काव्यालय कविता-कविता सुमन-33-काश हम पगडंडियाँ होते

Started by Atul Kaviraje, January 14, 2023, 09:47:45 PM

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Atul Kaviraje

                                  "काव्यालय कविता"
                                   कविता सुमन-33
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "काव्यालय कविता" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- "काश हम पगडंडियाँ होते"

                               "काश हम पगडंडियाँ होते"
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यों न होते
काश !
हम पगडंडियाँ होते

इधर जंगल - उधर जंगल
बीच में हम साँस लेते
नदी जब होती अकेली
उसे भी हम साथ देते

कभी उसकी
देह छूते
कभी अपने पाँव धोते

कोई परबतिया
इधर से जब गुज़रती
घुघरुओं की झनक
भीतर तक उतरती

हम
उसी झंकार को
आदिम गुफाओं में सँजोते

और-भी पगडंडियों से
उमग कर हम गले मिलते
तितलियों के संग उड़ते
कोंपलों के संग खिलते

देखते हम
कहाँ जाती है गिलहरी
कहाँ बसते रात तोते

--कुमार रवीन्द्र
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                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-काव्यालय.ऑर्ग/युगवाणी)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-14.01.2023-शनिवार.