साहित्यशिल्पी-युवाओं के सबसे बड़े प्रेरणास्त्रोत रहे हैं स्वामी विवेकानंद–ब-

Started by Atul Kaviraje, December 21, 2022, 09:30:21 PM

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Atul Kaviraje

                                      "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "युवाओं के सबसे बड़े प्रेरणास्त्रोत रहे हैं स्वामी विवेकानंद" 

            युवाओं के सबसे बड़े प्रेरणास्त्रोत रहे हैं स्वामी विवेकानंद–ब--
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युवाओं के सबसे बड़े प्रेरणास्त्रोत रहे हैं स्वामी विवेकानंद (12 जनवरी युवा दिवस पर विशेष) [आलेख]- डॉ. सूर्यकांत मिश्रा-
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     स्वामी जी ने अपने शब्दों में युवा को कुछ अलग तरह से शब्दांकित किया था। उन्होंने कहा था कि युवा का अर्थ है, स्वयं में दृंढ विश्वास रखना, अपने आशावादी निश्चय तथा संकल्प का अभ्यास करना तथा स्व संस्कृति के इस सुंदर कार्य में अच्छे इरादों की इच्छा रखना। उन्होंने कहा था कि तुम्हारे ऐसे ही विचार न केवल तुम्हें बल्कि तुमसे जुड़े सभी लोगों को संतुष्टि एवं पूर्णता देंगे। युवाओं को जागृत करते हुए वे कहा करते थे कि अपने जीवन को आकार देना तुम्हारे हाथों में है। सद्गुण का अभ्यास करो, सद्गुणों के प्रति दृढ़ रहो, सद्गुणों में खुद को स्थापित करो, सद्गणों की प्रभावशाली आभा बनो और अच्छाई का अनुशरण करो। युवावस्था में हमें इन प्रक्रियाओं को संपन्न करने के लिए ही मिली है। स्वामी विवेकानंद जी को विश्वास था कि हमारा देश उठेगा, ऊपर उठेगा और इसी युवा वर्ग के बीच से ऊंचा स्थान प्राप्त करेगा। स्वामी जी को कायरता से कट्टर नफरत थी। वे कहा करते थे कायरता त्यागो, निद्रा त्यागो और स्वाधीनता को अपनी शक्ति द्वारा प्राप्त करो। वे कहा करते थे कि हमें भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए। उन्होंने युवाओं को संदेश दिया कि हे! भाग्यशाली युवा, अपने महान कर्तव्य को पहचानो! इस अद्भुत सौभाग्य को महसूस करो, इस रोमांच को स्वीकार करो। मैं तुम्हारे महान बनने की कामना करता हूं। युवा होने का अर्थ महज नाम कमाना या पद प्राप्त करना या आधुनिक दिखने के लिए फैशनेबल तरीकों की नकल करना अथवा अप-टू-डेट होना नहीं है। सच्चाई सफलता का सार यह है कि तुम स्वयं को कैसा बनाते हो।

     स्वामी विवेकानंद जी के अवतरण दिवस को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने अपने चिर यौवनकाल में ही भारत के गौरव को पूरे विश्व में सम्मान दिलाते हुए गौरवान्वित कर दिखाया। स्वामी विवेकानंद जी ने गुलामी के दिनों में हीनता से ग्रस्त भारत देश को अनुभव कराया कि इस देश की संस्कृति अब भी अपनी श्रेष्ठता में अद्वितीय है। स्वामी जी ने देशवासियों के अंतर्मन में जीवन प्राण फूंका, उन्होंने कहा कि 'हे! अमृत के अधिकारीगण! तुम ईश्वर की संतान हो, अमर आनंद के भागीदार हो, पवित्र और पूर्ण आत्मा हो, तुम इस मृत्युलोक के देवता हो। उठो! आओ! ऐ सिंहों! इस मिथ्या भ्रम को झटककर दूर फेंक दो कि तुम भेड़ हो।Ó तुम जरा मरणरहित नित्यानंद आत्मा हो। स्वामी जी की विद्वता और उनके विवेक के आगे नतमस्तक होकर एक बार अमेरिकी प्रोफेसर राईट ने कहा था 'हमारे अमेरिका में जितने भी विद्वान है, उन सबके ज्ञान को यदि एकत्र भी कर लिया जाये, तो भी स्वामी विवेकानंद के ज्ञान के बराबर नहीं हो सकेगा।

     स्वामी विवेकानंद भारत वर्ष के महान सपूत, देशभक्त, समाज सुधारक और तेजस्वी सन्यासी थे। स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा और उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाने का प्रयास करते हुए उन्हें शत-शत नमन करना हमारी सांस्कृतिक गरिमा की पहचान है। आज उनकी जयंती के अवसर पर हम स्मरण कर वंदन करें, यही उनके प्रति हमारी आदरांजलि होगी।

--प्रस्तुतकर्ता-(डा. सूर्यकांत मिश्रा)
--जूनी हटरी, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)
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                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-21.12.2022-बुधवार.