साहित्यशिल्पी-हिंदी गद्य के विकास में आचार्य रामचंद्र शुक्‍ल और डॉ.रामविलास

Started by Atul Kaviraje, January 09, 2023, 09:52:40 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "हिंदी गद्य के विकास में आचार्य रामचंद्र शुक्‍ल और डॉ.रामविलास शर्मा की मान्‍यताएं"

हिंदी गद्य के विकास में आचार्य रामचंद्र शुक्‍ल और डॉ.रामविलास शर्मा की मान्‍यताएं [आलेख]- अश्विनी कुमार लाल--
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     डॉ. रामविलास शर्मा हिंदी-उर्दू को एक ही भाषा की दो शैलियां मानते थे। इनके तमाम साहित्‍य को एक ही जाति का साहित्‍य कहा है। अंग्रेजों ने हिंदी-उर्दू के बीच विभाजक रेखा खींच कर, उनका संबंध मजहब से जोड़ दिया है जो हमारे जातीय एकता में बाधक सिद्ध हुई है। डॉ. रामविलास शर्मा इस संदर्भ में लिखते हैं- "हिंदी-उर्दू विवाद को इतना जहरीला बना दिया गया है कि बहुत से लोग भूल गए हैं कि वे एक ही बोलचाल की भाषा के दो रूप हैं, इनका तमाम साहित्‍य भला-बुरा जो कुछ है, एक ही जाति का साहित्‍य है। जैसे-जैसे लोग यह समझेंगे कि हिंदी-उर्दू वाले एक ही प्रदेश के रहने वाले हैं, एक ही कौम हैं, उनकी बोलचाल की भाषा एक है और इसलिए उनके साहित्‍य की भाषा को भी एक होना पड़ेगा, वैसे-वैसे यह अलगाव कम होगा।" इस प्रकार डॉ. रामविलास शर्मा ने हिंदी-उर्दू को एक ही भाषा की दो शैलियों के रूप में देखा, जो ठीक भी है।

     आधुनिक हिंदी साहित्‍य का उत्‍थान काल आचार्य रामचंद्र शुक्‍ल के लिए हिंदी भाषा जन‍ता के लिए जातीय और जनवादी साहित्‍य का भी उत्‍थान काल है। डॉ. रामविलास शर्मा इस संदर्भ में लिखते हैं-"इसी युग में हिंदी साहित्‍य सामंती प्रभावों से मुक्‍त करके राष्‍ट्रीय स्‍वाधीनता, जातीय एकता और जनता की सेवा के नये रास्‍ते पर ले चलने की कोशिश की गई। सामंती प्रभाव एकाएक खत्‍म नहीं हो गए, खासकर कविता में वह काफी दिन तक जम रहे। लेकिन गद्य में रूढि़वाद का असर कम हुआ और जल्‍दी कम हुआ। गद्य का यह विकास आसानी से, बिना संघर्ष के नहीं हुआ, रूढि़वादी विचारधारा गद्य का रुढि़वादी रूप भी चाहती थी, प्रगतिशील विचारधारा गद्य के रूप को स्‍वाभाविक बोलचाल के ज्‍यादा नजदीक लाना चाहती थी। साहित्‍य की विषय-वस्‍तु ने उसके रूप पर असर डाला, रूप की तुलना में विषय-वस्‍तु ने अपनी नियामक भूमिका पूरी की। शुक्‍ल जी ने इस नयी विषय-वस्‍तु का समर्थन किया, उसके लोकप्रिय रूप का समर्थन किया।" डॉ.रामविलास शर्मा कहते हैं कि भारतेन्‍दु ने भाषा को संवारने या उसका रूप स्थिर करने के साथ साहित्‍य को नवीन मार्ग दिखाया। भारतेन्‍दु से पहले भक्ति, श्रृंगार आदि की पुराने ढंग की रचनाएं चली आ रही थीं। अब ये रचनाएं इस युग के अनुरूप नहीं थी। राष्‍ट्रीय भावना एवं सामाजिक समस्‍याओं से युक्‍त रचनाएं लिखी जाने लगीं। पहली बार हमारा साहित्‍य यथार्थ से संबद्ध हुआ। हमारे जीवन तथा साहित्‍य में जो विच्‍छेद था, भारतेन्‍दु ने उसे दूर किया। आचार्य शुक्‍ल लिखते हैं- "बंग देश में नए ढंग के नाटकों और उपन्‍यासों का सूत्रपात हो चुका था, जिनमें देश और समाज की नई रुचि और भावना का प्रतिबिम्‍ब आने लगा था। पर हिंदी साहित्‍य अपने पुराने रास्‍ते पर ही पड़ा था। भारतेन्‍दु ने उस साहित्‍य को दूसरी ओर मोड़कर जीवन के साथ फिर लगा दिया। इस प्रकार हमारे जीवन और साहित्‍य के बीच जो विच्‍छेद पड़ रहा था, उसे उन्‍होंने दूर किया।"

--अश्विनी कुमार लाल
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                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-09.01.2023-सोमवार.