साहित्यिक निबंध-निबंध क्रमांक-105-आज़ादी में पत्रकारिता का योगदान

Started by Atul Kaviraje, December 12, 2022, 09:02:48 PM

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Atul Kaviraje

                                 "साहित्यिक निबंध"
                                निबंध क्रमांक-105
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मित्रो,

     आईए, आज पढते है " हिंदी निबंध " इस विषय अंतर्गत, मशहूर लेखको के कुछ बहू-चर्चित "साहित्यिक निबंध." इस निबंध का विषय है-"आज़ादी में पत्रकारिता का योगदान"
   
                         आज़ादी में पत्रकारिता का योगदान--
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     इस प्रकार प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के लिए पूरे भारत वर्ष में पत्र, पत्रकारों एवं पत्रकारिता का चैतन्यपूर्ण परिवेस सृजित हो गया। लॉर्ड केनिंग ने इस सुलगती आग की गहराई को महसूस कर भारतीय पत्रों पर नियंत्रण के लिए १३.०६.१८५७ को प्रेस संबंधी नए कानून बनाकर सरकारी नियंत्रण बरकरार रखा।

     इंडियन पैनल कोड में संशोधनः लॉर्ड मेकाले द्वारा १८३६ में जो धारा ११० लगाई गई थी उसे १८६० में समाप्त कर दिया गया।

     रेगुलेशन ऑव प्रिंटिंग प्रेस एंड न्यूजपेपर्स एक्ट १८७६ - इस अधिनियम के अनुसार समाचार पत्रों एवं पुस्तकों के प्रकाशन की स्वतंत्रता समाप्त कर दी गई। इंडियन पैनल कोड में एक नई धारा जोड़कर आपत्तिजनक लेखकों को दंडित करने का प्रावधान कर दिया गया। इन प्रावधानों का विरोध करनेवाले प्रमुख पत्रों में 'स्टेटसमैन', 'पायोनियर', 'अमृत बाज़ार पत्रिका' तथा 'टाइम्स ऑफ इंडिया' प्रमुख थे।

     गैगिंग प्रेस एक्ट ऑव १८७८- स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम १८५७ के बाद पत्रकारों के बीच नवजागरण उत्पन्न हुआ जो मूलतः भारतेंदु युग का प्रथम चरण बना। इनके नेतृत्व में पत्रकार 'स्व' से निकलकर 'देशहित' में अग्रसर हुए। इस युग के प्रमुख पत्रों में 'बिहार बंधु', 'कविवचन सुधा' हरिश्चंद्र मैगज़िन, ब्राह्मण, 'भारतमित्र', 'सारसुधानिधि' हिंदी 'वंशावली', 'हिंदी प्रदीप' एवं उचित वक्ता आदि अग्रणी रहे।

     वर्नाकुलर प्रेस एक्ट-१८७८- भारतेंदु युग से प्रस्फुटित उत्साह देखकर अंग्रेज़ घबरा उठे एवं इस कानून द्वारा देशी भाषा के पत्रों के संपादकों, प्रकाशकों एवं मुद्रकों के लिए एक शर्त अनिवार्य कर दी गई कि वे कोई ऐसा प्रकाशन नहीं करें जिससे घृणा एवं द्रोह उत्पन्न हो। अंग्रेज़ी पत्रों को मुक्त रखा गया, किंतु १८८० में लॉर्ड रिपन के आने पर वर्नाकुलर एक्ट ०७.०९.१८८१ में रद्द कर दिया गया। उसकी उदार एवं सुधार नीतियों के कारण सर्वत्र उल्लासपूर्ण वातावरण फैलल गया। सन १८८५ में इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना हुई।

     ऑफिशियल सिक्रेटस एक्ट ऑव १८८९- लार्ड रिपन की उदारता अंग्रेज़ों के लिए असह्य हो उठी। अतः अंग्रेज़ी पत्रों ने सरकार को 'कार्यालय गोपनीय प्रविष्टीकरण' को १७.१०.१८८९ से लागू करने के लिए बाध्य कर दिया। उसके द्वारा किसी योजना का प्रकाशन कानूनी अपराध घोषित कर दिया गया। वस्तुतः योजना का अर्थ राष्ट्रीय जागरण से संबंधित था।

     राजद्रोह अधिनियम १८९८- लार्ड कर्जन के १८९८ में कार्यभार ग्रहण करते ही भारतीय समाचार पत्रों पर नियंत्रण करना पुनः प्रारंभ कर दिया गया, क्योंकि अब तक लखनऊ से 'हिंदुस्तानी अवध बिहार' 'विद्या विनोद', एडवोकेट' मेरठ से 'शाहना-ए-हिंदी', 'अनीस-ए-हिंद' इटावा से 'आलवसीर', बरेली से 'युनियन' तथा इलाहाबाद से 'अभ्युदय' आदि राष्ट्रीय स्तर पर शंखनाद कर रहे थे।

     प्रेस एक्ट १९१०- बीसवीं शती के प्रारंभ होते ही विभिन्न घटनाओं ने राष्ट्रीय स्तर पर झंझावात उत्पन्न कर दिया जिसमें १९०५ का बंगाल विभाजन भी प्रमुख था। सुधार के बहाने सरकार ने विभिन्न समितियों का गठन किया, किंतु १९१० में यह अधिनियम पारित हो ही गया। इसके बाद अंततः १९२२ में यह कानून रद्द कर दिया गया।

     प्रेस एंड अनऑथराइज्ड न्यूजपेपर्स १९३०- वाइसराय इरविन ने देशव्यापी आंदोलन को देखकर इस अध्यादेश को मई-जून से लागू कर १९१० की संपूर्ण पाबंदियों को पुनः लागू कर जमानत की राशि ५०० से बढ़ाकर, हैंडबिल एवं पर्चों पर भी प्रतिबंध लगा दिया।

     प्रेस बिल १९३१- पूरा देश एवं राजनेता 'राउंड टेबुल कान्फ्रेंस में व्यस्त थे और सरकार ने इसी बीच अध्यादेश को कानून के रूप में इसे पेश कर पारित करा लिया। इसके अंतर्गत समाचार एवं पत्रों के शीर्षक, संपादकीय टिप्पणियों को बदलने का भी अधिकार सुरक्षित रख लिया गया।

     इसके बाद १९३५ में भारतीय प्रशासन कांग्रेस के हाथ में आ गया औऱ फलतः समाचार पत्रों को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। सन १८३९ में द्वितीय युद्ध प्रारंभ होते ही कांग्रेस सरकार को पदत्याग करना पड़ा और पत्रों की स्वतंत्रता पुनः नष्ट हो गई जो १९४७ तक चली। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद १९५० में नया कानून बना जिसके द्वारा लगभग सभी प्रतिरोध समाप्त कर दिए गए।

--डॉ. के. एन. पी. श्रीवास्तव
(१० अगस्त २००९)
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                     (साभार एवं सौजन्य-अभिव्यक्ती-हिंदी.ऑर्ग)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-12.12.2022-सोमवार.