साहित्यशिल्पी-देश के जयघोषण का पर्व है-गणतंत्र दिवस

Started by Atul Kaviraje, December 20, 2022, 09:25:01 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "देश के जयघोषण का पर्व है-गणतंत्र दिवस" 

                      देश के जयघोषण का पर्व है-गणतंत्र दिवस-- 
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यु गर्व से सिर उठाने का दिन ० देश के जयघोषण का पर्व है-गणतंत्र दिवस (26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर विशेष) .[आलेख]- डॉ. सूर्यकांत मिश्रा-
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     हमें गौरवान्वित करने वाले गणतंत्र पर्व ने हमें अपने शुरूआती दिनों से ही संगठित रहने की प्रेरणा प्रदान की है। किसी भी देश के संविधान की तुलना में धर्म और जाति से ऊपर हमारे संविधान का स्थान अलग ही है। समाज के सबसे निम्न स्तर पर रहने वालों से लेकर उच्च घरानों और मध्यम वर्गीय लोगों के लिए समान कानून और अधिकार की बात करने वाले अनुच्छेदों ने ही भारत वर्ष की एकात्मवाद और संगठनात्मक शक्ति को वह प्रदान किया है जिसके सहारे हमारा कद विश्व स्तर पर प्रतिदिन आकाश छू रहा है। छोटे छोटे बच्चों के हाथ में लहराते तिरंगे इस बात का प्रतीक माने जा सकते है कि वे विशुद्ध मन से अपने राष्ट्रीय प्रतीक के प्रति सम्मान की भावना रखते है। हमें बड़ी कोफ्त होती है जब हम देखते है कि इसी तिरंगे को अपने कार्यालय और कार्य करने वाले टेबल पर राष्ट्रीय भावना का दिखावा करते हुए रखने और लहराने वाले लोग देश विरोध गतिविधियों में संलग्न पाये जाते है। प्रत्येक भारतीय के मस्तक को गर्व से ऊंचा करने वाले इसी तिरंगे को अपनी स्वार्थगत विधि में इस्तेमाल करने वाले गद्दारों की भूमिका ने ही अनेक बार हमें शर्मसार भी किया है। हम अपने देश के साहसी बच्चों को इसी गणतंत्र पर्व पर हाथी में सवार कर हजारों लाखों लोगों के बीच उनकी वीरता की कहानी बताते देश के राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित कराते रहे है। इन बच्चों का सम्मान और किसी आयेाजन में भी किया जा सकता है, किंतु गणतंत्र पर्व की राष्ट्रीय महत्ता को और बढ़ाने के लिए ही बच्चों के साहस को इसी दिन सम्मानित करने की परंपरा बनायी गयी है।

     26 जनवरी के दिन संविधान लागू होने के साथ ही और भी गौरवशाली काम हुए है, जिससे यह दिन यादगार बन पड़ा है। हमनें 1950 में जब अपना पहला गणतंत्र पर्व मनाया, तब वह भी एक इतिहास लिख गया। हमनें अपने राष्ट्रीय तिरंगे को इर्विन स्टेडियम में गगनाधीन कर उसे सलामी दी। संविधान लागू होने से पूर्व 26 जनवरी 1930 पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाता था। इसी कारण संविधान के लिए भी इसे ही तय किया गया। इसी दिन 26 जनवरी 1950 को हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने गवर्मेंट हाऊस में शपथ ग्रहण किया। साथ ही 1955 को 26 जनवरी के दिन ही गणतंत्र दिवस की पहली परेड राजपथ पर हुई। इस प्रथम परेड पर गणतंत्र पर्व के मुख्य अतिथि भारत वर्ष से अलग होकर बने पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मोहम्मद थे। भारत वर्ष का राष्ट्रीय पक्षी कौन होगा, इसे भी मोर के रूप में स्वीकृति 26 जनवरी 1963 को ही प्रदान की गयी। इसके साथ ही सारनाथ के अशोक स्तंभ पर बने सिंह को राष्ट्रीय चिह्न के रूप में 26 जनवरी को ही अपनाया गया।

     26 जनवरी गणतंत्र पर्व के आयोजन में भाग लेना बड़े सम्मान की बात मानी जाती है। प्रत्येक वर्ष परेड का प्रारंभ करते हुए देश के प्रधानमंत्री अमर जवान ज्योति, जो देश के सैनिकों की याद में बनाया गया स्मारक है, और राजपथ के एक छोर पर इंडिया गेट पर स्थित है, प्रधानमंत्री द्वारा पुष्प अर्पित किया जाता है। शहीदों की याद में दो मिनट की मौन श्रद्धांजलि भी दी जाती है। इसी श्रद्धांजलि के साथ हम अपने शहीद जवानों को जो सम्मान प्रदान करते है, वह भी हमें गौरवान्वित कर जाता है। सुबह से लेकर देर शाम तक देशभक्ति के ओत प्रोत कार्यक्रम और देशभक्ति के गीतों से पूरा देश गूंजायमान रहता है। सबसे बड़ी बात यह कि राष्ट्रीय पर्व के अवसर पर सभी ओर भाईचारा और राष्ट्रवाद का परचम दिखाई पड़ता है। फिर कोई चाहे हिंदू हो, मुस्लिम हो, सिक्ख अथवा ईसाई या फिर किसी और धर्म का पुजारी हो 26 जनवरी गणतंत्र पर्व के अवसर पर अपना सिर से गर्व से ऊंचा कर राष्ट्रीय प्रतीक तिरंगे को सलामी देता दिखाई पड़ता है। यही हमारा सबसे बड़ा गर्व कहा जा सकता है।

--प्रस्तुतकर्ता-डा. सूर्यकांत मिश्रा
राजनांदगांव (छ.ग.)
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                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-20.12.2022-मंगळवार.