साहित्यिक निबंध-निबंध क्रमांक-104-आज़ादी में पत्रकारिता का योगदान

Started by Atul Kaviraje, December 11, 2022, 09:19:10 PM

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Atul Kaviraje

                                   "साहित्यिक निबंध"
                                   निबंध क्रमांक-104
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मित्रो,

     आईए, आज पढते है " हिंदी निबंध " इस विषय अंतर्गत, मशहूर लेखको के कुछ बहू-चर्चित "साहित्यिक निबंध." इस निबंध का विषय है-"आज़ादी में पत्रकारिता का योगदान"
   
                          आज़ादी में पत्रकारिता का योगदान--
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                      प्रेस संबंधी प्रथम कानून

     १८वीं शताब्दी के अंत तक लगभग २०-२५ अंग्रेज़ी पत्रों का प्रकाशन हो चुका था जिसमें प्रमुख ते बॉम्बे हेराल्ड, बॉम्बे कैरियर, बंगाल हरकारू, कलकत्ता कैरियर, मॉर्निंग पोस्ट, ओऱियंट स्टार, इंडिया गजट तथा एशियाटिक मिरर आदि। पत्र-पत्रिकाओं की उत्तरोत्तर वृद्धि अंग्रेज़ों की दमनात्मक कार्रवाइयों को भी उसी अनुपात में बढ़ाने के लिए बाध्य करती गई। सन १७९९ में लार्ड वेलसली ने प्रेस संबंधी प्रथम कानून बनाया कि पत्र प्रकाशन के पूर्व समाचारों को सेंसर करना अनिवार्य है तथा अन्य शर्तें इस तरह लागू कर दी गईं।

(क) पत्र के अंत में मुद्रक का नाम एवं पता स्पष्ट रूप से छापा जाए।
(ख) पत्र के मालिक एवं संपादक का नाम पता एवं आवास का पूर्ण विवरण सरकारी सेक्रेटरी को दिया जाए।
(ग) सेक्रेटरी के देखे बिना कोई पाठ्य सामग्री छापी नहीं जाए एवं
(घ) प्रकाशन रविवार को बंद रखा जाए।

     अब तक के सभी पत्र अंग्रेज़ी भाषा में प्रकाशित हो रहे थे तथा सभी पत्रों के संपादक भी अंग्रेज़ थे, फिर भी विरोधात्मक स्थिति में केवल इन्हें निर्वासित कर देना ही पर्याप्त दंड माना जाता था। बाद में सरकार के किसी कार्य पर टीका-टिप्पणी करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया जो बेलेसली से लार्ड मिंटो तक चला। भारतीय पत्रकारिता इसे बेहद दुष्प्रभावित हुई।

     लार्ड हेस्टिंग्स के गवर्नर जनरल बनते ही उपर्युक्त शर्तों में ढील बरती गई, जिसके अंतर्गत प्रकाशन के पूर्व सेंसर की प्रथा समाप्त करते हुए रविवार को प्रकाशन प्रतिबंध समाप्त कर निम्न आदेश जारी किए गए-

सरकारी आचरण पर आक्षेप लगानेवाला समाचार नहीं छापा जाए।
भारतवासियों के मन में शंका उत्पन्न करनेवाला समाचार नहीं छापा जाए।
धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जाए।
ब्रिटिश सरकार की प्रतिष्ठा पर आँच आनेवाला समाचार नहीं छापा जाए।
व्यक्तिगत दुराचार विषयक कोई चर्चा पत्रों में नहीं की जाए।
भारतीय भाषाओं के समाचार पत्र

