साहित्यशिल्पी-जन्मशताब्दी वर्ष (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी छोटेलाल तिवारी)-ब-

Started by Atul Kaviraje, January 03, 2023, 09:52:49 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "जन्मशताब्दी वर्ष (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी छोटेलाल तिवारी)" 

जन्मशताब्दी वर्ष (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी छोटेलाल तिवारी) आजादी की अलख जगाकर अमर हो गये छोटे लाल तिवारी .[आलेख]- डॉ. सूर्यकांत मिश्रा--ब--
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     स्वतंत्रता की जंग में कूद पडऩे वाले छोटेलाल तिवारी की देशभक्ति और इस क्षेत्र में लगन को देखते हुए उन्हें बड़ी जवाबदारी दी गई तथा दुर्ग जिला कांग्रेस कमेटी का महामंत्री बना दिया गया। अब उन्होंने कांग्रेस के बैनर तले स्वतंत्रता आंदोलन की गतिविधियों को अंजाम देना शुरू कर दिया था। दुर्ग के वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी वीवाय तामस्कर, अधिवक्ता रत्नाकर झा, अधिवक्ता मोहन लाल बाकलीवाल तथा श्री देशमुख के दिशा निर्देशों पर चलते हुए श्री तिवारी ने स्वतंत्रता आंदोलन में यादगार भूमिका का निर्वहन किया। उस समय के मजदूर नेता श्री रूईकर छोटे लाल तिवारी के कार्यों को काफी प्रभावित थे। श्री रूईकर जब भी इस क्षेत्र में आते तो श्री तिवारी से आंदोलन की रणनीति पर चर्चा जरूर करते थे। यूं तो स्वतंत्रता संग्राम में सैकड़ों लोगों ने अपनी भूमिका निभाई है, किंतु श्री तिवारी ने उस उम्र में अंग्रेज शासन की खिलाफत शुरू की जिस उम्र में बच्चे अपने माता पिता की ऊंगली थामकर भीड़ में चलने का अभ्यास करते है। महज 26 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस लेने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने न केवल अपना योगदान किया बल्कि अपनी समझ बुझ से और लोगों को भी देश प्रेम की भावना से जोडऩे का सार्थक प्रयास सफलता के आयाम तक पहुंचकर तिवारी परिवार का नाम रोशन कर दिखाया।

     अंग्रेजों की प्रताडऩा के आगे सिर न झुकाने वाले छोटेलाल तिवारी ने विरोध की जिस मशाल को प्रज्ज्वलित किया, वह अनवरत अपना प्रकाश फैलाते हुए अंजाम तक पहुंचने प्रकाशित रही। क्षेत्र के किसानों को स्वतंत्रता के लिए जागृत करने वाले छोटेलाल तिवारी की सक्रियता से परेशान हो उठी अंग्रेजी हुकुमत ने 1936-37 में आखिरकर उन्हें न्यायालय में ला खड़ा किया। बालोद न्यायालय के अंग्रेज न्यायाधीश ने श्री तिवारी को उनकी विरोधी गतिविधि के एवज में न्यायालय उठने तक की सजा दी। इस समय छोटे लाल तिवारी की मात्र 18-19 थी। इस सजा के बाद 1942-43 में पुन: बालोद तहसील के अनेक गांवों में किसान आंदोलन को संचालित करने की जवाबदारी दुर्ग जिला कांग्रेस ने छोटेलाल तिवारी को सौंपी। उन्होंने अपनी इस जवाबदारी को भी बखुबी निभाया और किसानों को एक बड़ी ताकत के रूप में खड़ा कर दिखाया। 'राजनांदगांव के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नामक पुस्तक, जिसे नगर के वरिष्ठ साहित्यकार रमेश याज्ञिक ने लिखा था, के पन्नों को पलटने से जानकारी मिलती है कि छोटेलाल तिवारी का नाम भर छोटे था, उनके काम करने के तरीकों ने उन्हें बड़ों से भी बड़ा बना दिया था।

--प्रस्तुतकर्ता (डा. सूर्यकांत मिश्रा)
राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)
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                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-03.01.2023-मंगळवार.