साहित्यशिल्पी-अखंड ज्योति की पावन ज्वाला है-मां [आलेख] –2-

Started by Atul Kaviraje, December 05, 2022, 09:33:35 PM

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Atul Kaviraje

                                    "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "अखंड ज्योति की पावन ज्वाला है-मां [आलेख]" 

                   अखंड ज्योति की पावन ज्वाला है-मां [आलेख] –2--
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13 मई द्वितीय रविवार मां दिवस पर विशेष... त्याग की लकीरें है, मां के चेहरे की झुर्रियां- अखंड ज्योति की पावन ज्वाला है-मां [आलेख]- डॉ. सूर्यकांत मिश्रा--
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इसलिए गीता जैसे ग्रंथ में कहा गया है-

'जननी जन्मभूमिश्च, स्वर्गादपि गरीयसी'
अर्थात जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जननी और जन्मभूमि के बगैर स्वर्ग भी बेकार है। सीधे शब्दों में कहूं तो हर वह घर स्वर्ग है, जहां मां का अस्तित्व कायम है, क्योंकि यह तो निश्चित है कि हमें स्वर्ग में हमें मां का साथ नहीं मिल सकेगा।

किसी शायद ने सुंदर रचना की है-
हालातों के आगे जब, न जुबां होती है,
पहचान लेती है, खामोशी में हर दर्द,
वो सिर्फ मां होती है।।

                    जीवन के हर किस्से में मां का साथ--

     दुनिया में ऐसा कोई इंसान नहीं, जिसके जीवन में अच्छे और बुरे किस्सों के पन्ने न हो। अच्छे समय में तो सारी दुनिया अपने साथ दिखाई पड़ती है किंतु दुख या बुरे वक्त की परछाई भी अपनों को दूर कर देती है। एक मां ही है जो बुरे वक्त में अपने बच्चों का संबल बनकर खड़ी होती है। जीवन के हर बुरे किस्से में हमें मां का ही साथ मिलता है और वह भय की बदली को हमारे जीवन में सूर्योदय की सुखद किरण के रूप में परिवर्तित कर दिखाती है। हम अपनी कठिनाई या तकलीफ दुनिया के सामने कितने भी अच्छे ढंग से रखे, वह उसे समझने में सफल नहीं हो पाती है। मां की वह किरदार है जो दुख को कहने से पहले ही उसे जान लेती है और अपने बच्चों को तकलीफों पर एक डॉक्टर से भी बेंहतर मरहम लगाकर उसे संकट के बादल से उबार लेती है। अपनी मां के चरण स्पर्श करने वाला कोई भी शख्स हर प्रकार की उलझन को सुलझा लेने वाला शूरवीर होता है। कहते है मां के चरणों में ईश्वरी सत्ता है। सुबह-शाम उसके चरण स्पर्श करने वाले बच्चों पर ईश्वर भी कहर बरपाने से पहले थर-थर कांप उठता है, क्योंकि उसे भी जन्म देने वाली एक मां ही है।

मां की इसी त्याग तपस्या पर एक शायर की चंद लाईनें इस प्रकार है-

$गम हो, दुख हो, या खुशियां,
मां जीवन के हर किस्से में,
साथ देती है,
खुद सो जाती है भुखी,
पर बच्चों में रोटी अपने,
हिस्से की बांट देती है।।

                    त्याग की प्रतिमूर्ति होती है-मां--

     मैं प्रतिवर्ष मां दिवस पर अपने विचारों को कलमबद्ध करने इंतजाररत रहता हूं। यही कारण है कि हर उस किस्से, अथवा कहानी पर से अपने नजरें नहीं हटा पाता, जो मां के त्याग से भरी होती है। मैंने शायद वर्ष भर पूर्व एक किस्सा पढ़ा था, जो मां के त्याग का दिल छू लेने वाला लम्हा कहा जा सकता है। एक मां अपने बच्चे का भविष्य संवारने अपनी दुनिया को अंधकार की कोठरी में झोंक देने से भी पीछे नहीं रहती है। ऐसी ही एक मर्मस्पर्शी कहानी में एक अंधी मां अपने बच्चे केा पढ़ा लिखाकर बड़ा इंसान बनाने का सपना संजोय रात-दिन मेहनत करती है। वह अपने बच्चे को उच्च शिक्षा के लिए बाहर तक भेजती है। खुद को पैसों की इंतजाम के लिए लाठी के सहारे चलते घर-घर साफ सफाई और लोगों की सेवा का काम करती है। उसका बेटा भी पढ़ लिखकर अधिकारी बन जाता है। अब उसे यह अच्छा नहीं लगता कि कोई उसे अंधी की लड़का कहे। अपने बेटे की उपलब्धि के बाद वह उससे मिलने जाती है, तो वह उसे लौटा देता है। एक दिन कुछ ऐसा ही होने के बाद जब वह ऑफिस जाने लगता है तो देखता है कि एक वृद्धा अंधी महिला सड़क हादसे में मौत के घाट उतर चुकी है। वह देखता है तो महिला उसकी मां होती है। उसके हाथ में फंसे कागज की टुकड़े को पढऩे के बाद बेटे का पश्चाताप चरम पर होता है। उस पर लिखा होता है- बेटा! तू जब बचपन में खेल रहा था तो सरिया घूस जाने से तेरी दोनों आंखें चली गयी, तब मैंने अपने आंखे तुझे दे दी थी।

तब मुझे कहना पड़ता है-

मां ने तो उम्र भर सम्हाला ही था,
हमें तो जिंदगी ने रूलाया है,
कहां से पड़ती कांटों की आदत हमें,
मां ने हमेशा अपनी गोद में सुलाया है।।

--प्रस्तुतकर्ता-डा. सूर्यकांत मिश्रा
राजनांदगांव (छ.ग.)
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                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-05.12.2022-सोमवार.