साहित्यशिल्पी-मैं रावण बोल रहा हूँ- दशहरा पर विशेष

Started by Atul Kaviraje, January 13, 2023, 10:09:31 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "मैं रावण बोल रहा हूँ- दशहरा पर विशेष"

      *मैं रावण बोल रहा हूँ*- दशहरा पर विशेष [आलेख]- सुशील कुमार शर्मा--
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     राम और मैं रामायण के सबसे ऊर्जावान चरित्र हैं।भले ही मेरा चरित्र सबको नकारात्मक ऊर्जा से भरा लगता है और राम का चरित्र सकारात्मक ऊर्जा का पुंज।हम में से किसी ने भी एक दूसरे से व्यक्तिगत दुश्मनी नही की। हमारे बीच युद्ध की शुरुआत शूपर्णखा और लक्ष्मण के वाद विवाद के साथ शुरू हुई और इस महान युद्ध के उत्प्रेरक के रूप में फिर और कई बातें जुड़ती गई।हमारे बीच लड़ाई व्यक्तिगत से कहीं अधिक यह अस्तित्व और सम्मान की लड़ाई थी।

     आप सब इस बात से सहमत होंगे कि मैं राम से ज्यादा विद्वान पारंगत और शक्तिशाली था । मैं राम से ज्यादा धनवान था।मेरे पास राम से ज्यादा साहस बुद्धि संकल्प विद्या राजनीतिक समझ थी।राम से बड़ा कुटुंब था शक्तिशाली सेना थी सीता के समान ही सती सावित्री मेरी पत्नी मंदोदरी थी लेकिन फिर भी मैं यह युद्ध हार गया।

     आज आपको इस का मुख्य कारण बताता हूँ ।वो कारण था राम का चरित्रवान होना।

     आपको शायद गलतफहमी हो कि मैंने सीता के सतीत्व को तोड़ने की कोशिश की लेकिन ऐसा नही है मैंने सिर्फ अपनी बहिन के अपमान का बदला लेने उनका अपहरण किया था।मुझे राम की शक्ति पर कोई संदेह नही था लेकिन मैं अपनी बहिन के अपमान को लेकर चुप भी नही बैठ सकता था। मैं माया का शिकार था

     स्वर्ण नगरी लंका और तीनों लोकों के स्वामी होने का भ्रम था। सत्ता और सामर्थ्य अच्छे अच्छे ज्ञानी को मदांध बना देता है। मुझे एक राजा का फर्ज निभाना चाहिए था अपनी बहिन को समझाना चाहिए था किन्तु बहिन की कटी हुई नाक मुझे अंदर तक उद्वेलित कर गई और मैंने अपनी विनीत बहन के साथ खड़ा होने का फैसला किया, मैंने एक राजा की जगह एक भाई की भूमिका निभाई। मेरी न केवल एक राजा के रूप में विफलता थी, बल्कि बुराई की पहली सीढ़ी पर एक कदम भी। बुराई का दूसरा कदम मैंने तब उठाया जब अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के दौरान मैं अहंकारी बन गया।मैंने धर्म की भावना खो दी। क्रोध का गुलाम बन कर नीचे गिर गया और इस प्रक्रिया में मैंने कई पाप किए, इनमें से एक जटायु की हत्या थी।मुझे मालूम है और शास्त्रों में उल्लेख है कि आप की तुलना में अगर कोई कमजोर है तो उसे मारना "शक्ति का दुरुपयोग" है। इसलिए, हथियारहित, बच्चे, बूढ़े या जानवर और पक्षियों को मारना एक पाप है ।

     मुझे मालूम है राम मुझे पसंद करते थे मेरा सम्मान भी करते थे।उन्होंने मुझ से शिवाभिषेक कराया लक्ष्मण को राजनीति की शिक्षा लेने भेजा।युद्ध के पहले और बाद में भी कई शांति प्रस्ताव भेजे किन्तु मेरा अहंकार मौत चुन चुका था।

     मुझे बुरा कहने के तो आपके पास कई कारण हैं लेकिन आप लोग तो राम को भी बुरा कहने से नही चूकते।

--सुशील कुमार शर्मा
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                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-13.01.2023-शुक्रवार.