साहित्यशिल्पी-वाजपेयीजी को अलविदा नहीं कहा जा सकता [आलेख] –2-ब-

Started by Atul Kaviraje, November 23, 2022, 09:21:15 PM

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Atul Kaviraje

                                      "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "वाजपेयीजी को अलविदा नहीं कहा जा सकता [आलेख]" 

           वाजपेयीजी को अलविदा नहीं कहा जा सकता [आलेख] –2--ब--
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     इस शताब्दी के भारत के 'महान सपूतों' की सूची में कुछ नाम हैं जो अंगुलियों पर गिने जा सकते हंै। अटल विहारी वाजपेयी का नाम प्रथम पंक्ति में होगा। वाजपेयीजी को अलविदा नहीं कहा जा सकता, उन्हें खुदा हाफिज़ भी नहीं कहा जा सकता, उन्हें श्रद्धांजलि भी नहीं दी जा सकती। ऐसे व्यक्ति मरते नहीं। वे हमंे अनेक मोड़ों पर नैतिकता का संदेश देते रहेंगे कि घाल-मेल से अलग रहकर भी जीवन जिया जा सकता है। निडरता से, शुद्धता से, स्वाभिमान से, साहस से, मौलिकता से।

     मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे वाजपेयीजी से मिलने के अनेक अवसर मिले, रायसीना हिल पर अणुव्रत आन्दोलन एवं आचार्य तुलसी के कार्यक्रमों के सिलसिले में अनेक बार मिला। प्रधानमंत्री रहते 7 रेडक्रोस रोड पर तीन-चार मुलाकातें हुई। इस वर्ष उनके जन्म दिन पर कृृष्णा मेनन मार्ग पर भी उनके दर्शनों का दुर्लभ अवसर मिला। उनमें गजब का अल्हड़पन एवं फक्कड़पन था। वे हमेशा बेपरवाह और निश्चिन्त दिखाई पड़ते थे, प्रायः लोगों से घिरे रहते थे और हंसते-हंसाते रहते थे। उनके जीवन के सारे सिद्धांत मानवीयता एवं राष्ट्रीयता की गहराई ये जुड़े थे और उस पर वे अटल भी रहते थे। किन्तु किसी भी प्रकार की रूढ़ि या पूर्वाग्रह उन्हें छू तक नहीं पाता। वे हर प्रकार से मुक्त स्वभाव के थे और यह मुक्त स्वरूप भीतर की मुक्ति का प्रकट रूप है।

     भारतीय राजनीति की बड़ी विडम्बना रही है कि आदर्श की बात सबकी जुबान पर है, पर मन में नहीं। उड़ने के लिए आकाश दिखाते हैं पर खड़े होने के लिए जमीन नहीं। दर्पण आज भी सच बोलता है पर सबने मुखौटे लगा रखे हैं। ऐसी निराशा, गिरावट व अनिश्चितता की स्थिति में वाजपेयीजी ने राष्ट्रीय चरित्र, उन्नत जीवन शैली और स्वस्थ राजनीति प्रणाली के लिए बराबर प्रयास किया। यह व्यक्ति नहीं है, यह नेता नहीं है, यह विचार है, एक मिशन है। और 93 वर्ष के लंबे सफर का पगडंडियों, राजमार्गों, गांवों, महानगरों, झोपड़ियों और भवनों का अनुभव अपने मंे समेटे वह व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के बदलाव की सोचता रहा है, साइनिंग इंडिया- उदय भारत के सपने को आकार देता रहा। राष्ट्र को उन्नत राष्ट्र बनाने के लिए रात-दिन परिश्रम करता रहा है। उनका समूचा जीवन राष्ट्र को समर्पित एक जीवन यात्रा का नाम है," आशा को अर्थ देने की यात्रा, ढलान से ऊंचाई की यात्रा, गिरावट से उठने की यात्रा, मजबूरी से मनोबल की यात्रा, सीमा से असीम होने की यात्रा, जीवन के चक्रव्यूहों से बाहर निकलने की यात्रा। मन बार-बार उनकी तड़प को प्रणाम करता है। उस महापुरुष केे मनोबल को प्रणाम करता है!

--प्रेषक:-ललित गर्ग-दिल्ली
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-23.11.2022-बुधवार.