साहित्यिक निबंध-निबंध क्रमांक-113-आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास

Started by Atul Kaviraje, December 20, 2022, 09:15:57 PM

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Atul Kaviraje

                                  "साहित्यिक निबंध"
                                  निबंध क्रमांक-113
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मित्रो,

     आईए, आज पढते है " हिंदी निबंध " इस विषय अंतर्गत, मशहूर लेखको के कुछ बहू-चर्चित "साहित्यिक निबंध." इस निबंध का विषय है-"आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास"
   
                         आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास--
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                       छायावाद

     कविता की दृष्टि से यह मह इस काल में एक दूसरी धारा भी थी जो सीधे सीधे स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ी थी। इसमें माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा 'नवीन', नरेन्द्र शर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, श्रीकृष्ण सरल आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
इस युग की प्रमुख कृतियों में जय शंकर प्रसाद की कामायनी और आंसू, सुमित्रानंदन पंत का पल्लव, गुंजन और वीणा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की गीतिका और अनामिका, तथा महादेवी वर्मा की यामा, दीपशिखा और सांध्यगीत आदि कृतियां महत्वपूर्ण हैं। कामयनी को आधुनिक काल का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य कहा जाता है।

     छायावादोत्तर काल में हरिवंशराय बच्चन का नाम उल्लेखनीय है। छायावादी काव्य में आत्मपरकता, प्रकृति के अनेक रूपों का सजीव चित्रण, विश्व मानवता के प्रति प्रेम आदि की अभिव्यक्ति हुई है। इसी काल में मानव मन सूक्ष्म भावों को प्रकट करने की क्षमता हिंदी भाषा में विकसित हुई।

                        प्रगतिवाद

     सन १९३६ को आसपास से कविता के क्षेत्र में बड़ा परिवर्तन दिखाई पड़ा प्रगतिवाद ने कविता को जीवन के यथार्थ से जोड़ा। प्रगतिवादी कवि कार्ल मार्क्स की समाजवादी विचारधारा से प्रभावित हैं।

     युग की मांग के अनुरूप छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपनी बाद की रचनाओं में प्रगतिवाद का साथ दिया। नरेंद्र शर्मा और दिनकर ने भी अनेक प्रगतिवादी रचनाएं कीं। प्रगतिवाद के प्रति समर्पित कवियों में केदारनाथ अग्रवाल, नागार्जुन, शमशेर बहादुर सिंह, रामविलास शर्मा, त्रिलोचन शास्त्री और मुक्तिबोध के नाम उल्लेखनीय हैं।

     इस धारा में समाज के शोषित वर्ग -मज़दूर और किसानों-के प्रति सहानुभूति व्यक्त की गयी, धार्मिक रूढ़ियों और सामाजिक विषमता पर चोट की गयी और हिंदी कविता एक बार फिर खेतों और खलिहानों से जुड़ी।

                        प्रयोगवाद

     प्रगतिवाद के समानांतर प्रयोगवाद की धारा भी प्रवाहित हुई। अज्ञेय को इस धारा का प्रवर्तक स्वीकर किया गया। सन १९४३ में अज्ञेय ने तार सप्तक का प्रकाशन किया। इसके सात कवियों में प्रगतिवादी कवि अधिक थे। रामविलास शर्मा, प्रभाकर माचवे, नेमिचंद जैन, गजानन माधव मुक्तिबोध, गिरिजाकुमार माथुर और भारतभूषण अग्रवाल ये सभी कवि प्रगतिवादी हैं। इन कवियों ने कथ्य और अभिव्यक्ति की दृष्टि से अनेक नए नए प्रयोग किये। अत: तारसप्तक को प्रयोगवाद का आधार ग्रंथ माना गया। अज्ञेय द्वारा संपादित प्रतीक में इन कवियों की अनेक रचनाएं प्रकाशित हुयीं।

                      नई कविता और समकालीन कविता

     सन १९५३ ईस्वी में इलाहाबाद से "नई कविता" पत्रिका का प्रकाशन हुआ। इस पत्रिका में नई कविता को प्रयोगवाद से भिन्न रूप में प्रतिष्ठित किया गया। दूसरा सप्तक(१९५१), तीसरा सप्तक(१९५९) तथा चौथे सप्तक के कवियों को भी नए कवि कहा गया। वस्तुत: नई कविता को प्रयोगवाद का ही भिन्न रूप माना जाता है। इसमें भी दो धराएं परिलक्षित होती हैं।

     वैयक्तिकता को सुरक्षित रखने का प्रयत्न करने वाली धारा जिसमें अज्ञेय, धर्मवीर भारती, कुंवर नारायण, श्रीकांत वर्मा, जगदीश गुप्त प्रमुख हैं तथा प्रगतिशील धारा जिसमें गजानन माधव मुक्तिबोध, रामविलास शर्मा, नागार्जुन, शमशेर बहादुर सिंह, त्रिलोचन शास्त्री, रघुवीर सहाय, केदारनाथ सिंह तथा सुदामा पांडेय धूमिल आदि उल्लेखनीय हैं। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना में इन दोनों धराओं का मेल दिखाई पड़ता है। इन दोनो ही धाराओं में अनुभव की प्रामाणिकता, लघुमानव की प्रतिष्ठा तथा बौधिकता का आग्रह आदि प्रमुख प्रवृत्तियां हैं। साधारण बोलचाल की शब्दावली में असाधारण अर्थ भर देना इनकी भाषा की विशेषता है।

     समकालीन कविता मे गीत नवगीत और गज़ल की ओर रूझान बढ़ा है। आज हिंदी की निरंतर गतिशील और व्यापक होती हुई काव्यधारा में संपूर्ण भारत के सभी प्रदेशों के साथ ही साथ संपूर्ण विश्व में लोकिप्रिय हो रही है। इसमें आज देश विदेश में रहने वाले अनेक नागरिकताओं के असंख्य विद्वानों और प्रवासी भारतीयों का योगदान निरंतर जारी है।

--पूर्णिमा वर्मन
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                      (साभार एवं सौजन्य-अभिव्यक्ती-हिंदी.ऑर्ग)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-20.12.2022-मंगळवार.