साहित्यशिल्पी-इतिहास और जातीयता के विषय में-अ-

Started by Atul Kaviraje, December 29, 2022, 09:24:00 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "इतिहास और जातीयता के विषय में आचार्य शुक्ल और डॉ.रामविलास शर्मा की मान्यताएं" 

इतिहास और जातीयता के विषय में आचार्य शुक्ल और डॉ.रामविलास शर्मा की मान्यताएं [आलेख]- अश्विनी कुमार लाल-अ--
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     साहित्यिक जातीय रूप और विशेषताओं की चर्चा करते हुए डॉ.शर्मा लिखते हैं- "भाषा साहित्य का रूप है। हमारे साहित्य का जातीय रूप हिंदी भाषा है। हिंदी भाषी क्षेत्र में अनेक बोलियां बोली जाती हैं। इनमें खड़ी बोली हमारी जातीय भाषा बनी बाकी बोलियां नहीं। शुक्ल जी ने खड़ी बोली के प्रसार के मुख्य ऐतिहासिक कारणों का उल्लेख किया और साहित्य में उसकी विकास की रूपरेखा तैयार की।" डॉ.रामविलास शर्मा ने हिंदी भाषी प्रदेश को एक पिछड़ा हुआ प्रदेश कहा है। क्यों कि यहां के लोगों में जातीय चेतना का प्रसार उस तरह नहीं हुआ जैसे बंगाल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु या आंध्र में। इसका मूल कारण यह है कि हिंदी प्रदेश में सामंतवाद का गहरा असर है। यहां वर्ण-व्यवस्था की कट्टरता, हिंदू-मुस्लिम भेद-भाव अपने चर्मोत्कर्ष पर है। इन सब कारणों से यहां का औद्योगिक और सांस्कृतिक विकास अवरुद्ध रहा है। हिंदी प्रदेश में रहने वाले लोग ही यहां की भाषा और साहित्य को 'गंवारु' कहते हैं और अंग्रेजी भाषा को 'श्रेष्ठ' मानते हैं। इस संदर्भ में डॉ.शर्मा का कथन बहुत सार्थक है, "हिंदी साहित्य की जातीय विशेषताओं और उसके सहज विकास के सबसे बड़े शत्रु वे हिंदी वाले ही है जो रूढि़वाद के गुलाम हैं, और हिंदी को तंग सामंती दायरे से बाहर निकलने नहीं देना चाहते। इनके लिए सा‍हित्य का जो कुछ विकास होना चा‍हिए था वह संस्कृत में हो चुका, हिंदी में अगर कोई अच्छाई है तो यह कि वह संस्कृ्त के नजदीक है और तत्सम् शब्दों की भरमार करके और भी राष्ट्रीय बनाई जा सकती है। इन लोगों का दिमाग संस्कृत ही नहीं, अंग्रेजी और फारसी के लिए पायन्दाज है। हिंदी के ज्यादातर रूढि़वादी हिंदी के बारे में शोर मचाने के बावजूद हिंदी साहित्य से अपरिचित हैं, उनके मन में हिंदी के लिए जरा भी सम्मान की भावना नहीं है।"इस प्रकार हिंदी प्रदेश में रहने वाले लोग अंग्रेजी और संस्कृत से इस कदर आतंकित हैं कि वे हिंदी भाषा के महत्व को भूल गए हैं। वे नहीं जानते हैं कि हिंदी हमारी जातीय भाषा है जो हमारी जातीय एकता को सुदृढ़ करती है। आचार्य शुक्ल में शर्मा जी ने जातीय चेतना एवं जातीय सम्मान की भावना को देखा है। आचार्य शुक्ल ने हिंदी-उर्दू को एक ही जाति की भाषा माना है। डॉ.शर्मा ने शुक्ल जी के संदर्भ में लिखा है- "आचार्य शुक्ल हिंदी प्रदेश की पददलित और अपमानित जनता के सम्मान के रक्षक थे। विरोधियों से ज्यादा बहस में न पड़कर उन्होंने हिंदी आलोचना को समृद्ध करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने हिंदी के अलावा संस्कृत, अंग्रेजी, बंगला आदि साहित्य का गंभीर अध्ययन किया और अपने मौलिक चिंतन से हिंदी आलोचना में युगान्तर पैदा कर दिया। इस कार्य में उनके मनोबल को दृढ़ करने वाली प्रेरणा जातीय सम्मान की भावना थी, इसमें संदेह नहीं। एक पराधीन देश में जातीय सम्मान की भावना एक साम्राज्यविरोधी क्रांतिकारी भावना है।"

--अश्विनी कुमार लाल
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                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-29.12.2022-गुरुवार.