साहित्यशिल्पी-युवाओं के सबसे बड़े प्रेरणास्त्रोत रहे हैं स्वामी विवेकानंद-अ-

Started by Atul Kaviraje, December 21, 2022, 09:27:49 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "युवाओं के सबसे बड़े प्रेरणास्त्रोत रहे हैं स्वामी विवेकानंद" 

             युवाओं के सबसे बड़े प्रेरणास्त्रोत रहे हैं स्वामी विवेकानंद–अ--
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युवाओं के सबसे बड़े प्रेरणास्त्रोत रहे हैं स्वामी विवेकानंद (12 जनवरी युवा दिवस पर विशेष) [आलेख]- डॉ. सूर्यकांत मिश्रा-
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     बालक नरेन्द्र से विवेकानंद तक की यात्रा करने वाले स्वामी विवेकानंद का नाम सच्चे देश प्रेमी और मातृ भूमि के प्रति सब कुछ न्यौछावर कर देने वाले एकमात्र संत एवं दार्शनिक के रूप में अखिल विश्व में सदैव अविस्मरणीय रहेगा। यह भारत वर्ष का सौभाग्य कहा जाना चाहिए कि ऐसे बिरले और महान विचारक ने भारत मां की कोख से जन्म लिया। आज पूरे विश्व में ऐसी शख्सियत नहीं, जिसकी तुलना स्वामी विवेकानंद जी से की जा सके। वे मानते थे कि देश के युवा ही देश की तस्वीर बदल सकते है। उन्होंने सदैव युवाओं का आह्वान करते हुए मातृभूमि की सेवा का संकल्प दोहराया। विदेशी सत्ता की दास्ता से दुखी और शोषण का शिकार हो रही अपने देश की जनता का दर्द स्वामी जी ने सबसे पहले समझा। यही कारण था कि उन्होंने अंग्रेजों के विरूद्ध संघर्ष के लिए देशवासियों को प्रोत्साहित किया। स्वामी जी की वाणी में सरस्वती का वाश था। अपनी ओजस्वी वाणी के दम पर ही उन्होंने जनमानस के अंदर स्वतंत्रता का शंखनाद किया। बिना किसी स्वार्थ के मातृभूमि के प्रति सच्ची सेवाभक्ति के चलते ही स्वामी जी युवाओं के प्रेरणास्त्रोत बन गये।

     19वीं शताब्दी में विदेशी शासन की क्रूर हरकतों से दुखी स्वामी विवेकानंद ने संघर्ष के लिए युवाओं को प्रोत्साहित करना शुरू किया। वे स्वामी विवेकानंद थे जिन्होंने अपनी प्रभावी और ओजस्वी वाणी से जनमानस के हृदय को जीतकर उनके मन में स्वतंत्रता का शंखनाद किया। अपनी जन्मभूमि और मातृभूमि के प्रति तन, मन से समर्पित स्वामी जी का मन देश भक्ति में आकंठ डूबा हुआ था। अपनी जन्मभूमि को आपाद मस्तक जंजीरों से जकड़ा देख स्वामी जी का हृदय व्याकुल हो उठता था। रोम-रोम में समाये राष्ट्र प्रेम के चलते ही उन्होंने मद्रास के अपने शिष्यों का आह्वान करते हुए कहा था 'भारत माता हजारों युवकों की बली चाहती है, याद रखो मनुष्य चाहिए, पशु नहीं।Ó अपने इस आह्वान भरे मंत्र में स्वामी जी ने जहां राष्ट्र प्रेम का जागरण किया, वहंी दूसरी ओर युवाओं को मनुष्य बनने की प्रेरणा भी प्रदान की। स्वामी जी इन शब्दों के माध्यम से यह समझाना चाहते थे कि देश को संपन्न बनाने के लिए पैसों से ज्यादा हौसले की, ईमानदारी की और प्रोत्साहन की जरूरत होती है। स्वामी विवेकानंद जी के विचारों में चिंतन और सेवा का जो मिश्रण था, वह आज भी अमृत वचन के लिए रूप में देशवासियों को जागृत करता देखा सकता है। अपने बोध गम में चिंतन के द्वारा ही स्वामी जी ने विदेशों में भारत को सम्मानित स्थान दिलाया। उनके मन की श्ुाद्धि और राष्ट्र प्रेम की झलक उस समय प्रत्यक्ष रूप से सामने आयी, जब सन 1896 में वे अपने विदेश भ्रमण से देश लौटे। जैसे ही जहाज भारत वर्ष की सरजमीं में पहुंचा, स्वामी जी ने लगभग दौड़ की मुद्रा में भारत भूमि को षाष्टांग प्रमाण किया। साथ ही समुद्र किनारे की रेत पर इस प्रकार की लोटने लगे मानो कोई बिछड़ा हुआ पुत्र अपनी मां से मिलकर उसकी गोद और आंचल में स्नेह दुलार पाना चाहता हो।

--प्रस्तुतकर्ता-(डा. सूर्यकांत मिश्रा)
--जूनी हटरी, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)
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                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-21.12.2022-बुधवार.