साहित्यशिल्पी-हंसी ठिठोली वाले रिश्तों के लिए होली है पवित्र पर्व [आलेख] –1-

Started by Atul Kaviraje, December 08, 2022, 09:32:42 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "हंसी ठिठोली वाले रिश्तों के लिए होली है पवित्र पर्व [आलेख]" 

             हंसी ठिठोली वाले रिश्तों के लिए होली है पवित्र पर्व [आलेख] –1--
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2 मार्च होली पर्व पर विशेष : हंसी ठिठोली वाले रिश्तों के लिए होली है पवित्र पर्व-रिश्तों की अहमियत भी न भूले समाज [आलेख]- डॉ. सूर्यकांत मिश्रा--
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     होली का जुनून किसके सिर चढ़कर नहीं बोलता, यह पर्व ही ऐसा है, जो छोटे-बड़ों, गरीब-अमीर, अधिकारी-अर्दली और नौकर-चाकरों तक को रंग गुलाल में सराबोर कर उत्सव का इजहार कर दिखाता है। जुनून को हद से पार न होने देने का संदेश भी इस पर्व में छिपा हुआ है। वैसे तो इस पर्व को देवर-भाभी के हंसी ठिठोली वाले रिश्ते से जोड़कर देखा जाता है। अब बदले हुए समय में होली का सबसे अधिक रंग जीजा-साली पर चढ़ता देखा जा सकता है। इस नाजुक रिश्ते पर रंगों की मिठास कड़वाहट में तब्दील न हो जाए इसे दोनों पक्षों को बड़ी ही सावधानी के साथ समझने और निभाने की जरूरत है। पवित्र अग्नि में सारी कलुषता को भष्म करने के बाद रंगों की बौछार में स्नान करना और एक-दूसरे के साथ प्रेम स्नेह का संचार इस पर्व का उद्देश्य है। सवाल यह उठता है कि समाज के सभी वर्गों को समानता के करीब लाते हुए रंगों में डुबा देना इतना जुनूनी न बने कि इसके चिरस्थाई पर सवालिया निशान लगा जाए। ढोल मजीरों और नगाड़ों की कर्ण प्रिय थाप के बीच मनाई जाने वाली खुशी क्षणिक न होकर दीर्घ जीवंतता पा सके इस हेतु बच्चों से लेकर उम्र दराज और रिश्तों की हर कसौटी को प्रतिज्ञ होना पड़ेगा।

                 चरित्र की पवित्रता पर्व की पहचान--

     होली का त्यौहार बड़ा ही रसीला पर्व माना जाता है। इस पर्व में व्यवहार और रिश्तों की पवित्रता हमारे चरित्र की पवित्रता का प्रमाण बनकर हमारे सामने आती है। समझदारी के साथ रिश्तों का गुणा भाग और जोड़ घटाव करते हुए एक लंबी कड़ी तैयार करना कोई कठिन काम नहीं है, किंतु कम्प्युटर की, की की-बोर्ड सभी कुछ ठीक करने के बाद गलती से डिलीट का बटन दब जाने पर सब कुछ साफ हो जाता है। ठीक इसी तरह अच्छा करते करते कहीं गलत राह हमारे संबंधों को ही न तोड़ दे इस बात की पवित्रता इस त्यौहार पर जरूरी है। हमने समाज में जीवन यापन करते हुए इस बात का अहसास किया है हमारा जीवन, रहन-सहन, आचार-विचार, खान-पान क्रियाकलाप, व्यापार-व्यवसाय हर क्षेत्र में उस चरित्र की मांग करता है जो सामाजिक रूप से सभी को स्वीकार्य हो। इसी चरित्रावली में हमारी सोच और विचारों की बगिया फलीभुत होती है। पश्चिमी हवा के चलते बदलते वातावरण में हमारी इसी पवित्रता को कलंकित करना श्ुारू कर दिया है। हम देख रहे है कि हमारे सबसे अच्छा पर्व दोस्ती की जगह दुश्मनी भंजाता दिखाई पड़ रहा है, तो कहीं नशे की नदी बहाई जा रही है, महिलाओं और युवतियों पर व्यंग्य के बाण छोड़े जा रहे है। इन सारी असामाजिक गतिविधियों को ही होलिका दहन का हिस्सा बनाकर एक अच्छे समाज की स्थापना होली का संदेश है।

--प्रस्तुतकर्ता-डा.सूर्यकांत मिश्रा
राजनांदगांव (छ.ग.)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-08.12.2022-गुरुवार.