प्रेम सरोवर-कविता-एक सवेरा फिर आ जाता है

Started by Atul Kaviraje, December 12, 2022, 09:31:06 PM

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Atul Kaviraje

                                     "प्रेम सरोवर"
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मित्रो,

     आज पढते है, प्रेम सरोवर, इनके "प्रेम सरोवर" इस ब्लॉग का एक कविता. इस कविता का शीर्षक है- "एक सवेरा फिर आ जाता है"

                               एक सवेरा फिर आ जाता है--
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एक सवेरा फिर आ जाता है
तुझे देखकर मन का सैलाब,
उमड़ कर फिर ठहर जाता है।
दिल को लाख समझाने पर भी,
मन भावनाओं का बादल बन,
तुझ पर बरस जाना चाहता है।

तुझे सब कुछ बता कर भी,
कुछ पूरा और कुछ अधूरा रह जाता है।
उस अधूरे को पूरा करने के,
अथक एवं अनवरत प्रयास में,
एक सवेरा फिर आ जाता है।

तुझे किस नाम से संबोधित करूं,
कोई संबोधन नजर नहीं आता है,
तुझे किस भाव से मन में समाहित करूं,
कोई सुंदर भाव नहीं बन पाता है।
उस संबोधन एवं भाव को,
ढूंढने के सतत प्रयास में,
एक सवेरा फिर आ जाता है।

अहर्निश, तुम्हारे सामीप्य –बोध की कल्पना,
मुझे इस तरह विचलित कर देती हैं,
कि मन की शांति, रात की नींद,
और दिन का सुख-चैन खो जाता है।
तुझे दोनों जहां में ढूंढने के,
अथक एवं अनवरत प्रयास में,
एक सवेरा फिर आ जाता है।

तुम्हारे सौंदर्य-पान के निरंतर प्रयास में,
मेरी आंखें थक कर, पथरा जाती है।
उन पथराई और उनींदी आंखों में,
मेरी भावनाओं की सतरंगी दुनियां में,
एक बहकी हुई तारिका की तरह,
अभिसारिके, तुम उदित हो जाती हो।

तुम्हारे हृदय की विशालता को ,
किस विशेषण से अलंकृत करूं,
मुझे कोई विशेषण नहीं मिल पाता है।
समीचीन विशेषण को ढूंढने के प्रयास में,
एक सवेरा फिर आ जाता है।

अपने दिल में थोड़ी सी जगह,
देने का तुम्हारा आश्वासन,
एक सुखद अनुभूति का एहसास कराता है।
तुम्हारे अनछुए तन, मन और भावों को,
छूने के अहर्निश प्रयास में,
एक सवेरा फिर आ जाता है।

तुम्हारे बदन की थोड़ी सी तपीश,
अनुभव करने का प्रयास,
मुझे मर्माहत एवं आर्द्र कर जाता है,
और उन कल्पनाओं को साकार करने के,
अहर्निश और सतत प्रयास में,
एक सवेरा फिर आ जाता है।

--प्रेम सरोवर
(Wednesday, December 9, 2009)
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              (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्य वर्षा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-12.12.2022-सोमवार.