साहित्यशिल्पी-कथानकों से भरा पड़ा है दीप पर्व का इतिहास

Started by Atul Kaviraje, January 10, 2023, 09:36:15 PM

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Atul Kaviraje

                                    "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "कथानकों से भरा पड़ा है दीप पर्व का इतिहास"

कथानकों से भरा पड़ा है दीप पर्व का इतिहास - दीपावली पर विशेष...[आलेख]- डॉ. सूर्यकांत मिश्रा--
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     हिन्दुओं का मुख्य पर्व दीपावली क्यों मनाया जाता है इस संबध में सर्वकालीक मत है कि भगवान श्री राम द्वारा रावण को पराजित कर अयोध्या वापसी पर अयोध्यावासियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर स्वागत किया और यही दीपावली का त्यौहार बन गया। इसी दीपोत्सव पर्व को लेकर विभिन्न मत और कारण भी इस त्यौहार को मनाये जाने के पीछे बताया जाते है। स्कंद पुराण, पद्म पुराण तथा भविष्य पुराण में इस पर्व से संबंधित विभिन्न मान्यताएं बतायी गयी है। इन्हीं ग्रंथों में महाराज पृथु द्वारा पृथ्वी दोहन के साथ धन, धान्य से समृद्घ राज्य बना देने के उपलक्ष्य में दीपावली का पर्व मनाने का उल्लेख मिलता है। ऐसे उद्घरण भी मिलते है कि कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को समुद्र मंथन से भगवती लक्ष्मी के प्रादूर्भाव की प्रसन्नता ने जनमानस ने उल्लास के आयोजन को दीपोत्सव का रूप प्रदान करते हुए दीपो की लड़ी सजायी थी और यही दीपावली का पर्व बन गया। इन्हीं पुराणों में ऐसे भी कथानक भी मिलते है कि जो कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को भगवान श्री कृष्ण द्वारा ताडक़ासुर का वध करना बताते है। साथ ही ताडक़ासुर के बंदी गृह से 16 हजार राजकुमारियों के उद्घार तथा अगले दिन अमावस्या को उनके विवाह के उपलक्ष्य में श्री कृष्ण जी का अभिनंदन करने दीपो की सजावट की गयी। जो वर्तमान दीवाली का रूप है। कहीं पांडवों के वनवास से सकुशल लौटने को भी दीपावली पर्व से जोड़ा जाता रहा है। यह भी कहा जाता है कि सम्राट विक्रमादित्य के शकों पर विजयोपलक्ष्य जनता द्वारा दीप मालिका सजाकर राजा का अभिनंदन करने के लिए दीपावली पर्व की शुरूआत हुई।

     भारतीय धर्म ग्रंथों में शामिल सनत्कुमार संहिता इस पर्व के संबंध में निर्देशित करता है कि भगवान विष्णु ने कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिनों में दैत्य राज बलि से संपूर्ण लोक छिनकर उसे पाताल लोक जाने विवश कर दिया और बलि को वर मांगने कहा। बलि ने भगवान विष्णु से वर के रूप में मांग करते हुए कहा कि आपने तीन दिन में मुझसे तीन लोक छिने है अत: उपर्युक्त तीन दिनों में जो भी प्राणी मृत्यु के देवता यम के नाम से दीप दान करेगा। उन्हें यम की यातना न भोगनी पड़े तथा उनका घर परिवार सदैव धन, धान्य से परिपूर्ण हो। भगवान वामन (विष्णु) ने बलि की मांग स्वीकार की तभी से दीपावली मनाने और यम के निमित्त दीपदान करने का प्रचलन शुरू हुआ बताया जाता है। पर्व का तीसरा दिन अर्थात अमावस्या इस पर्व का प्रमुख दिन माना जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना दीप मालिका सजाकर की जाती है। कृषि प्रधान भारत वर्ष में दीपावली का प्रचलन ऋतु पर्व के रूप में हुआ है। फसल पकने के बाद जब कटकर कृषक के घर पहुंच जाती है, तब खुशी के रूप में यह दीवाली का रूप अख्तियार कर घर घर फूट पड़ती है। जैसे जैसे समय बीतता गया, काल क्रमानुसार इस पर्व के साथ अनेक कथाएं जुड़ती चली गयी है। पुराणों में दीपावली की रात को महालया महारात्रि की संज्ञा दी गयी है। तंत्र-मंत्र, सिद्घी के लिए दीपावली की रात अत्यंत शुभ एवं प्रभावी मानी जाती है।

--प्रस्तुतकर्ता-(डा. सूर्यकांत मिश्रा)
--राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-10.01.2023-मंगळवार.