी ही एक घटना में फिरंगियों से बचने वे एक कुटिया में पहुंचे, उस कुटिया में एक विधवा अपनी बेटी के साथ रहती थी। पहले तो हट्टे-कट्टे आजाद को डाकू समझकर उस विधवा ने शरण देने से इनकार कर दिया, किन्तु जब आजाद ने अपना परिचय दिया तो उस महिला ने राष्ट्र भक्ति के वशीभूत उन्हें शरण दे दी। मां-बेटी की दयनीय स्थिति को आजाद ने अपनी तीक्ष्ण बुद्धि से परख लिया। आजाद यह समझ चुके थे कि गरीबी के कारण उसकी बेटी के हाथ पीले नहीं हो पा रहे हैं। आजाद ने उस वृद्धा से कहा कि मुझ पर फिरंगियों ने पांच हजार का इनाम रखा है। तुम उन्हें खबर कर मुझे उनके हवाले कर उन रुपयों को प्राप्त कर लो और अपनी बेटी का विवाह कर दो। बुढिय़ा ने उक्त शब्दों को सुनकर आजाद से कहा-भैया! तुम देश की आजादी के लिए अपनी जान हथेली में रखकर घूम रहे हो और न जाने कितनी बहु-बेटियों की इज्जत तुम्हारे भरोसे है। मंै हरगिज ऐसा नहीं कर सकती। यह कहते हुए उसने एक रक्षा सूत्र आजाद की कलाई में बांध दिया। रात अधिक हो जाने सभी उस कुटिया में सो गए। सुबह जब बुढिय़ा की आंख खुली तो आजाद वहां से जा चुके थे और उनकी तकिया के नीचे पांच हजार रुपये रखे थे। एक पर्ची में आजाद ने लिख छोड़ा था..अपनी प्यारी बहन हेतु एक छोटी सी भेंट। आजाद

     इसी संबंध में सु-प्रसिद्ध कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान से लेकर कुछ क्रांतिकारियों तक ने राखी के महत्व को उस ऊंचाई पर पहुंचाया जहां इस पर्व का उत्साह हर किसी के लिए आनंद और खुशी लुटाता दिखाई पड़े। सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी पंक्तियों में लिखा-

मैंने पढ़ा शत्रुओं को भी, जब-जब राखी भिजवाई,
रक्षा करने दौड़ पड़े वे, राखी बंद शत्रु भाई।
जनेन विधिना यस्तु रक्षा बंधन माचरेत
सर्व दोष रहित सुखी संवत्सरे भवेत।

     अर्थात विधि-विधान से जिसके द्वारा रक्षा बंधन किया जाता है वह संपूर्ण दोसों से दूर रहकर संपूर्ण वर्ष सुखी रहता है। इस पर्व पर मूलत: दो भावनाएं काम करती हैं। प्रथम जिस व्यक्ति को रक्षा-सूत्र बंधा जाता है, उसके कल्याण और सुखद भविष्य की कामना तथा द्वितीय रक्षा बंधन करने वाले के प्रति स्नेह और प्रेम भरा व्यवहार। इस प्रकार देखा जाए तो रक्षा बंधन वास्तविक रूप में शांति एवं सद्भाव के साथ रक्षा का वचन लेने का पर्व है। सूत्र का अर्थ जहां धागे से लगाया जाता है। वहीं दूसरी ओर इसे सिद्धांत और मंत्र की श्रेणी में भी रखा जाता है। पुराणों में देवताओं अथवा ऋषियों द्वारा जिस रक्षा सूत्र को बांधने की बात कही गई है वह धागे की बजाए कोई मंत्र या गुप्त रहस्य भी हो सकता है। धागे को केवल प्रतीक रूप माना गया है।

--प्रस्तुतकर्ता-डॉ.सूर्यकांत मिश्रा
राजनांदगांव (छ.ग.)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-21.11.2022-सोमवार.