साहित्यशिल्पी-सृष्टि की रचना का पर्व है गुड़ी पIड़वा –2-

Started by Atul Kaviraje, December 07, 2022, 09:30:21 PM

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Atul Kaviraje


                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "सृष्टि की रचना का पर्व है गुड़ी पIड़वा [आलेख]" 

                      सृष्टि की रचना का पर्व है गुड़ी पIड़वा –2--
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             मर्यादा पुरूषोत्तम का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ--

     तुलसीकृत रामचरित मानस और महर्षि वाल्मिकी रचित रामायण से जानकारी मिलती है कि भगवान श्री राम जिन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम कहा गया है, उनका राज्याभिषेक भी गुड़ी पड़वा अथवा चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि को ही हुआ। अपने उच्च चरित्र और वचन की मर्यादा रखने के कारण ही उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम के रूप में हम भारत वर्ष के आदर्श चरित्र की प्रतिमूर्ति मानकर श्रद्धा के साथ पूजते आ रहे है। राम नाम के महत्व को समझना हो तो हमें दो अक्षरों की महिमा कुछ इस तरह समझनी होगी। र धन अ धन म बराबर राम। मधुर, मनोहर, विलक्षण, चमत्कारी जिनकी महिमा तीन लोक से न्यारी है।

राम चरित मानस के बाल कांड में वंदना प्रसंग में तुलसीदास जी ने बड़े अच्छे शब्दों में लिखा है-

नहि कलि करम न भगति विवेकू। राम नाम अवलंबन एकू।

तात्पर्य यह कि कलयुग में न तो कर्म का भरोसा है, न भक्ति का और न ही ज्ञान का, बल्कि केवल राम नाम ही एकमात्र सहारा है। इसी तरह पदम पुराण में कहा गया है-

समेति नाम याच्छोत्रे विश्वम्भा दागतं यदि। करोति पापसंदाहं तूलं बहिकणो यथा।

अर्थात जिनके कानों में राम नाम अकास्म भी पड़ जाता है, उसके पापों को वह वैसे ही जला देता है, जैसे अग्नि की चिंगारी रूई को।

                 शुभ कार्यों के लिए उत्तम तिथि--

     किसी भी काम की निर्विध्न संपन्नता के लिये प्रत्येक व्यक्ति उसका शुभारंभ अच्छे मुर्हूत में करना चाहता है। इस दृष्टिकोण से गुड़ी पडवा अथवा प्रतिपदा तिथि अभिजीत मुर्हूत के रूप में जानी जाती है। यह बात सामान्य रूप से देखने में आती है कि दैनिक दिनचर्या की शुरूआत करनी हो, अथवा यात्रा पर जाना हो, विवाह का अवसर हो, गृह निर्माण अथवा गृह प्रवेश की बात हो, सभी के लिये एक संस्कारित और धर्मज्ञ व्यक्ति शुभ घड़ी, शुभ मुर्हूत अथवा चौघडिय़ा देखकर ही कार्य की शुरूआत करना चाहता है। इस मान से भी गुड़ी पड़वा बिना किसी हिचक के और बिना विचारविमर्श के कार्य की श्ुारूआत हेतु सबसे उत्तम मुर्हूत मानी जाती है। वैज्ञानिक रूप से भी यह बात सामने आ चुकी है कि दिन के चौबीस घंटों में कुछ गिनी चुनी घडिय़ा ही ऐसी होती है, जिनमें किये गये काम सफल होने की संभावना बढ़ जाती है। ब्रम्ह वर्चस्व पंचांग में कहा गया है कि अक्षय तृतीया, अक्षय नवमी, बसंत पंचमी, गंगा दशहरा, विजय दशमी, महाशिवरात्रि, श्रीराम नवमीं तथा सभी पूर्णिमा आदि पुण्य पर्वों पर मुर्हूत की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

                 कलश है मंगल प्रतीक--

     कलश को प्रत्येक देवी-देवताओं की पूजा में मंगल प्रतीक माना जाता है। चैत्र और क्वांर मास में होने वाली नवरात्रि पर्व पर तेा कलश स्थापना ही मुख्य माना जाता है। नौ दिन तक मां की आराधना करने वाले श्रद्धालु कलश स्थापित कर व्रत धारण करते है। पौराणिक ग्रंथों में कलश को ब्रम्हा, विष्णु और महेश के साथ मातृगण का निवास बताया गया है।

त्रृगवेद में कलश के विषय में कहा गया है-

आपूर्णों अस्य कलश: स्वाहा सेक्तेव कोशं सिसिचे पिबध्यै।
समुप्रिया आववृत्रन मदाय प्रदक्षिणिदभि सोमास इन्द्रम।।

     अर्थात पवित्र जल से भरा हुआ कलश भगवान इंद्र को समर्पित है। लंका विजय के उपरांत भगवान श्री राम के अयोध्या लौटने पर उनके राज्याभिषेक के उपलक्ष्य में जल भरे कलशों की पंक्तियां सजायी गयी थी। इसी प्रकार अथर्ववेद में भी कहा गया है कि सूर्य देव द्वारा दिये गये अमृत वरदान से मानव का शरीर कलश शत शत वर्षों से जीवन रसधारा में प्रवाहित होता आ रहा है। इस तरह से भारतीय संस्कृति में कलश अथवा घड़ा अत्यंत मांगलिक चिह्न के रूप में प्रतिष्ठित है। किसी भी प्रकार की पूजा अनुष्ठान, राज्याभिषेक, गृह प्रवेश, यात्रा का शुभारंभ, उत्सव, विवाह आदि शुभ प्रसंगों में सर्वप्रथम कलश को लाल कपड़े, स्वस्तिक, आम के पत्तों, नारियल, सिक्का, कुमकुम, अक्षत, फुल आदि से अलंकृत कर ब्रम्हा, विष्णु और महेश के रूप में उसकी पूजा की जाती है। देवी पुराण में उल्लेख मिलता है कि भगवती देवी की पूजा की शुरूआत से पूर्व सबसे पहले कलश की स्थापना की जानी चाहिये।

--प्रस्तुतकर्ता-डा. सूर्यकांत मिश्रा
राजनांदगांव (छ.ग.)
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                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-07.12.2022-बुधवार.