साहित्यशिल्पी-हंसी ठिठोली वाले रिश्तों के लिए होली है पवित्र पर्व [आलेख] –2-

Started by Atul Kaviraje, December 09, 2022, 09:12:01 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "हंसी ठिठोली वाले रिश्तों के लिए होली है पवित्र पर्व [आलेख]" 

             हंसी ठिठोली वाले रिश्तों के लिए होली है पवित्र पर्व [आलेख] –2--
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2 मार्च होली पर्व पर विशेष : हंसी ठिठोली वाले रिश्तों के लिए होली है पवित्र पर्व-रिश्तों की अहमियत भी न भूले समाज [आलेख]- डॉ. सूर्यकांत मिश्रा--
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                   गंदगी को पर्व से सदैव रखे दूर--

     यह तो हम सभी जानते है कि प्रत्येक त्यौहार अपना सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व रखता है। होली का पर्व हम सबके लिए अविस्मरणीय बन जाए इसके लिए हमें कुछ खास करने तैयार रहना चाहिए। यह एक ऐसा त्यौहार है जो महंगाई को भी आईना दिखाता रहा है। महज कुछ रूपयों के पक्के रंग हर अमीर-गरीब को पर्व की खुशियां बांट आता है। हम संकल्पित हो कि रंगों के पर्व को हम ऐसी यादगार घटना से जोड़ जाएंगेें जो सभी के लिए न भुलने वाली घटना बन जाए। तब क्या किया जाए कि इस पर्व का हमें बेसब्री से इंतजार हो। जहां तक मैं समझता हूं मलीन बस्तियों में जहां रंगों के अभाव में कीचड़, गोबर और जले हुए काले तेल एक दूसरे पर फेंके जाते हो, वहां रंगों की बिसात बिछाई जाए। लाल, नीले, हरे, पीले गुलाबी, नारंगी, जामुनी इन सातरंगी रंगों को उन बस्तियों में रहने वालों के बीच ड्रमों में घोलकर एक दूसरे को डाले जाने की एक अच्छी शुरूआत की जाए। इससे समाज को दो बड़े फायदे हो सकते है। पहला यह कि गंदगी के साथ खेली जाने वाली होली का अंत होगा और दूसरा यह कि उन बस्तियों में रहने वाले लोगों की सोच में सकारात्मक परिवर्तन निश्चित रूप से प्रेम और सद्भाव को बढ़ाने वाला होगा। ऐसा करने से पूर्व सामाजिक संस्थाओं और एनजीओ से जुड़े लोगों को त्यौहार से पूर्व उन तक पहुंचकर अपना मंतव्य स्पष्ट करने की जहमत उठानी होगी। मैं नहीं समझता कि कोई बड़ा कठिन काम है।

                     संस्कारों की महिमा भी बनी रहे--

     हमारे देश और प्रदेशों का पारिवारिक चित्रण बहुत तेजी के साथ बदल रहा है। अब संयुक्त परिवारों की परंपरा दम तोडऩे लगी है। एकल परिवार में रहकर एक बच्चा जिस क्रमिक विकास को देख रहा है, वह उसे ही अपनी दुनिया समझ बैठा है। उसे माता-पिता के अलावा अन्य रिश्तों की जानकारी ही नहीं है, बाकि रिश्तों को छोड़ भी दे तो सीमित परिवार में भाई या बहन की रिश्तों को समझने में कठिनाई पैदा की है। होली का पर्व एक ऐसा पर्व है जो होलिका दहन के महत्व से शुरू होकर रंगों की बौछार पर जाकर समाप्त होता है। होली क्यों जलाई जाती है? घर के बुजुर्ग, दादा-दादी, नाना-नानी द्वारा क्यों अपने बच्चों सहित नाती-पोतों के सिर से पैर तक विभिन्न साधनों से नजरे उतारकर अग्नि प्रज्ज्वलित किया जाता है? यह सब एकल परिवार में रहते हुए संभव नहीं है। उन्हें संयुक्त परिवार में जो संस्कार मिलते है, वे सबके बीच रहकर जिस संस्कार को अंगीकार करते है, और त्यौहारों की परंपरा को आगे बढ़ाते है, उसके लिए जरूरी है कि बच्चों को पर्व के संस्कार सिखाए जाए। साथ ही रंगों की उपादेयता ही समझाई जाए। रंग गुलाल उड़ाए जाने के बाद जब सब एक ही रंग में रंग जाते है, तब जो समाज सामने आता है, वह भेदभाव और ऊंच नीचे के विचारों से कहीं दूर होता है। यही है रंगों का असली महत्व और होली का असली संदेश।

                   रिश्तों से बढ़कर है रंगों का यह पर्व--

     होली एक ऐसा पर्व है जो हर रिश्तें की गांठ को मजबूती देते हुए रंगों मेें डुबो देती है। बच्चे इसे पिचकारी और गुब्बारों का मजा लेते हुए याद रखते है। किशोर उम्र के लोगों का उमंग तो बसंत पंचमी से ही उमडऩे लगता है और वे होली जलाने लकडिय़ों का ढेर लगाने लगते है। युवा वर्ग का उत्साह मित्र मंडली में अलग-अलग आयोजन के रूप में उल्लास बिखेरता दिखाई पड़ता है। घर परिवार में मां, चाची, ताई, बुआ सभी मिलकर पर्व का उत्साह पकवानों के रूप में सजाने जुटी होती है। कुछ बड़े उम्र के लोगों का हस परिहस भी रंग गुलाल और फाग मंडली के रूप में पर्व के महत्व को बढ़ाता दिखता है। पर्व पर होने वाली हल्की फुल्की और कहीं कहीं बड़ी बदनामी करने वाली हरकतें भी अब पुलिस व्यवस्था के चलते काफी नियंत्रण पर है। होली का पर्व सभी के जीवन को सतरंगी रंगों में डुबा कर आनंद विभोर कर दे यही हमारी कामना है।

--प्रस्तुतकर्ता-डा. सूर्यकांत मिश्रा
राजनांदगांव (छ.ग.)
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                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-09.12.2022-शुक्रवार.