निबंध-क्रमांक-133-साइकिल की सवारी पर निबंध

Started by Atul Kaviraje, January 09, 2023, 09:44:02 PM

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Atul Kaviraje

                                     "निबंध"
                                   क्रमांक-133
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मित्रो,

      आईए, पढते है, ज्ञानवर्धक एवं ज्ञानपूरक निबंध. आज के निबंध का शीर्षक है- " साइकिल की सवारी पर निबंध "

          साइकिल की सवारी पर निबंध-Essay on Bicycle Riding--
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     इतना ही नहीं, हाथी के लिए हथसार, घोड़े के लिए अस्तबल, मोटर के लिए गैरज और हवाई जहाज या रॉकेट के उड़ान-आवास के लिए सैकड़ों बीघे जमीन चाहिए. किंत, साइकिल को जहाँ चाहिए, रख लें। बेचारी एक कोने में दुबक जाएगी: न कोई तरबुद, न कोई चिंता ! खरीदने की बात हो, तो हाथी-घोड़े में दस-पाँच हजार से भी अधिक, मोटर में लाख-दो लाख, हवाई जहाज में कम-से-कम बीस-तीस लाख और अंतरिक्ष यान में करोड़ों-करोड़ की जरूरत, समझिए कि एक राज्य ही बिक जाए। अतः इतनी सस्ती, इतनी कम कीमती, इतनी तंगदस्ती से गुजारा करनेवाली साइकिल जैसी दसरी सवारी शायद ही आपको मिले। यदि कहीं हवा निकल गई, तो किसी से पंप माँग लीजिए, नहीं तो चवन्नी पैसे में ही इसकी क्षुधा की शांति कर दीजिए। हाँ. अल्पभोजी विद्यार्थियों की तरह यह भी अल्पभोजी ही है।

     जब यह रहती है, तो आपको सुविधा देती है; आनंद देती है; जब चली जाती है, तो बहुत दुःख भी नहीं देती। हाथी, घोड़ा, मोटर के नाश पर तो कलेजा बैठ जाता है, आर्थिक रीढ़ टूट जाती है, किंतु साइकिल के सर्वनाश से भी हमारे ऊपर वैसा शोक का बादल नहीं घिरता। वस्तुतः, गीता के श्रीकृष्ण की भाषा में यदि कोई वस्तु अपने नाश पर 'मा शुचः' का उद्घोष करती है, तो साइकिल ही। यह बराबर कहती है कि जीर्ण वस्त्र के नाश पर नवीन वस्त्र धारण करने की जैसी खशी है, वैसी ही खुशी होगी आपको मेरे नाश के बाद भी।

     यह कभी आपकी कीमती जान को खतरे में नहीं डालती, कभी आपको राहगीरों के थप्पड नहीं खिलाती, कभी आपको उपहास के बाण नहीं चुभाती; कभी गालियों का उपहार नहीं दिलाती, कभी अदालतों की धूल नहीं फँकवाती, कभी वकीलों की खशामद नहीं कराती. कभी आपके लाइसेंस को रद्द नहीं कराती, कभी आपको कठघरे में खड़ा नहीं कराती, कभी पुलिस की हेकड़ी नहीं सहाती। जिन्हें इसपर विश्वास नहीं, वे तभी विश्वास कर सकते हैं जब उनकी कार से कोई ऐक्सिडेंट हो जाए, किसी व्यक्ति को मामूली-सा धक्का भी लग जाए।

     यह कभी आपको प्रतीक्षा का दारुण दुख नहीं देती। मोटर से आ रहे हैं, गुमटी बंद ! घंटों तक कोफ्त। कोई उपाय नहीं। रेलगाड़ी से आ रहे हैं, कुछ कर्मचारियों ने रेलवे लाइन पर इसलिए सत्याग्रह कर रखा है कि एक अधिकारी ने एक खलासी को इसलिए बर्खास्त कर दिया कि वह मालगाड़ी के डिब्बे से सामान गायब करते हुए रँगे हाथ पकड़ा गया। जब तक फैसला न हो, तब तक आपकी रेलगाड़ी रुकी रहेगी। आपके लिए कोई उपाय नहीं है। किंतु, साइकिल के लिए न कहीं कोई अवरोध है, न रुकावट। वस्तुतः साइकिल आधुनिक युग में भारतीय दिग्विजय का उपाय अवश्य है. जिसके द्वारा आप चाहें तो समस्त संसार को निर्विघ्न रौंद सकते हैं। इसके दो चक्र जनता-जनार्दन के दो पदचक्र हैं, इसकी गति जीवन की दरअसल नपी-तुली निरापद गति है, इसमें संदेह नहीं।

     अतः, हमें इसके जनक इंगलैंड-निवासी स्टारले के प्रति शुक्रगुजार होना चाहिए। साइकिल की ईजाद के एक वर्ष बाद 1885 ई० में भारतीय जनजागरण संस्था काँग्रेस का जन्म हुआ। आसान सवारियों में साइकिल सिरमौर है, आपको मानना ही पडेगा। यह कभी गुनहगार नहीं है। ऐसा होने पर कहेगी-

--सौ जान से हो जाऊँगा राजी मैं सजा पर।
पहले वो मुझे अपना गुनहगार तो कर लें।            -अकबर इलाहाबादी

--सतीश कुमार
(मार्च 26, 2021)
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                        (साभार एवं सौजन्य-माय हिंदी लेख.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-09.01.2023-सोमवार.