साहित्यिक निबंध-निबंध क्रमांक-106-अथातो घुमक्कड़ - जिज्ञासा

Started by Atul Kaviraje, December 13, 2022, 08:52:13 PM

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Atul Kaviraje

                                   "साहित्यिक निबंध"
                                   निबंध क्रमांक-106
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मित्रो,

     आईए, आज पढते है " हिंदी निबंध " इस विषय अंतर्गत, मशहूर लेखको के कुछ बहू-चर्चित "साहित्यिक निबंध." इस निबंध का विषय है-"अथातो घुमक्कड़ - जिज्ञासा"
   
                              अथातो घुमक्कड़ - जिज्ञासा--
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     (राहुल जी भारतीय साहित्यकारों में सर्वाधिक पर्यटनशील रहे थे, इसलिए आपका जीवन-अनुभव अत्यंत व्यापक एवं व्यावहारिक था। आपने घुमक्कड़ी के धर्म को सभी धर्मों का आधारभूत धर्म कहा है और पर्यटन की प्रकृति को संसार का सबसे बड़ा सुख बताया है। आपके अनुसार घुमक्कड़ी की महिमा किसी शास्त्र से कम नहीं है। राहुल जी ने संसार के अनेक महापुरूषों की सफलता का रहस्य घुमक्कड़ी को ही बताया है और कोलंबो, डार्विन, वास्कोडिगामा, बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य, रामानुज, गुरू नानक आदि का उदाहरण सभी क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ योगदान के लिये दिया है। वस्तुत: आपके विचारों का आशय यह है कि नई-नई जगहों पर नये-नये देशों मे घूमने से व्यक्ति विभिन्न लोगों और उनकी सभ्यता तथा संस्कृति के संपर्क में आता है और इस प्रकार बहुत कुछ सीखने एवं जानने का मौका उसे मिलता है।)

     संस्कृत से ग्रंथ को शुरू करने के लिए पाठकों को रोष नहीं होना चाहिए। आखिर हम शास्त्र लिखने जा रहे हैं, फिर शास्त्र की परिपाटी को मानना ही पड़ेगा। शास्त्रों में जिज्ञासा ऐसी चीज के लिए होनी बतलायी गयी है, जो कि श्रेष्ठ तथा व्यक्ति और समाज के लिए परम हितकारी हो। व्यास ने अपने शास्त्र में ब्रह्म को सर्वश्रेष्ठ मानकर इसे जिज्ञासा का विषय बनाया। व्यास-शिष्य जैमिनी ने धर्म को श्रेष्ठ माना। पुराने ऋषियों से मतभेद रखना हमारे लिए पाप की वस्तु नहीं है, आखिर छ: शास्त्रों के रचयिता छ: आस्तिक ऋषियों में भी आधो ने ब्रह्म को धता बता दी है। मेरी समझ में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ वस्तु है घुमक्कड़ी। घुमक्कड़ से बढ़कर व्यक्ति और समाज का कोई हितकारी नहीं हो सकता। कहा जाता है, ब्रह्मा को सृष्टि करने के लिए न प्रत्यक्ष प्रमाण सहायक हो सकता है, न अनुमान ही। हाँ, दुनिया के धारण की बात तो निश्चय ही न ब्रह्म के ऊपर है, न विष्णु और न शंकर ही के ऊपर। दुनिया दुख में हो चाहे सुख में, सभी समय यदि सहारा पाती है तो घुमक्कड़ों की ही ओर से। प्राकृतिक आदिम मनुष्य परम घुमक्कड़ था। खेती, बागवानी तथा घर-द्वार से मुक्त वह आकाश के पक्षियों की भांति पृथ्वी पर सदा विचरण करता था, जाड़े में यदि इस जगह था तो गर्मियों में वहाँ से दो सौ कोस दूर।

     आधुनिक काल में घुमक्कड़ों के काम की बात कहने की आवश्यकता है, क्योंकि लोगों ने घुमक्कड़ों की कृतियों को चुरा के उन्हें गला फाड़-फाड़कर अपने नाम से प्रकाशित किया, जिससे दुनिया जानने लगी कि वस्तुत: तेली के कोल्हू के बैल ही दुनिया में सब कुछ करते हैं। आधुनिक विज्ञान में चार्ल्स डारविन का स्थान बहुत ऊँचा है। उसने प्राणियों की उत्पत्ति और मानव-वंश के विकास पर ही अद्वितीय खोज नहीं की, बल्कि कहना चाहिए कि सभी विज्ञानों को डारविन के प्रकाश में दिशा बदलनी पड़ी। लेकिन, क्या डारविन अपने महान आविष्कारों को कर सकता था, यदि उसने घुमक्कड़ी का व्रत न लिया होता?

     मैं मानता हँ, पुस्तकें भी कुछ-कुछ घुमक्कड़ी का रस प्रदान करती है, लेकिन जिस तरह फोटो देखकर आप हिमालय के देवदार के गहन बनों और श्वेत हिम-मुकुटित शिखरों के सौन्दर्य, उनके रूप, उनकी गंध का अनुभव नहीं कर सकते, उसी तरह यात्रा-कथाआ से आपको उस बँद से भेट नहीं हो सकती जो कि एक घुमक्कड़ को प्राप्त होती है। अधिक से अधिक यात्रा-पाठकों के लिए यही कहा जा सकता है कि दूसरे बातों की अपेक्षा उन्हें थोड़ा आलोक मिल जाता और साथ ही ऐसी प्रेरणा भी मिल सकती है जो स्थायी नहीं तो कुछ दिनों के लिए तो उन्हें घुमक्कड़ बना ही सकती है। घुमक्कड़ क्यों दुनिया की सर्वश्रेष्ठ विभूति है? इसीलिए कि उसी ने आज की दुनिया को बनाया है। यदि आदिम पुरूष एक जगह नदी या तालाब के किनारे गर्म मुल्क में पडे रहते, तो वह दुनिया को आगे नहीं जा सकते थे।

आदमी की घुमक्कड़ी ने बहुत बार खून की नदियाँ बहायी है, इसमें संदेह नहीं, और घुमक्कड़ों से हम हरगिज नहीं चाहेंगे कि वे खून के रास्ते को पकड़ें, किन्तु घुमक्कड़ों के काफले न आते जाते, तो सुस्त मानव जातियाँ सो जाती और पशु से ऊपर नहीं उठ पाती। आदिम घुमक्कड़ों में से आर्यों, शको, हूणों ने क्या-क्या किया, अपने खूनी पंथों द्वारा मानवता के पथ को किस तरह प्रशस्त किया, इसे इतिहास में हम उतना स्पष्ट वर्णित नहीं पाते, किन्तु मंगोल घुमक्कड़ों की करामातों को तो हम अच्छी तरह जानते हैं। बारूद, तोप, कागज, छापखाना, दिग्दर्शक चश्मा यहीं चीजें थीं, जिन्होंने पश्चिम में विज्ञान युग का आरम्भ कराया और इन चीजों को वहाँ ले जाने वाले मंगोल घुमक्कड़ थे।

--राहुल संकृत्यायन
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                      (साभार एवं सौजन्य-अभिव्यक्ती-हिंदी.ऑर्ग)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-13.12.2022-मंगळवार.