गुफ्तगू-गुफ्तगू ( दिसम्बर 2010)-ब

Started by Atul Kaviraje, November 27, 2022, 09:37:28 PM

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Atul Kaviraje

                                        "गुफ्तगू"
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मित्रो,

     आज पढते है, "गुफ्तगू" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है- "गुफ्तगू ( दिसम्बर 2010)"

                              गुफ्तगू ( दिसम्बर 2010)--ब--
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     प्रसिद्ध गीतकार यश मालवीय सांस्कृतिक केंद्र के अधिकारियों के रवैये को निरंकुश बताते हैं। फरमाते हैं, 'यहां का कवि सम्मेलन और मुशायरा निरंकुश लोगों के हाथों में चला गया है। कवियों और शायरों की सूची में सिर्फ़ एक-दो नाम ही स्तरीय रखा जाता है ताकि मिसाल के तौर पर उन्हें दिखाया और गिनाया जा सके।' यश मालवीय कहते हैं, 'अदब का शहर इलाहाबाद अपसंस्कृति का अड्डा बन गया है, कवि सम्मेलन में पढ़ी जाने वाली कविताएं राजनीति टिप्पणियों एवम् औरतों पर की केंद्रित रहती हैं, मंच भी तमाशा हो गया है। इस तरह के आरोपों पर सांस्कृतिक केंद्र कार्यक्रम अधिकारी अतुल द्विवेदी का अपना तर्क है,'यह सात राज्यों-उत्तर प्रदेश, बिहार,मध्य प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, झारखंड और उत्तरांचल का केंद्र है, सबका का प्रतिनिधित्व करना होता है। इलाहाबाद के कवियों और शायरों को तो लोग सुनते ही रहते ही रहते हैं, क्यों न बाहर के लोगों को सुना-सुनाया जाए।'संतुलन बनाए जाने के बारे में उनका तर्क है 'उर्दू से वसीम बरेलवी, अतीक़ इलाहाबादी, पापुलर मेरठी और जाहिल सुल्तानपुरी, ब्रजभाशा से शशि तिवारी, अवधी से रफ़ीक़ सादानी और नौबत राय पथिक तथा भोजपुरी से हरिराम द्विेदी को आमंत्रित किया गया। बारी-बारी से सभी कवियों को बुलाया जाना है। पिछले साल राहत इंदौरी और बशीर बद्र बुलाए गए थे, इसलिए इस साल इन्हें नहीं रखा गया।' कवि सम्मेलन एवम् मुशायरे को संयुक्त कर दिए जाने के सवाल पर कहते हैं,'हिकमते अमली बदलती रहती है। ज़रूरी नहीं है कि एक ढाचे पर हर साल प्रोग्राम होते रहे, समय के साथ-साथ चीज़े बदलती रहती हैं।' इलाहाबाद से सिर्फ़ दो लोगों को आमंत्रित किये जाने पर अतीक़ इलाहाबादी कहते हैं,'यह सरकारी आयोजन है, उनको जो सही लगता है, करते हैं। कितने लोगों को बुलाना है, ये वही समझते और जानते हैं।' कैलाश गौतम भी कुछ ऐसा ही कहते हैं,'सरकारी आयोजनों की कार्य योजना केंद्र के अधिकारी ही बनाते हैं, इसमें बाहरी लोगों का कोई दखल नहीं होता है, उन्हें जो ठीक लगता है, करते हैं।' बहरहाल, 1997 से उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र पर शिल्प मेले का आयोजन होता आ रहा है। विभिन्न सांस्कृतिक आयोजनों के साथ कवि सम्मेलन और मुशायरे का भी एक दिवसीय आयोजन होता है। इस साल 2005, से पूर्व कवि सम्मेलन और मुशायरा अलग-अलग होता था, मगर इस साल दोनों को संयुक्त कर दिया गया, शायद इसी वजह से कवियों और शायरों की संख्या में कटौती करनी पड़ी है। फिर भी नगर के कवियों और शायरों की संख्या 'दो' तक सिमट जाने के कारण लोगों में निराशा देखी जा सकती है।

(राष्ट्रीय सहारा साप्ताहिक, के 18-24 दिसंबर 2005 अंक में प्रकाशित)

--इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
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--प्रस्तुतकर्ता editor : guftgu
(मंगलवार, नवंबर 23, 2010)
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             (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-गुफ्तगू-अलाहाबाद.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-27.11.2022-रविवार.