साहित्यशिल्पी-गुजरात के चुनाव में आदिवासियों की उपेक्षा क्यों ?-1-

Started by Atul Kaviraje, December 22, 2022, 09:41:14 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                                      "साहित्यशिल्पी"
                                     ---------------

मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "गुजरात के चुनाव में आदिवासियों की उपेक्षा क्यों ?" 

                 गुजरात के चुनाव में आदिवासियों की उपेक्षा क्यों ?-1-- 
                ----------------------------------------------

गुजरात के चुनाव में आदिवासियों की उपेक्षा क्यों? - [आलेख]- ललित गर्ग-
---------------------------------------------------------------

     गुजरात में 9 और 14 तारीख को होने वाले विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की निगाहें लगी हुई हैं और जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, राजनीतिक दलों की आक्रामकता बढ़ती जा रही है। नोटबंदी और जीएसटी के नेगेटिव पक्ष को छोड़कर कांग्रेस के पास कोई मुद्दा ही नहीं है। भाजपा भी मुद्दाविहीन दिखाई दे रही है। ऐसे में जनता को भ्रमित करने के लिए उसका शीर्ष नेतृत्व अनाप-शनाप बयानबाजी कर रहा है। चुनाव में जनता से जुड़े एवं कतिमय बड़े मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए थी। लेकिन, अब तक के चुनाव प्रचार से इतना तो साफ हो गया है कि यह चुनाव मुद्दाविहीन चुनाव है। इस चुनाव में जनता की समस्याओं, मसलन, गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, पानी, बिजली आदि पर कोई बात नहीं की जा रही है। आदिवासी समस्याएं, गुजरात चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा होना चाहिए, लेकिन ऐसा न होना भी इन चुनावों की सबसे बड़ी विडम्बना है।

     कांग्रेस हो या भाजपा और अन्य दलों ने इस महत्वपूर्ण मुद्दें को तवज्जों न देकर राजनीतिक अपरिपक्वता का ही परिचय दिया है। आरक्षण, दलित उत्पीड़न जैसे मुद्दों को कांग्रेस भुनाना चाहती है लेकिन आदिवासी जनता की समस्या पर कोई ठोस वादा किसी भी पार्टी की तरफ से होता नहीं दिख रहा है। जबकि गुजरात के राजनीतिक मस्तक पर ये ही आदिवासी तिलक करते रहे हैं। लेकिन कोई भी दल इस बात को स्वीकार नहीं कर रहा है। क्या यह सोची-समझी रणनीति है या आदिवासी समाज की उपेक्षा? इस बार गुजरात के इन चुनावों में आदिवासी लोगों के प्रति उदासीनता के कारण भी ये चुनाव भाजपा के लिये लोहे के चने चबाने जैसे साबित हो रहे हैं।

     आजादी के सात दशक बाद भी गुजरात के आदिवासी उपेक्षित, शोषित और पीड़ित नजर आते हैं। राजनीतिक पार्टियाँ और नेता आदिवासियों के उत्थान की बात करते हैं, लेकिन उस पर अमल नहीं करते। आज इन क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वरोजगार एवं विकास का जो वातावरण निर्मित होना चाहिए, वैसा नहीं हो पा रहा है, इस पर कोई ठोस आश्वासन इन चुनावों में मिलना चाहिए, वह भी मिलता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। अक्सर आदिवासियों की अनदेखी कर तात्कालिक राजनीतिक लाभ लेने वाली बातों को हवा देना एक परम्परा बन गयी है। इस परम्परा को बदले बिना देश को वास्तविक उन्नति की ओर अग्रसर नहीं किया जा सकता। देश के विकास में आदिवासियों की महत्वपूर्ण भूमिका है और इस भूमिका को सही अर्था में स्वीकार करना वर्तमान की बड़ी जरूरत है और इसके लिए चुनाव का समय निर्णायक होता है।

     गुजरात में अभी भी आदिवासी दोयम दर्जे के नागरिक जैसा जीवनयापन कर रहे हैं। जबकि केंद्र सरकार आदिवासियों के नाम पर हर साल हजारों करोड़ रुपए का प्रावधान बजट में करती है। इसके बाद भी 7 दशक में उनकी आर्थिक स्थिति, जीवन स्तर में कोई बदलाव नहीं आया है। स्वास्थ्य सुविधाएँ, पीने का साफ पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं आदि मूलभूत सुविधाओं के लिए वे आज भी तरस रहे हैं। आखिर चुनाव का समय इन स्थितियों में बदलाव का निर्णायक दौर होता है, लेकिन इनकी उपेक्षा चुनाव की पृष्ठभूमि को ही धुंधला रही है।

     गुजरात को हम भले ही समृद्ध एवं विकसित राज्य की श्रेणी में शामिल कर लें, लेकिन यहां आदिवासी अब भी समाज की मुख्य धारा से कटे नजर आते हैं। इसका फायदा उठाकर मध्यप्रदेश से सटे नक्सली उन्हें अपने से जोड़ लेते हैं। सरकार आदिवासियों को लाभ पहुँचाने के लिए उनकी संस्कृति और जीवन शैली को समझे बिना ही योजना बना लेती हैं। ऐसी योजनाओं का आदिवासियों को लाभ नहीं होता, अलबत्ता योजना बनाने वाले जरूर फायदे में रहते हैं। महँगाई के चलते आज आदिवासी दैनिक उपयोग की वस्तुएँ भी नहीं खरीद पा रहे हैं। वे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं। अतः गुजरात की बहुसंख्य आबादी आदिवासियों पर विशेष ध्यान देना होगा।

--प्रेषकः-(ललित गर्ग)
--दिल्ली-11 00 51
-------------------

                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
                   -----------------------------------------

-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-22.12.2022-गुरुवार.