अरुन अनन्त-कविता-जब बुढ़ापे का, खुदा दे के सहारा छीने

Started by Atul Kaviraje, December 25, 2022, 10:01:19 PM

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Atul Kaviraje

                                   "अरुन अनन्त"
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मित्रो,

     आज पढते है, अरुन अनन्त, इनके "अरुन अनन्त" इस ब्लॉग की एक कविता. इस कविता का शीर्षक है- "जब बुढ़ापे का, खुदा दे के सहारा छीने"

                          "जब बुढ़ापे का, खुदा दे के सहारा छीने"
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मौत को दूर, मुसीबत बेअसर करती है,
गर दुआ प्यार भरी, साथ सफ़र करती है,

जान लेवा ये तेरी, शोख़ अदा है कातिल,
वार पे वार, कई बार नज़र करती है,

देख के तुम न डरो, तेज हवा का झोंका,
राज की बात हवा, दिल को खबर करती है,

फासले बीच भले, लाख रहे हों हरदम,
फैसला प्यार का, तकदीर मगर करती है,

जख्म से दर्द मिले, पीर मिले चाहत से,
प्यार की मार सदा, घाव जबर करती है,

जब बुढ़ापे का, खुदा दे के सहारा छीने,
रात अंगारों के, बिस्तर पे बसर करती है...

--अरुन अनन्त
(Monday, December 31, 2012)
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              (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-अरुन अनन्त.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-25.12.2022-रविवार.