साहित्यशिल्पी-जैसा स्वभाव वैसी सृष्टि- [आलेख]-अ

Started by Atul Kaviraje, December 02, 2022, 09:12:43 PM

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Atul Kaviraje

                                      "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "जैसा स्वभाव वैसी सृष्टि" 

                       जैसा स्वभाव वैसी सृष्टि- [आलेख]--अ--
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     मानव ईश्वर का बनाया हुआ एक ऐसा अद्भुत प्राणी है जो समूची धरा को प्रभावित करता है| मानव जब जन्म लेता है तो उसमे किसी भी प्रकार की विकृति नही होती है वो एक कोरे कागज़ के समान होता है | इस जीवन रुपी कोरे कागज़ पर वो क्या लिखता है ये उस व्यक्ति के संस्कारों और संगत पर निर्भर करता है| अच्छी संगति मनुष्य में श्रेष्ठ गुणों का विकास कर उसे लोगों के ह्रदय में बैठा देती है वहीं दूसरी और कितना भी प्रभावशाली व्यक्ति हो उसके संगति यदि निकृष्ट है तो वह व्यक्ति समाज के साथ-साथ अपना भी अहित कर बैठता है| इसी परिप्रेक्ष में अपने विध्यार्थी समय में अपने अध्यापक से एक कहानी सुनी थी उस कहानी को आप लोगों के साथ साझा करना चाहूँगा|

     एक सम्पन्न कुल में दो भाई थे। उन दोनों की शिक्षा- दीक्षा एक ही गुरु द्वारा सम्पन्न हुई ,दोनों ही में समान संस्कारों का सिंचन किया गया | जब वे दोनों गुरुकुल की शिक्षा समाप्त करके समाज में अपना स्थान निश्चित करने का प्रयास करने लगे ऐसे समय में एक भाई को बुरे वातावरण में पड़ जाने से जुएँ की लत पड़ गई क्यौंकी वह योग्य पढ़ा लिखा और विद्वान था, साथ ही सत्यवादी भी और जुआरियों की तरह उसमें चालाकी घोखादेही भी न थी इसी कारण वह हार जाता। उसने अपने हिस्से की सारी सम्पत्ति जुआ में लुटा दी और फिर अभावग्रस्त जीवन बिताने लगा। थोड़े समय बाद उसका जीवन स्तर और नीचे गिरा और उसे चोरी और लूट की लत भी पढ गयी । उसकी बुराइयों ने समाज में उसकी छवि मलिन कर दी और वह लोगों की नज़रों में खटकने लगा | लोग उसके मुँह पर बुरा भला कहते।

     वहीं दूसरा भाई लोगों की आँखों का तारा था। वह समाज की भलाई के कामों में हाथ बँटाता ,सदाचार का जीवन बिताकर जितनी दूसरों की भलाई हो सकती थी उतनी करता। लोग उसकी बड़ाई करते और उसे घेरे ही रहते। एक दिन पहले भाई का देहान्त हो गया। लोग कहने लगे अच्छा हुआ मर गया तो धरती से एक दुष्ट कम हुआ इसी प्रकार तरह- तरह से उसकी बुराई करने लगे | कुछ समय बाद दूसरे सज्जन भाई का भी देहावसान हुआ तो सारे नगर में शोक छा गया स्त्री- पुरुष रोने लगे उसके उपकारों एवम् उसकी सज्जनता को याद करके, उसके नाम पर समाज में कई संस्थाएँ खोली गई। समाचार पत्रों में उसके नाम पर शोक प्रकट किया गया।

     एक ही कुल, एक ही माता-पिता ,एक सी परिस्थिति ,एक ही वातावरण फिर भी एक भाई को दुनिया कोसती है और दूसरे की रात- दिन बड़ाई करती हुई श्रद्धा प्रकट करती थी ,यह क्यों ? इसका एक ही उत्तर है कि पहले भाई ने अपने जीवन में मानवोचित गुणों का विकास कर समाज में श्रेष्ठ योगदान दिया जबकि दुसरे भाई ने अच्छी शिक्ष दीक्षा होने के बाद भी बुरी संगत होने के कारन समाज को अपनी विकृत सोच से प्रभावित किया | पहले ने अपने जीवन में मनुष्य धर्म को भूल कर पाप का आचरण किया ,हैवानियत का रास्ता अपनाया जबकि दूसरे ने इंसान के पुतले में जन्म लेकर इन्सान बनने की कोशिश की।

--पंकज "प्रखर "
कोटा (राज.)
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                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-02.12.2022-शुक्रवार.