नई विधा ..-कविता-बेवफ़ा लिखते हैं वो...

Started by Atul Kaviraje, December 11, 2022, 09:51:28 PM

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Atul Kaviraje

                                    "नई विधा .."
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मित्रो,

     आज पढते है, दिव्या अग्रवाल, इनके "नई विधा .." इस कविता ब्लॉग की एक कविता. इस कविता का शीर्षक है- "बेवफ़ा लिखते हैं वो..."

                                  बेवफ़ा लिखते हैं वो...
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उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
ढूँढने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ

डाल कर ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा
कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी के मिटा भी न सकूँ

ज़ब्त कमबख़्त ने और आ के गला घोंटा है
के उसे हाल सुनाऊँ तो सुना भी न सकूँ

उस के पहलू में जो ले जा के सुला दूँ दिल को
नींद ऐसी उसे आए के जगा भी न सकूँ

नक्श-ऐ-पा देख तो लूँ लाख करूँगा सजदे
सर मेरा अर्श नहीं है कि झुका भी न सकूँ

बेवफ़ा लिखते हैं वो अपनी कलम से मुझ को
ये वो किस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ

इस तरह सोये हैं सर रख के मेरे जानों पर
अपनी सोई हुई किस्मत को जगा भी न सकूँ

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:: शब्दार्थ ::
हसरत-इच्छा, ज़ब्त-सहनशीलता, पहलू-गोद
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--अमीर मीनाई
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लखनऊ, उत्तर प्रदेश
1821-1901
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--दिव्या अग्रवाल
(Friday, 1 December 2017)
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              (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-divdesire.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-11.12.2022-रविवार.