साहित्यशिल्पी-गुड़ियाएं कब तक नौंची जाएंगी?-

Started by Atul Kaviraje, January 05, 2023, 09:54:30 PM

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Atul Kaviraje

                                    "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "गुड़ियाएं कब तक नौंची जाएंगी?"
 
               गुड़ियाएं कब तक नौंची जाएंगी? [आलेख]- ललित गर्ग--
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     हिमाचल की शांत, शालीन एवं संस्कृतिपरक वादियां गुड़िया के साथ हुए वीभत्स एवं दरिन्दगीपूर्ण कृत्य से न केवल अशांत है बल्कि कलंकित हुई है। एक बार फिर नारी अस्मिता एवं अस्तित्व को नौंचने वाली घटना ने शर्मसार किया है। देवभूमि भी धुंधली हुई है क्योंकि उस पवित्र माटी की गुड़िया जैसी महक को जब दरिन्दों ने शिमला के निकट कोटखाई में न केवल हवस का शिकार बनाया बल्कि एक मासूम बालिका को गहरी मौत की नींद सुला दिया। यह वीभत्स घटना भरी महाभारतकालीन उस घटना नया संस्करण है जिसमें राजसभा में द्रौपदी को बाल पकड़कर खींचते हुए अंधे सम्राट धृतराष्ट्र के समक्ष उसकी विद्वत मंडली के सामने निर्वस्त्र करने का प्रयास हुआ था। इस वीभत्स घटना में मनुष्यता का ऐसा भद्दा एवं घिनौना स्वरूप सामने आया है जिसने न केवल हिमाचल बल्कि पूरे राष्ट्र को एक बार फिर झकझोर दिया है। एक बार फिर अनेक सवाल खड़े हुए हंै कि आखिर कितनी बालिकाएं, कब तक ऐसे जुल्मों का शिकार होती रहेंगी। कब तक अपनी मजबूरी का फायदा उठाने देती रहेंगी। दिन-प्रतिदिन देश के चेहरे पर लगती यह कालिख को कौन पोछेगा? कौन रोकेगा ऐसे लोगों को जो इस तरह के जघन्य अपराध करते हैं, नारी को अपमानित करते हैं। इन सवालों के उत्तर हमने निर्भया के समय भी तलाशने की कोशिश की थी। लेकिन इस तलाश के बावजूद इन घटनाओं का बार-बार होना दुःखद है और एक गंभीर चुनौती भी है।

     गुड़िया बलात्कार कांड और ऐसी ही अनेक शक्लों में नारी अस्मिता एवं अस्तित्व को धुंधलाने की घटनाएं- जिनमें नारी का दुरुपयोग, उसके साथ अश्लील हरकते, उसका शोषण, उसकी इज्जत लूटना और हत्या कर देना- मानो आम बात हो गई हो। महिलाओं पर हो रहे बलात्कार, अन्याय, अत्याचारों की एक लंबी सूची रोज बन सकती हैं। गुड़िया का चीखते-चिल्लाते गहरी नींद में सौ जाना, मौत की आगोश में समा जाना मानवता की मौत है।

     गुड़िया के बर्बर गैंग रेप के बाद आक्रोशित युवा सड़कों पर थे लेकिन राजनैतिक नेतृत्व नदारद था। कोटखाई के जंगल में हवस, हैवानियत और दरिंदगी का ऐसा तांडव मनुष्य के रूप में उन भेडियों ने किया, जिसका शिकार दसवीं में पढने वाली गुड़िया बनी जो हवस, हैवानियत और दरिंदगी की परिभाषा भी नहीं जानती होगी। जंगल में भेडियों ने एक मासूम की एक-एक सांस को नोच डाला। विडम्बनापूर्ण तो यह है कि दरिंदों ने मौत के बाद भी उसे नहीं बख्शा। ऐसी घटना पर लोगों का भड़कना और सड़कों पर उतर आना स्वाभाविक था, क्योंकि हर बार की तरह इस बार भी पुलिस ने मामले को दबाने की पूरी कोशिश की। जनता का कानून से विश्वास उठ गया। हैरानी की बात तो यह है कि इस घटना पर राष्ट्रीय मीडिया भी खामोश रहा।

     जहां पांव में पायल, हाथ में कंगन, हो माथे पे बिंदिया... इट हैपन्स ओनली इन इंडिया- जब भी कानों में इस गीत के बोल पड़ते है, गर्व से सीना चैड़ा होता है। लेकिन जब उन्हीं कानों में यह पड़ता है कि इन पायल, कंगन और बिंदिया पहनने वाली लड़कियों के साथ इंडिया क्या करता है, तब सिर शर्म से झुकता है। गुड़िया के साथ हुई त्रासद एवं अमानवीय ताजा घटना हो या निर्भरा कांड, नितीश कटारा हत्याकांड, प्रियदर्शनी मट्टू बलात्कार व हत्याकांड, जेसिका लाल हत्याकांड, रुचिका मेहरोत्रा आत्महत्या कांड, आरुषि मर्डर मिस्ट्री की घटनाओं में पिछले कुछ सालों में इंडिया ने कुछ और ऐसे मौके दिए जब अहसास हुआ कि भू्रण में किस तरह नारी अस्तित्व बच भी जाए तो दुनिया के पास उसके साथ और भी बहुत कुछ है बुरा करने के लिए। बहशी एवं दरिन्दे लोग ही नारी को नहीं नोचते, समाज के तथाकथित ठेकेदार कहे जाने वाले लोग और पंचायतंे भी नारी की स्वतंत्रता एवं अस्मिता को कुचलने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है, स्वतंत्र भारत में यह कैसा समाज बन रहा है, जिसमें महिलाओं की आजादी छीनने की कोशिशें और उससे जुड़ी हिंसक एवं त्रासदीपूर्ण घटनाओं ने एक बार हम सबको शर्मसार किया है। नारी के साथ नाइंसाफी चाहे कोटखाई में हो या गुवाहाटी में हुई हो या बागपत में- यह वक्त इन स्थितियों पर आत्म-मंथन करने का है, उस अहं के शोधन करने का है जिसमें श्रेष्ठताओं को गुमनामी में धकेलकर अपना अस्तित्व स्थापित करना चाहता है।

--ललित गर्ग
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-05.01.2023-गुरुवार.