साहित्यशिल्पी-वाजपेयीजी को अलविदा नहीं कहा जा सकता [आलेख] –1

Started by Atul Kaviraje, November 22, 2022, 09:13:56 PM

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Atul Kaviraje

                                      "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "वाजपेयीजी को अलविदा नहीं कहा जा सकता [आलेख]" 

             वाजपेयीजी को अलविदा नहीं कहा जा सकता [आलेख] –1--
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     भारतीय राजनीति का महानायक, भारतीय जनता पार्टी के 93 वर्षीय दिग्गज नेता, प्रखर कवि, वक्ता और पत्रकार श्री अटल विहारी वाजपेयी मौत से जंग करते हुए इस संसार से विदा हो गये हैं। उनका निधन न केवल भारत की राजनीति की बल्कि राष्ट्रीयता की अपूरणीय क्षति है। पूरा राष्ट्र अपने महानायक से जुदा होकर आहत है, सन्न है। उनके निधन को एक युग की समाप्ति कहा जायेगा। इस समाप्ति को राजनैतिक जीवन में शुद्धता की, मूल्यों की, राजनीति की, आदर्श के सामने राजसत्ता को छोटा गिनने की या सिद्धांतों पर अडिग रहकर न झुकने, न समझौता करने की समाप्ति समझा जायेगा। उन्होंने न केवल देश के लोगों का दिल जीता है, बल्कि विरोधियों के दिल में भी जगह बनाई है।

     हो सकता है ऐसे कई व्यक्ति अभी भी विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे हों। पर वे रोशनी में नहीं आ पाते। ऐसे व्यक्ति जब भी रोशनी में आते हैं तो जगजाहिर है- शोर उठता है। अटल विहारी वाजपेयी ने पांच दशक तक सक्रिय राजनीति की, अनेक पदों पर रहे, केंद्रीय विदेश मंत्री व प्रधानमंत्री- पर वे सदा दूसरों से भिन्न रहे, अनूठे रहे। घाल-मेल से दूर। भ्रष्ट राजनीति में बेदाग। विचारों में निडर। टूटते मूल्यों में अडिग। घेरे तोड़कर निकलती भीड़ में मर्यादित। भारत सरकार ने सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से उनको अलंकृत किया, देश के सर्वोच्च सम्मान से जिसे सम्मानित किया जाये तो वह उस व्यक्ति की श्रेष्ठता का शिखर होता है। नेहरु-गांधी परिवार के प्रधानमंत्रियों के बाद अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भारत के इतिहास में उन चुनिंदा नेताओं में शामिल है जिन्होंने सिर्फ अपने नाम, व्यक्तित्व और करिश्मे के बूते पर न केवल सरकार बनाई बल्कि एक नयी सोच की राजनीति को पनपाया, सुदृढ़ किया। उनके प्रभावी एवं बेवाक व्यक्तित्व से पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू भी प्रभावित थे और उन्होंने कहा था कि अटलजी एक दिन भारत के प्रधानमंत्री जरूर बनेंगे। आज भारतीय जनता पार्टी की मजबूती का जो धरातल बना है, वह उन्हीं की देन है। सन् 1980 से 1986 तक वे बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वे बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे। वर्ष 1942 में स्वाधीनता के आंदोलन के दौरान वे कुछ समय के लिए जेल में रहे। वे सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में काफी सक्रिय रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव सहित अनेक दिग्गज नेता उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।

     अटल विहारी वाजपेयी 1951 में भारतीय जन संघ के संस्थापक सदस्य थे। अपनी कुशल वक्तृत्व शैली से राजनीति के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने रंग जमा दिया। 1957 में जनसंघ ने उन्हें लोकसभा से चुनाव लड़ाया, बलरामपुर से चुनाव जीतकर वे दूसरी लोकसभा में पहुंचे। अगले पाँच दशकों के उनके संसदीय कैरियर की यह शुरुआत थी। 1968 से 1973 तक वे भारतीय जन संघ के अध्यक्ष रहे। विपक्षी पार्टियों के अपने दूसरे साथियों की तरह उन्हें भी आपातकाल के दौरान जेल भेजा गया। 1977 में जनता पार्टी सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया। इस दौरान संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिवेशन में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया और वे इसे अपने जीवन का सबसे सुखद क्षण बताते थे। 1980 में वे बीजेपी के संस्थापक सदस्य रहे। वे नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं दूसरी लोकसभा से तेरहवीं लोकसभा तक। 1962 से 1967 और 1986 में वे राज्यसभा के सदस्य भी रहे। वे संसद में बहुत प्रभावशाली वक्ता के रूप में जाने जाते रहे हैं और महत्वपूर्ण मुद्दे पर उनके भाषण खासे गौर से सुने जाते रहे हैं, जो भारत के संसदीय इतिहास की अमूल्य धरोहर है।

     अटल विहारी वाजपेयी 16 मई 1996 को पहली बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से 31 मई 1996 को उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। इसके बाद 1998 तक वे लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे। 1998 के आमचुनावों में सहयोगी पार्टियों के साथ उन्होंने लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और इस तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री बने। लेकिन एआईएडीएमके द्वारा गठबंधन से समर्थन वापस ले लेने के बाद उनकी सरकार गिर गई और एक बार फिर आम चुनाव हुए।1999 में हुए चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए और इन चुनावों में वाजपेयी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया। गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और वाजपेयी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली। एनडीए का नेतृत्व करते हुए मार्च 1998 से मई 2004 तक, छह साल भारत के प्रधानमंत्री रहे।

--प्रेषक:-ललित गर्ग-दिल्ली
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-22.11.2022-मंगळवार.