निबंध-क्रमांक-124-राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका पर निबंध

Started by Atul Kaviraje, December 31, 2022, 09:45:18 PM

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Atul Kaviraje

                                       "निबंध"
                                     क्रमांक-124
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मित्रो,

      आईए, पढते है, ज्ञानवर्धक एवं ज्ञानपूरक निबंध. आज के निबंध का शीर्षक है- "राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका पर निबंध"

राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका पर निबंध – Role Of Teacher In Nation--
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"शिक्षक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से | सींचकर उन्हें शक्ति में परिवर्तित करते हैं। राष्ट्र के वास्तविक निर्माता उस देश के शिक्षक होते हैं।"

–महर्षि अरविन्द

रूपरेखा–

शिक्षक की भूमिका और दायित्व,
राष्ट्र–निर्माण में शिक्षक की भूमिका–
(क) बालक की अन्तःशक्तियों का विकास करना,
(ख) व्यक्तित्व का विकास करना,
(ग) सामाजिकता की भावना जाग्रत करना,
(घ) मूलप्रवृत्तियों का नियन्त्रण,
(ङ) भावी–जीवन के लिए तैयार करना,
(च) चरित्र–निर्माण तथा नैतिक विकास करना,
(छ) आदर्श नागरिक के गुणों को विकसित करना,
(ज) राष्ट्रीय भावना का संचार करना,
(झ) भारतीय संस्कृति और राष्ट्र–गौरव से परिचित कराना,
(ब) उचित दिशा–निर्देश देना,
उद्देश्यपूर्ण शिक्षा द्वारा सुन्दर–सभ्य समाज का निर्माण,

शिक्षक की भूमिका और दायित्व–
शिक्षा का प्रमुख आधार शिक्षक ही होता है। शिक्षक न केवल विद्यार्थी के व्यक्तित्व का निर्माता, बल्कि राष्ट्र का निर्माता भी होता है। किसी राष्ट्र का मूर्तरूप उसके नागरिकों में ही निहित होता है। किसी राष्ट्र के विकास में उसके भावी नागरिकों को गढ़नेवाले शिक्षकों की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है। अनादिकाल से शिक्षक की महत्ता का गुणगान उसके द्वारा प्रदत्त ज्ञान के कारण ही होता आया है।

ऐसे ज्ञानी गुरुओं के बल पर ही हमारे राष्ट्र को जगद्गुरु बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आज भी शिक्षक उसी निष्ठा से विद्यार्थियों के भविष्य निर्माण करके देश के भविष्य को सँवार सकते हैं। शिक्षक की भूमिका केवल छात्रों को पढ़ाने तक ही सीमित नहीं है। छात्रों को पढ़ाई के अलावा उन्हें सामाजिक जीवन से सम्बन्धित दायित्वों का बोध कराना तथा उन्हें समाज के निर्माण के योग्य बनाना भी शिक्षक का ही दायित्व है।

भविष्य में ऐसे ही छात्र समाज के विकास का आधार बनते हैं। शिक्षक की भूमिका के विषय में ग० वि० अकोलकर का कथन है– "शिक्षा व्यवस्था में सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण घटक 'शिक्षक' है। शिक्षा से समाज ने जिन इच्छा, आकांक्षा और उद्देश्यों की पूर्ति की कामना की है, वह शिक्षक पर निर्भर करती है।" शिक्षकों का दायित्व यही है कि वे समाज और राष्ट्र की इच्छाओं–आकांक्षाओं की पूर्ति करें।

डॉ० ईश्वरदयाल गुप्त के अनुसार–"शिक्षा–प्रणाली कोई भी या कैसी भी हो, उसकी प्रभावशीलता और सफलता उस प्रणाली के शिक्षकों के कार्य पर निर्भर करती है। क्योंकि भावी पीढ़ी को शिक्षित करना समाज की आकांक्षाओं का प्रतिफलन करना है।"

राष्ट्र–निर्माण में शिक्षक की भूमिका–विद्यार्थियों के मानसिक विकास में शिक्षक की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। एक निपुण शिक्षक अपनी शिक्षण–शैली से विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता की भावना का विकास कर सकता है। राष्ट्रीयता का भाव जहाँ एक ओर विद्यार्थियों को राष्ट्रभक्त और आदर्श नागरिक बनाता है, वहीं दूसरी ओर विद्यार्थियों में राष्ट्रीय एकता का विकास भी करता है। कोठारी आयोग के अनुसारः–

"भारत के भविष्य का निर्माण कक्षाओं में हो रहा है।" यह तथ्य परोक्षरूप से शिक्षक की भूमिका को भी निश्चित कर रहा है। राष्ट्र के विकास और निर्माण में शिक्षक की भूमिका को इन प्रमुख बिन्दुओं के रूप में समझा जा सकता है

(क) बालक की अन्तःशक्तियों का विकास करना–प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री फ्रॉबेल के अनुसार "शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है, जो बालक के आन्तरिक गुणों और शक्तियों को प्रकाशित करती है।" एक कुशल शिक्षक ही बालक के आन्तरिक गुणों को पहचानकर उनको विकसित कर सकता है। बिना शिक्षक के यह कार्य सम्भव नहीं है।

(ख) व्यक्तित्व का विकास करना–वुडवर्थ के अनुसार–"व्यक्तित्व व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यवहार की व्यापक विशेषता का नाम है।" आधुनिक युग में बालकों की केवल अन्तःशक्तियों का विकास होना ही पर्याप्त नहीं है, उनके बाह्य व्यक्तित्व का विकास भी बहुत आवश्यक है। शिक्षक बालकों के अन्तः–बाह्य व्यक्तित्व के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है।

--लक्ष्मी
(June 5, 2020)
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                     (साभार एवं सौजन्य-अभिव्यक्ती-हिंदी.ऑर्ग)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-31.12.2022-शनिवार.