     इन शर्तों के बावजूद हेर्स्टिग्स का रवैया उदारवादी था, इसलिए इनका पालन सख्ती से नहीं हो पाया फलतः भारतीय भाषाओं में भी पत्र प्रकाशित होने लगे। इनमें प्रमुख पत्र थे- कलकत्ता जर्नल १८१८, बंगाल गजट १८१८, दिग्दर्शन १८१८, फ्रेंड ऑफ इंडिया १८१९, ब्रह्गनिकल मैग्ज़िन १८२२, संवाद कुमुदिनी १८२२, मिरातुल अखबार १८२२ आदि। इनमें कलकत्ता जर्नल एवं संवाद कुमुदिनी सबसे उग्र थे, क्योंकि उस समय भारतीय जीवन के अग्रदूत के रूप में राजा राममोहन राय नेतृत्व कर रहे थे।

     हेस्टिंग्स के अवकाशग्रहण के बाद तथा जॉन आडम के नए गवर्नर जनरल के रूप में आते ही, पत्रों की स्वतंत्रता पुनः समाप्त हो गई और ०४.०४.१८२३ को प्रेस संबंधी नए कानूनों द्वारा ये प्रतिबिंब फिर लगा दिए गएः

     कोई व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह सरकारी स्वीकृति के बिना फोर्ट विलियम के आबादी वाले क्षेत्रों में कोई समाचार पत्र, पत्रिका, विज्ञप्ति अथवा पुस्तक किसी भाषा में प्रकाशित नहीं करेगा, जिस पर सरकारी नीति एवं कार्य पद्धति पर टीका-टिप्पणी हो।

     लाइसेंस प्राप्ति के लिए जो आवेदन पत्र दिए जाएँ उसके साथ शपथ पत्र भी दिया जाए जिसमें पत्र, पत्रिका, पुस्तक, मुद्रक, प्रकाशक एवं प्रेस मालिक का पूर्ण विवरण सहित भवन विवरण भी दिया जाए, जहाँ से प्रकाशन होगा।

     बिना लाइसेंस प्राप्त किए पत्र प्रकाशित पाए जाने पर प्रकाशक को चार सौ रुपया जुरमाना अथवा चार महीने कैद की सज़ा दी जाएगी।

     छापाखाने के लिए भी लाइसेंस अनिवार्य बनाया गया। बिना लाइसेंस के छापाखाने को ज़ब्त कर, मालिक को छह माह का कारावास एवं एक सौ रुपया जुरमाना होगा।

     जिस पत्र का प्रकाशन रोका गया है। उसके वितरक को भी एक हज़ार रुपया जुरमाना तथा दो माह का कारावास का दंड होगा।

     इन प्रतिबंधों का पूरे देश में घोर विरोध किया गया, जिसके फलस्वरूप बंगाल का 'मिरातुल अखबार एवं कलकत्ता जर्नल' की आहूति हो गई। सन १८२८ में विलियम बेंटिक के गवर्नर जनरल का प्रभार लेते ही उपर्युक्त कानून हटाए तो नहीं गए, किंतु कार्यान्वयन में उदारता बरती गई। सन १८३५ में 'सरचार्ल्स मेटकफ' के कार्यभार लेने के बाद भी, वही उदारनीति बरकरार रही और अंततः ०३.०८.१८३५ में इन्हें समाप्त कर दिया गया, किंतु नियंत्रण रखने के लिए कुछ नियम बनाए गए। इस उदार नीति के कारण १८३९ में पत्र-पत्रिकाओं की संख्या इस तरह हो गई- कलकत्ता मे २६ यूरोपियन पत्र जिनमें नौ भारतीय थे एवं नौ दैनिक, बंबई में दस यूरोपियन पत्र थे तथा चार भारतीय। मद्रास में नौ यूरोपियन पत्र थे। इसके अतिरिक्त दिल्ली, लुधियाना एवं आगरा से भी पत्र प्रकाशित होने लगे। सरसैयद अहमद खाँ द्वारा १८३९ में ही 'सैयदुल अखवाराय' दिल्ली का पत्र लोकप्रिय हो गया।

--डॉ. के. एन. पी. श्रीवास्तव
(१० अगस्त २००९)
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                    (साभार एवं सौजन्य-अभिव्यक्ती-हिंदी.ऑर्ग)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-11.12.2022-रविवार.