निबंध-क्रमांक-92-पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध

Started by Atul Kaviraje, November 29, 2022, 09:00:00 PM

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Atul Kaviraje

                                       "निबंध"
                                      क्रमांक-92
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मित्रो,

      आईए, पढते है, ज्ञानवर्धक एवं ज्ञानपूरक निबंध. आज के निबंध का शीर्षक है- " पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध"

                                पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध --
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     हमारे चारों ओर जो भी भौतिक, जैविक और सांस्कृतिक वातावरण है वही पर्यावरण है। जीवन की शुरुआत से लेकर अंत तक हमारा पर्यावरण (Environment)के साथ निरंतर संपर्क, संघर्ष और सामंजस्य रहता है ।

                    पर्यावरण विकास और संरक्षण:--

     विकास के नाम पर मनुष्य ने प्रकृति का जिस-जिस रूप में दोहन किया या उपभोग किया और जिस तरह वस्तुओं को उच्छिष्ट मानकर आसपास के परिवेश में फेंका है, उससे व्यक्ति का पर्यावरण के साथ इतना संतुलन बिगड़ गया है और निरंतर रूप से बिगड़ता जा रहा है कि वह विनाश के मुंह की ओर जाता जा रहा है। इसलिए पर्यावरण का प्रदूषण आज सभी व्यक्तियों और देशों की जनता के लिए विकास से भी अधिक महत्त्व का विषय है।

                   प्रदूषण का तीव्रगामी प्रसार:--

     मनुष्य के प्रारंभिक विकास में मनुष्य और प्रकृति का निकट का संबंध था। प्रकृति का मनुष्य पर दबाव भी कम था परंतु धीरे-धीरे मनुष्य के संख्यात्मक प्रसार ने तथा उसके उपयोग की बढ़ती हुई लालसा ने प्रकृति का दोहन ऐसे शुरू किया कि पर्यावरण की समस्या उत्पन्न हो गई। औद्योगक क्रांति ने तो पर्यावरण का स्वरूप ही बदल कर रख दिया। उद्योगों की चमनियों से निकलता हुआ धुआं और रासायनिक कारखानों से बहता हुआ विषैला पदार्थ प्रकृति में कार्बन कण, कार्बन डाई-ऑक्साइड, कार्बन डाई-सल्फाइड आदि विषाक्त गैसें बढ़ाने लगा, इससे वायु और जल दूषित होने लगे। उद्योगों में ईंधन के रूप में पेट्रोल और कोयला जलाए जाने से हवा में ज़हरीलापन बढ़ने लगा ।
विकसित देशों ने अपने औद्योगिक विकास के ज़रिये स्वयं अपने देशों में, एवं विकासशील देशों में भी, कारखाने लगाकर प्रदूषण को बढ़ाने में तेजी से वृद्धि की । एक और प्रकृति के ऊर्जा के भंडारों का शोषण होने लगा, दूसरी ओर प्रदूषण बढ़ने लगा । विभिन्न प्रकार की रासायनिक गैसों, विषैले कीटाणुओं और जैविक विषाणुओं से विभिन्न तरह की किरणें एवं विकिरण सब-कुछ: मनुष्य के अस्तित्व, स्वास्थ्य एवं उन्नति के विरुद्ध आ खड़े हुए। एक अनुमान के अनुसार प्रदूषण के विभिन्न स्रोतों द्वारा विश्व के वायुमंडल में प्रतिवर्ष लगभग 20 करोड़ टन कार्बन मोनो-ऑक्साइड, 5 करोड़ टन सल्फर डाई-ऑक्साइड, 5 करोड़ टन अन्य कार्बन गैसें समा रही हैं। इसके अलावा मनुष्य कई-कई टन सिलिकॉन, आर्सेनिक, निकिल, कोबाल्ट, जस्ता और एण्टीमनी छोड़ता रहता है जो जीव-जन्तुओं के लिए विष के समान घातक है।

     प्रति वर्ष हमारी पृथ्वी की हरियाली धीरे-धीरे कम होती जा रही है तथा तापमान में वृद्धि होती जा रही है। वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा 4 प्रतिशत की दर से प्रति वर्ष बढ़ती जा रही है। इस प्रकार न केवल सारा मनुष्य समाज बल्कि सारी जैविक सृष्टि अपने अस्तित्व के ख़तरे का सामना कर रही है ।

                     प्रदूषण के कारण:--

     पर्यावरण प्रदूषण (Environment Pollution) के कारणों में प्रमुख हैं-निरंतर बढ़ते हुए कल-कारखानों, वाहनों द्वारा छोड़ा जानेवाला धुआं, नदियों, तालाबों में गिरता हुआ कूड़ा-करकट, वनों की कटाई, रासायनिक खादों का बढ़ता प्रयोग, बाढ़ का प्रकोप, मिट्टी का कटाव एवं निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या। अभी तक पर्यावरण प्रदूषण की समस्या बहुत-कुछ नगरों तक सीमित थी, परंतु अब गाँव भी इसकी चपेट में आते जा रहे हैं।

     जल-प्रदूषण: पृथ्वी का तीन-चौथाई भाग पानी से ढका किंतु उसमें केवल 3 प्रतिशत जल पीने योग्य है। समुद्र के अलावा पृथ्वी तल का अन्य पानी भी पीने योग्य नहीं रहा है। भारत की अधिकतर नदियों का पानी न केवल पीने योग्य है बल्कि नहाने और पशुओं पीने योग्य भी नहीं है। केवल उसमें से 30 प्रतिशत पानी ही साफ करके पीया जा सकता है। जल-प्रदूषण के कारण पेचिश, खुजली, पीलिया, हैज़ा आदि बीमारियाँ बढ़ रही हैं। पिछले वर्षों में सूरत एवं दिल्ली फैले प्लेग में हुई व्यापक मानव-मृत्यु ने जल प्रदूषण की समस्या का विकराल रूप हमारे सामने रखा है।

--AUTHOR UNKNOWN
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                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-हिंदी वार्ता.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-29.11.2022-मंगळवार.