साहित्यशिल्पी-जन्मशताब्दी वर्ष (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी छोटेलाल तिवारी)-

Started by Atul Kaviraje, January 04, 2023, 09:38:58 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "जन्मशताब्दी वर्ष (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी छोटेलाल तिवारी)" 

जन्मशताब्दी वर्ष (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी छोटेलाल तिवारी) आजादी की अलख जगाकर अमर हो गये छोटे लाल तिवारी .[आलेख]- डॉ. सूर्यकांत मिश्रा--
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                  गांधी जी ने की एकांत में चर्चा--

     राजनांदगांव शहर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी छोटेलाल तिवारी की अंग्रेजों की खिलाफत की मुहिम चर्चा कर विषय बन जाया करती थी। श्री तिवारी शुरू से ही महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे। देश के अलग अलग क्षेत्रों में भड़की स्वतंत्रता की आग और उसे अंग्रेजों के शरीर तक पहुंचाने वाले सेनानियों की क्रियाशीलता की जानकारी वरिष्ठों तक पहुंचा करती थी। श्री तिवारी के योगदान भी इससे अछुते नहीं रहे और इस बात की खबर महात्मा गांधी तक जा पहुंची। यही कारण था कि श्री गांधी छोटेलाल तिवारी को जानने लगे थे। इसी दौरान एक बार गांधी जी ट्रेन में सफर कर रहे थे। इस बात की खबर छोटेलाल तिवारी को हुई और वे राजनांदगांव स्टेशन जा पहुंचे। गांधी जी से मिलने के लिए स्टेशन में पहले से स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का अमला पहुंचा हुआ था। ट्रेन जब राजनंादगांव पहुंची तो महात्मा गांधी ने सभी से औपचारिक मुलाकात की। स्टेशन में पहुंचे अनेक सेनानियों के बीच महात्मा गांधी ने छोटे लाल तिवारी को अलग से अपने पास बुलाया और एकांत में कुछ देर तक चर्चा की। श्री तिवारी को अलग से समय देना और गांधी जी से दिशा निर्देश प्राप्त करने की बात काफी दिनों तक लोगों की चर्चा में शामिल रहा।

                    टी.बी. ने नहीं देखने दिये आजादी के दिन--

     स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में देश को आजाद देखने की ललक के साथ अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले छोटे लाल तिवारी को आजादी की सुकून भरी हवा नसीब नहीं हो पायी। स्वास्थ्य सेवाओं के दूर्दिनों में उन्हें टीबी के रोग ने जकड़ दिया, उस वक्त टीबी का आलम वही था जो आज के समय में कैंसर का है। जब श्री तिवारी बालोद के गांवों में किसानों को आंदोलन से जोडऩे में लगे हुए थे, उसी बीच वहां मलेरिया ने पैर पसार रखे थे। वे भी मलेरिया की चपेट में आ गये। पहले तो रोग को बड़े हल्कें में लेते हुए गांव में ही इलाज कराते रहे। साथ ही साथ आराम न कर आंदोलन में भी सक्रियता बनायी रखी। बीमारी के ठीक न होने पर श्री तिवारी जी को इंदौर के अस्पताल तक दौड़ लगानी पड़ी। इंदौर के चिकित्सकों ने परीक्षण उपरांत टीबी होना बताया। इलाज के दौरान ही मात्र 26 वर्ष की अवस्था को छुते छुते तिवारी जी ने दुनिया को अलविदा कहा दिया। इस तरह 1943 में हम सबसे बहुत दूर जा चुके स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री तिवारी जी की आजाद हिंदुस्तान की हवा में सांस लेने की अच्छा पूरी न हो सकी, किंतु श्री तिवारी जी के अदम्य साहस की वजह से आंदोलन में कूद पड़े किसानों तथा अन्य लोगों की बदौलत हमने उस स्वाद को चखा है, जिसे श्री तिवारी ने एक वृक्ष के रूप में रोपा था।

              पुत्र और पोतों ने वकालत की इच्छा को पूरा किया--

     स्वतंत्रता संग्राम सेनानी छोटेलाल तिवारी ने इच्छा होते हुए भी वकालत से अपना नाता नहीं जोड़ पाया, किंतु उनके पुत्र तथा पोतों ने इस पेशे में एक मुकाम हासिल कर पिता एवं बाबा के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की है। छोटे लाल तिवारी के एकमात्र पुत्र प्रभात तिवारी वर्तमान में उच्च न्यायालय बिलासपुर में जाने माने वकील के रूप में प्रतिष्ठा बनायी हुई है। इतना ही नहीं उनके पोते प्रशांत तिवारी एवं सुशांत तिवारी ने संस्कारधानी नगरी राजनांदगांव में युवा अधिवक्ता के रूप में अपने पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए खासी पहचान बना रखी है। दोनों भाई सिविल तथा क्रिमिनल के मामलों में बारीकियों की जानकारी रखते हुए पीडि़तों का काननू का लाभ दिला रहे है। श्री तिवारी के तीसरे पोते सीमांत तिवारी पेशे से इंजीनियर है। कुल मिलाकर संघर्ष के दिनों में स्वतंत्रता का सपना संजोने वाले छोटे लाल तिवारी ने अपने परिवार को उच्च शिक्षा के मार्ग में प्रशस्त करने का जो शंखनाद किया था, वह आज संपूर्णता लिये दिखाई पड़ रहा है।

--प्रस्तुतकर्ता (डा. सूर्यकांत मिश्रा)
राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-04.01.2023-बुधवार.