सुनीता यादव-अपनी-सी लगे मॉरीशस की धरती-3

Started by Atul Kaviraje, December 24, 2022, 10:18:26 PM

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Atul Kaviraje

                                   "सुनीता यादव"
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मित्रो,

     आज पढते है,सुनीता प्रेम यादव, इनके "सुनीता यादव" इस कविता ब्लॉग का एक लेख  . इस कविता का शीर्षक है- "अपनी-सी लगे मॉरीशस की धरती"

मॉरीशस: बड़े अच्छे लगते हैं ये धरती, ये नदिया, ये रैना और यहाँ के लोग ..

                          "अपनी-सी लगे मॉरीशस की धरती"-3-
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     चैन-बेचैन मन लिए निकल पड़ी सागर के तट पर कुसुम के साथ.....अंतर्विरोधी मन के सपने में नीली-पीली चमकीली सीपियाँ....पढ़ती रही  उठती –गिरती तरंगों की भाषा...
मन के कीड़े को मिली शांति अगले दिन( अगला दिन वाटर स्पोर्ट्स का दिन रहा । पूर्वी तट पर बना कोरल रीफ़ के कुछ दूरी पर स्थित ट्रौ डी अउ डौस बे पहुंचे। टिकट खरीदकर  एक बोट के जरिए इल ऑफ सर्फ बीच तक पहुँच गए। इश्क-इश्क-सा, बेफिक्र-सी मैं... निकली कुसुम के संग  मन भीगा-तन भीगा! भीगी-सी मैं आनंद से भरपूर हम ...लौट कर खाना खाए फिर निकले बेलामारे बीच पर जल प्रपात देखने । मीठे पानी का प्रपात खारे जल के बीच ! लौट कर ट्यूब राईड किए। ये क्या सचिन जी की  तबीयत खराब हो गई! उनके हिस्से का पैरा-सीलिंग, और सी- वॉकिंग का अवसर यूँ मिलेगा सोचा न था। सचिन जी ! धन्यवाद! समुद्र की सतह नापती , मछलियों को खाना खिलाती आसमान की सैर करती मैं उस असीम को याद कर रही थी ...आज ही के दिन तो हम कभी मिले थे...मन तार-तार झंकृत हो रहा था। मित्रों के संग समुद्र के बीच, अफ्रीकी धुन पर थिरकते हम, नाच-गाना-बजाना मजेदार अनुभव! तट पर आने के बाद सहेलियों संग समुद्र और हम....अनुभूति की भाषा, शब्द मौन....
शामें मलंग –सी .....रातें सुरंग–सी
हर शाम रंगीन, गजल और शेर-ओ–शायरी के नाम, नज्म, छंद, दोहे, मुक्तक, हाइकु, अकविता के नाम,कृष्ण के नाम ,उसकी  सृष्टि के नाम, माँ के नाम जीवन के फलसफे के नाम .... प्यारी –सी कुसुम,नन्हा संगीत के नाम,बीच पर मिले दोस्तों के नाम,होटल में मिले अपनों के नाम.... लंबी प्रतीक्षा के बाद नयन दर्शनाभिलाषी पूजनीय गुरुजनों के शब्द – सामर्थ्य  के नाम... परिकल्पना के नाम ....

     उत्तरी मॉरीशस में स्थित ग्रांड बे कई बड़े पब और डिस्को के लिए मशहूर है। खुले रेस्तराँ में संगीत की धुन पर थिरकते लोगों को देखना तथा अपनी पसंद से गाने गवाना , अपने होटल में सभी मित्रों के साथ हिन्दी गानों के धुन पर थिरकना किसे अच्छा नहीं लगता
सब मस्ती कर आई मैं /सुबह- दोपहर- शाम- रात तेरे नाम कर आई मैं(/ रूह की थाली में दर्द परोस आई मैं/ कब आएगी जागन की बेला, इंतजार में थक गई मैं/ जीवन मृगतृष्णा, जल आभास , प्यास मिटाने व्याकुल-सी मैं...लौट आती लहरों के पास .. एक प्यासी की भाषा ...प्रतीक्षा उसकी आशा ...
दो महत्त्वपूर्ण सत्र (6 एवं 7 सितंबर) के यादगार पल

--सुनीता प्रेम यादव
औरंगाबाद,महाराष्ट्र   
(Friday, March 11, 2022)
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              (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-सुनीता यादव.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-24.12.2022-शनिवार.