साहित्यशिल्पी-अखंड ज्योति की पावन ज्वाला है-मां [आलेख] –1

Started by Atul Kaviraje, December 04, 2022, 09:27:21 PM

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Atul Kaviraje

                                    "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "अखंड ज्योति की पावन ज्वाला है-मां [आलेख]" 

                   अखंड ज्योति की पावन ज्वाला है-मां [आलेख] –1--
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13 मई द्वितीय रविवार मां दिवस पर विशेष... त्याग की लकीरें है, मां के चेहरे की झुर्रियां- अखंड ज्योति की पावन ज्वाला है-मां [आलेख]- डॉ. सूर्यकांत मिश्रा--
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     प्रति वर्ष मई का महीना शुरू होते ही या फिर अप्रैल के आखिरी सप्ताह से मेरे भाव मां की महिमा का गुणगान करने मचलने लगते है। मां की तपस्या हर उस तपस्या से कहीं अधिक प्रभावी है, जो एक संत और ऋषि द्वारा वर्षों भूखे प्यासे रहकर की जाती है। कारण यह कि संत और ऋषि भी तपस्या से पूर्व कामना को संजोकर ही तप या यज्ञ जैसी कठिन प्रक्रिया का अनुसरण करते है। मैंने अपने इस छोटे से जीवन में कभी किसी मां को ऋषि मुनियों की तरह तपस्या में लीन माला फेरते नहीं देखा। मां की तपस्या को मैंने तपती दोपहरी में अपने बच्चों के लिए धधकते अंगारों में रोटी सेकते देखा है। पूष की कड़कड़ाती ठंड में सुबह ब्रम्हमुहूर्त में जागकर परिजनों के लिए चाय-नाश्ते की तैयारी में ठिठुरन को चुनौती देते देखा है। इतना ही नहीं एक मां को श्रावण मास की झड़ी में अपने बच्चे को छोते के आवरण में लेकर खुद खुले आसमान के नीचे बरसाती थपेड़ों को बर्दाश्त करते मेरी इन नजरों ने देखा है। मजाल है एक मां के रहते किसी भी प्रकार की कठिनाई या दर्द उकेरने वाली समस्या उसके बच्चे को स्पर्श भी कर जाये! क्या उसी मां को आज हम सम्मान दे पा रहे है? क्या हमने उसके शरीर को झुर्रियों पर स्नेह का मरहम लगाने की जवाबदारी समझी? उम्र के उस पड़ाव में जब उसे हमारे सहारे की जरूरत है, क्या हम उसकी बैसाखी बन पाये? महज मां दिवस मना लेने से उक्त विभिषकाओं का अंत नहीं होगा।

                  अनंत शक्तियों से उर्जित है मां--

     एक मां ही वह शख्स है जो अनंत शक्तियों की धारणी कही जा सकती है। यही कारण है कि उसे ईश्वरी शक्ति का प्रतिरूप मानकर ईश्वर की तरह सम्मान देने शास्त्रों में भी कहा गया है। मां के समीप रहकर उसके आंचल की शीतल छाया का आनंद प्राप्त कर, उसकी सेवा का अकल्पनीय सुख उठाकर, उसके स्नेहील वचनों और शुभ आशीषों के बल पर जो आनंद प्राप्त किया जा सकता है, वह वास्तव में कलमबद्ध नहीं किया जा सकता अथवा अवर्णनीय ही है। मां एक सुखद अनुभूति है। वह अनंत शक्तियों का पूंज है। वह एक शीतल आवरण है, जो हमारे दुख तकलीफ को ढंक लेती है। उसका साथ और उसका होना ही हमे जीवन की हर जंग लडऩे की शक्ति प्रदान करता है। उसके नि:स्वार्थ जीवन और त्याग के कारण ही विजय पथ का मार्ग हमारा अभिनंदन करता दिखाई पड़ता है। यदि कोई कहे मां को पारिभाषित करने के लिए शब्दों का मायाजाल प्रस्तुत करें तो शायद यह संभव नहीं है। मां जैसे छोटे से शब्द, जिसमें अवर्णनीय त्याग, तपस्या, करूणा, दया, वीरता और अदम्य साहस का सागर समाया हो, उसे उपमाओ अथवा शब्द सीमा में पिरोना नितांत असंभव ही है। मैं तो मां के लिए चंद शब्द इन पंक्तियों के माध्यम से भावनाओं को उकेरते हुए कह सकता हूं-

उसके रहते जीवन में, कोई गम नहीं होता,
धोखा भले ही दे दे यह दुनिया,
पर मां का प्यार, कभी कम नहीं होता।।

                लालची भी होती है मां-बच्चों की खुशी के लिए--

     इस नस्वर संसार में मां भी हमारी तरह एक इंसान ही है। मैंने अन्य लोगों की तुलना में मां को एक अलग ही रूप में पाया है। एक मां ही इंसानियत की ऐसी प्रतिमूर्ति है जो लालची स्वभाव भी रखती है तो अपने संतान की खुशी के लिये। मां शब्द में सारा संसार व्याप्त है। संसार को संचालित करने वाली अपने बच्चों और परिवार के लिए संसार से लड़ जाने वाली, अपने हर संतान को एक बराबर प्यार देने वाली मां ही हमारी पहली गुरू भी होती है। एक मां ही होती है जो अपने प्रत्येक कर्तव्य को बिना किसी चाह के पूरा करती है। उसे तो इसी में असीम आनंद की अनुभूति होती है कि उसके कार्यों से उसके बच्चे प्रसन्न होते है। वह मां ही होती है जो असहनीय पीड़ा को हंसते हुए पराजित कर अपने शिशु को जन्म देती है। श्रीमद् भगवत गीता में भी कहा गया है कि मां की सेवा से मिला आशीर्वाद सात जन्मों के पाप को नष्ट कर हमें सुखी जीवन प्रदान करता है। मां की ममता और उसके आंचल की महिमा को आज तक बड़े से बड़ा साहित्यकार और कवि ने भी शब्दों में नहीं समेट पाया है। यह एक ऐसा शब्द है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है।

--प्रस्तुतकर्ता-डा. सूर्यकांत मिश्रा
राजनांदगांव (छ.ग.)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-04.12.2022-रविवार.