निबंध-क्रमांक-134-अंतरिक्ष यात्रा पर निबंध

Started by Atul Kaviraje, January 10, 2023, 09:24:31 PM

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Atul Kaviraje

                                      "निबंध"
                                    क्रमांक-134
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मित्रो,

      आईए, पढते है, ज्ञानवर्धक एवं ज्ञानपूरक निबंध. आज के निबंध का शीर्षक है- " अंतरिक्ष यात्रा पर निबंध"

           अंतरिक्ष यात्रा पर निबंध-Essay on Space Travel--
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     पटना के दिल्ली की यात्रा हम भले ही रेलगाड़ी से कर डालें, दिल्ली से लंदन की यात्रा के लिए हम भले ही वायुयान का सहारा लें, किंतु आज जब हमने चंद्रलोक और मंगललोक की यात्राओं के लिए साहस बटोर लिया है, तो फिर हमें एक अतिद्रुत यान का निर्माण करना ही है। अब हजारों मील दूरी का प्रश्न नहीं, बल्कि लाखों मील (चाँद की दूरी-लगभग 3 लाख 81 हजार 900 किलोमीटर) दूरी का प्रश्न हो गया है।

     बादलों के पार कौन-सा चंदनचर्चित चाँदनी का देश है, दूर-दूर मुस्कराहट बिखेरते तारों की दुनिया कैसी है, अब तक सुंदरता और कल्पना की रंगीनी बिखेरनेवाले तथा सपनों का जाल बुननेवाले चाँद का सुनहरा संसार कैसा है, ज्योतिष की पुस्तकों में वर्णित मंगल, बुध आदि ग्रहों का साम्राज्य कैसा है-यह सब जानने के लिए मानव का जिज्ञास मन मचल उठा है। परीक्षणों की पगडंडियों से गुजरता मानव आज चाँद पर छलाँग मार कर पहुँच चुका है। इस कार्य के लिए उस स्थलयान, जलयान, वायुयान जैसा मृदु-मंद मंद नहीं, वरन वायू-ध्वनि-प्रकाश तक की गति को मात करनेवाला अतिक्षिप्र यान अंतरिक्ष-यान-चाहिए, जिसकी गति अठ्ठाइस हजार किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक हो।

     अंतरिक्ष-यान के निर्माण में रूस और अमेरिका में होड़ लगी हुई है। सबसे पहले रूस ने 4 अक्तूबर, 1957 को स्पुतनिक छोड़ा। फिर 4 नवंबर, 1957 को उसने अपने यान में 'लायका' नाम की प्रशिक्षिता कुतिया भेजी। 18 नवंबर, 1959 को अमेरिका ने अपने अंतरिक्ष-यान में दो बंदर भेजे।

     विज्ञान का सबसे बड़ा आश्चर्य रूसी रॉकेट 'ल्युनिक-1' 2 जनवरी, 1959 को छोड़ा गया। यह चंद्रमा के निकट से गुजरता हुआ एकदम आगे बढ़ गया और सूर्य की पकड़ में आकर उसकी परिक्रमा करनेवाला बन गया। इसके पूर्व कोई अंतरिक्ष-यान पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण-शक्ति से मुक्त होकर बाहर नहीं जा सका था। फिर रूस ने 'ल्यनिक-3' छोडा। 12 अप्रैल, 1961 को रूस ने 'वोस्तोक-1' छोड़ा, जिसमें विश्व के सर्वप्रथम अंतरिक्षयात्री मेजर यूरी ऐलेक्जीविच गागरिन महोदय बैठे थे। जब गागरिन महोदय अंतरिक्ष-यात्रा करके लौटे, तब रूस में उनका कितना भव्य स्वागत हुआ था, इसे हम जानते हैं।

     रूस ने 18 नवंबर, 1965 को 'वोस्तोक-2' छोड़ा। इसमें कर्नल लियोनोव तथा कर्नल वेल्यायेव सवार थे। दोनों ने अंतरिक्ष-यान के द्वारा पृथ्वी की एक परिक्रमा समाप्त कर डाली। इसके पश्चात् दूसरी परिक्रमा में कर्नल लियोनोव अंतरिक्ष-यान के बाहर निकले और उन्होंने अंतरिक्ष में चहलकदमी शुरू की। धीरे-धीरे अंतरिक्ष में कूद पड़े। लंबे खजूर-पेड़ से गिरने पर आदमी चकनाचूर हो जाता है, किंतु इतनी ऊँचाई से लियोनोव महोदय गिरे भी नहीं, चकनाचूर होने की बात कौन कहे! कारण, इतनी ऊँचाई पर पृथ्वी की आकर्षण-शक्ति समाप्त हो जाती है और हर वस्तु भारहीन हो जाती है। अंतरिक्ष में तैरनेवाले विश्व में सर्वप्रथम व्यक्ति थे लियोनोव।

     'वोस्तोक-6' में रूस की महिला वेलेंतिना निकोलायेवा अंतरिक्ष का तेरेश्कोवा चक्कर लगा आईं। इस क्षेत्र में कभी रूस, कभी अमेरिका मैदान मारते आगे बढ़ते रहे। 21 दिसंबर, 1968 को अमेरिका ने 'अपोलो-8' नामक अंतरिक्ष-यान भेजा। इसने 10 बार पृथ्वी की परिक्रमा की और निर्धारित समय पर 27 दिसंबर, 1968 को पृथ्वी पर लौट आया। इस अंतरिक्ष-यान ने 8 (आठ) लाख किलोमीटर की यात्रा की। सबसे अधिक गति 38,700 किमी प्रति घंटा थी। इस खतरनाक यात्रा में फ्रैंक बोरमैन, जेम्स लावेल तथा विलियम एंडर्स के अदम्य साहस की जितनी भी प्रशंसा की जाए थोडी है। 'अपोलो-9' में जेम्स डेविड, जेम्स स्कॉट तथा रसेल स्केल ने यात्रा की।

--सतीश कुमार
(मार्च 26, 2021)
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                       (साभार एवं सौजन्य-माय हिंदी लेख.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-10.01.2023-मंगळवार.