साहित्यशिल्पी-जन्मशताब्दी वर्ष (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी छोटेलाल तिवारी)-अ-

Started by Atul Kaviraje, January 03, 2023, 09:50:46 PM

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Atul Kaviraje

                                    "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "जन्मशताब्दी वर्ष (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी छोटेलाल तिवारी)" 

जन्मशताब्दी वर्ष (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी छोटेलाल तिवारी) आजादी की अलख जगाकर अमर हो गये छोटे लाल तिवारी .[आलेख]- डॉ. सूर्यकांत मिश्रा--अ--
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     स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की सूची में राजनांदगांव के परवानों का नाम भी वरीयता क्रम में प्राप्त हो रहा है। जिला मुख्यालय के सम्मानित तिवारी परिवार में जन्में ऐसे ही बिरले आजादी के दीवाने छोटेलाल तिवारी ने शिक्षा की ओर विशेष झुकाव को भी स्वतंत्रता आंदोलन में आहूति के रूप में झोक दिया। महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित श्री तिवारी ने उच्च शिक्षा से पूर्व भारत मां के चरणों पर शीश झुकाते हुए उन्हें जंजीरों से मुक्त कराने के लिए किये जा रहे संघर्ष में योगदान करना ज्यादा जरूरी समझा। अंग्रेजों की यातनाएं और भारतवासियों का दर्द महसूस करते हुए ही श्री तिवारी जी ने उक्त अहम निर्णय लिया और स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी दिशा निर्देशकों के मार्गदर्शन में अपनी भूमिका के निर्वहन की मशाल प्रज्ज्वलित कर दिखाई। सन 1917 में जन्में श्री तिवारी ने महज 26 वर्ष की उम्र में इस दुनिया से विदा ले ली, किंतु अल्पायु में उन्होंने भारत माता की सेवा करते हुए तिवारी परिवार का नाम गौरवान्वित कर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की सूची में अपना नाम स्वर्णांकित करा लिया।

     देश को अंगे्रजों की गुलामी से आजाद कराने की जिद ठानने वाले छोटे लाल तिवारी का जन्म रामशंकर तिवारी के परिवार में हुआ था। उन्होंने इस दुनिया में पहली किलकारी के साथ जिला मुख्यालय राजनांदगांव से महज 13 किमी दूर दुर्ग रोड पर स्थित ग्राम सोमनी में खुशियां की सौगात तिवारी परिवार को दी। उस वक्त यह क्षेत्र दुर्ग जिला के अधीन था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सोमनी में ही पूर्ण की। आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें स्टेट हाई स्कूल आना पड़ा। जहां उन्होंने अपनी हाई स्कूल की शिक्षा पूरी की। अपनी प्रारंभिक चरण की हाई स्कूल शिक्षा पूरी करने के बाद इंटर मिडियेट और स्नातक स्तर की शिक्षा के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश के कानपुर जाना पड़ा। कानपुर के प्रतिष्ठित एवं नामी डीएवी कालेज में उनका दाखिला कराया गया। कहीं न कहीं बालपन से ही अंग्रेजों की रीति नीति से उद्वेलित श्री तिवारी ने स्नातक स्तर के अंतिम वर्ष की पढ़ाई पूरी करने से पूर्व ही स्वतंत्रता संग्राम का रास्ता अपना लिया और सतत प्रक्रिया में सक्रिय होकर भाग लेने लगे। परिणाम यह हुआ कि वे विधि की पढ़ाई कर वकालत के पेशे को अपनाने का अपना और परिवार का सपना पूरा न कर सके। उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर शिक्षा को ताक पर रख दिया और अपने मिशन में जुट गये।

--प्रस्तुतकर्ता (डा. सूर्यकांत मिश्रा)
राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-03.01.2023-मंगळवार.