साहित्यिक निबंध-निबंध क्रमांक-107-अथातो घुमक्कड़ - जिज्ञासा

Started by Atul Kaviraje, December 14, 2022, 09:25:28 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                                   "साहित्यिक निबंध"
                                  निबंध क्रमांक-107
                                 ------------------

मित्रो,

     आईए, आज पढते है " हिंदी निबंध " इस विषय अंतर्गत, मशहूर लेखको के कुछ बहू-चर्चित "साहित्यिक निबंध." इस निबंध का विषय है-"अथातो घुमक्कड़ - जिज्ञासा"
   
                              अथातो घुमक्कड़ - जिज्ञासा--
                             ------------------------   

     कोलम्बस और वास्को डि गामा दो घुमक्कड़ ही थे, जिन्होंने पश्चिमी देशों के आगे बढ़ने का रास्ता खोला। अमेरिका अधिकतर निर्जन सा पड़ा था। एशिया के कूपमंडूक को घुमक्कड़ धर्म की महिमा भूल गयी, इसलिए उन्होंने अमेरिका पर अपनी झंडी नहीं गाड़ी। दो शताब्दियों पहले तक आस्ट्रेलिया खाली पड़ा था। चीन भारत को सभ्यता का बड़ा गर्व है, लेकिन इनको इतनी अक्ल नहीं आयी कि जाकर वहाँ अपना झंडा गाड़ आते। आज अपने ४०-५९ करोड़ की जनसंख्या के भार से भारत और चीन की भूमि दबी जा रही है, और आस्ट्रेलिया का द्वार बन्द है, लेकिन दो सदी पहले वह हमारे हाथ की चीज थी। क्यो भारत और चीन, आस्ट्रेलिया की अपार सम्पत्ति और अमित भूमि से वंचित रह गये? इसलिए कि घुमक्कड़ धर्म से विमुख थे, उसे भूल चुके थे।

     हाँ, मैं इसे भूलना ही कहँगा, क्योंकि किसी समय भारत और चीन ने बड़े-बड़े नामी घुमक्कड़ पैदा किये; वे भारतीय घुमक्कड़ ही थे, जिन्होंने दक्षिण पूरब में लंका, बर्मा, मलाया, यवदीप, स्याम, कम्बोज, चम्पा, बोर्नियो और सैलीबीज ही नहीं, फिलीपाइन तक धावा मारा था, और एक समय तो जान पड़ा कि न्यूजीलेण्ड और आस्ट्रेलिया भी बृहत्तर भारत के अंग बनने वाले है। लेकिन कूप-मंडूकता तेरा सत्यानाश हो। इस देश के बुद्धुआ ने उपदेश करना शुरू किया कि समुन्दर के खारे पानी और हिन्दू धर्म में बड़ा वैर है, उसे छूने मात्र से वह नमक की पुतली की तरह गल जायेगा। इतना बतला देने पर क्या कहने की आवश्यकता है कि समाज के कल्याण के लिए घुमक्कड़ धर्म कितनी आवश्यक चीज है? जिस जाति या देश ने इस धर्म को अपनाया, वह चारों फलों का भागी हुआ, और जिसने उसे दुराया, उसको नरक में भी ठिकाना नहीं। आखिर घुमक्कड़ धर्म को भूलने के कारण ही हम सात शताब्दियों तक धक्का खाते रहे, ऐरे-गैरे जो भी आये, हमें चार लात लगाते गये।

     शायद किसी को संदेह हो मैंने इस शास्त्र में जो युक्तियाँ दी हैं, वे सभी तो लौकिक तथा शास्त्र-अग्राह्य हैं। अच्छा तो धर्म प्रमाण लीजिए। दुनिया के अधिकांश धर्मनायक घुमक्कड़ रहे। धर्माचार्यो में आचार-विचार, बुद्धि और तर्क तथा सहृदयता में सर्वश्रेष्ठ बुद्ध घुमक्कड़ राज थे। यद्यपि वह भारत से बाहर नहीं गये लेकिन वर्ष के तीन मासों को छोड़कर एक जगह रहना वह पाप समझते थे। वह अपने आप ही घुमक्कड़ नहीं थे, बल्कि आरंभ में ही अपने शिष्यों से उन्होंने कहा था - 'चरथ भिक्खवे' , 'चरथ' जिसका अर्थ है - 'भिक्षुओ। घुमक्कड़ी करो!' बुद्ध के भिक्षुआ ने अपने गुरू की शिक्षा को कितना माना, क्या इसे बताने की आवश्यकता है? क्या उन्होंने पश्चिम में मकदूबिया तथा मिस्र से पूरब में जापान तक, उत्तर में मंगोलिया से लेकर दक्षिण में बाली और बांका के द्वीपों तक रौंदकर रख नहीं दिया? जिस बृहत्तर भारत के लिए हरेक भारतीय को उचित अभिमान है, क्या उसका निर्माण इन्हीं घुमक्कड़ों का इतना जोर बुद्ध से एक-दो शताब्दियों पूर्व भी था, जिसके कारण ही बुद्ध जैसे घुमक्कड़ राज इस देश में पैदा हो सके। उस वक्त पस्र्ष ही नहीं स्त्रियाँ तक जम्बू-वृक्ष की शाखा ले, अपनी प्रखर प्रतिभा का जौहर दिखाती, बाद में कूप-मंडूकों को पराजित करती सारे भारत में मुक्त होकर विचरण करती थी।

--राहुल संकृत्यायन
-----------------

                      (साभार एवं सौजन्य-अभिव्यक्ती-हिंदी.ऑर्ग)
                     --------------------------------------

-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-14.12.2022-बुधवार.