साहित्यशिल्पी-मैं रावण बोल रहा हूँ- दशहरा पर विशेष

Started by Atul Kaviraje, January 14, 2023, 09:56:59 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "मैं रावण बोल रहा हूँ- दशहरा पर विशेष"

      *मैं रावण बोल रहा हूँ*- दशहरा पर विशेष [आलेख]- सुशील कुमार शर्मा--
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     राम ने कभी सीता पर शक नहीं किया; अगर राम ने सीता पर संदेह किया होता तो, तो वह उन्हें अपने साथ अयोध्या क्यों लाये होते उन्हें वही छोड़ दिया होता। यहाँ पर बात राजधर्म निभाने की है।राजा होने के नाते, राम को अपनी निजी भावनाओं को पीछे छोड़कर लोगों द्वारा कसौटी पर खरा उतरना था।

     एक महिला एक सबसे बड़ी ताकत बन सकती है; और वही एक आदमी की सबसे बड़ी कमजोरी हो सकती है अयोध्या के लोग यह जानना चाहते थे कि उनकी रानी ने राजा को धोखा दिया था या नहीं, प्रजा यह जांचने की कोशिश कर रही थी कि क्या रानी राजा की ताकत है या कमजोरी। राम ने चीजों से पलायन करने के स्थान पर चीजों को सही साबित करने की चुनौती को स्वीकार किया।राम जानते थे कि प्रजा को यह समझने का अधिकार है कि क्या वे सही राजा के हाथों में थे या नही या उनके प्रति राजा उत्तरदायी है या नही।

     सीता की अग्नि परीक्षा एक प्रतीकात्मक संदेश था कि राजधर्म से ऊपर कोई भी नही है भले वह स्वयं राजा क्यों न हो।

     भारत के वर्तमान संदर्भों की चर्चा करना शायद सबसे ज्यादा प्रासंगिक है।आप सभी मुझे बुरा कहते हो क्या कभी अपनी आत्मा में आप लोंगो ने झांका है।आप लोगों के अस्तित्व की विसंगतियों की तुलना की जाए तो मैं बहुत पाक साफ नजर आऊंगा। मैंने तो अपने आत्मसम्मान की लड़ाई लड़ी भले ही आप लोग उसे गलत कहें आप लोग तो सरे आम आत्मसम्मान को बेंच देते है।चंद टुकड़ों में अपने देश की इज्जत आबरू दुश्मन को बेच रहें है।

     मैंने कभी भी राजनीति में भावनाओं को स्थान नही दिया अपने निर्णय स्वयं लिए हैं लेकिन आज राजनीति के निर्णय सिर्फ वोट बैंक के आधार पर होते हैं।

     मेरे राज्य में चारों ओर स्वर्ण साम्राज्य था कोई भूखा नही था ।आज भूख कुपोषण चारो ओर फैला है।

     मैंने सीता का अपहरण सिर्फ़ बहिन का बदला लेने के लिए किया था और सिर्फ डराया धमकाया था।कभी भी छूने की कोशिश नही की।आज सरे राह पांच साल की बेटियों का बलात्कार किया जा रहा है।तब बताइए रावण श्रेष्ठ है या आज का मानव।

     मैंने तो अपने देश और समाज के लिए अपने कुल को भी कुर्बान कर दिया।अपने देश पर आक्रमण करने वाले से अंतिम समय तक लड़ा और आप लोग क्या कर रहे है।शत्रुदेश के आतंकियों को पनाह दे रहे है।अपनी देश के लिए मैं सपरिवार कुर्बान हो गया क्या आप की सोच अपने देश के प्रति ऐसी है।जिस दिन ये सोच हो जाये तब तुम मुझे बुरा कहने के हकदार हो।

     मैं चाहता तो राम को सीता लौटा कर क्षमा मांग कर स्वर्ग पा सकता था किंतु मैंने अपने स्वाभिमान जिसे आप लोग मेरा अभिमान कहते हो से समझौता नही किया और साक्षात ईश्वर से भी लड़ बैठा।क्या आप के अंदर इतना साहस है।जिस दिन इतना साहस आ जाये तो मुझे बुरा कहने के हकदार हो।

     नवदुर्गा मैं कन्याओं को पूजते हो और भ्रूण में ही उनकी हत्या कर देते हो,सड़कों पर लावारिस छोड़ देते हो उनसे बलात्कार करते हो और फिर भी मुझे जलाते हो।क्या आप लोगों को हक़ है इसका।

     मुझे बुराइयों अहंकार पाप और न जाने किन किन गालियों से आप लोग नवाजते हो,अपने गिरहवान में झांक कर देखना उसमें कई रावण एक साथ दिखेंगे।

     हर साल आप सभी मुझे अहंकार, बुराई, क्रोध, आवेग आदि के विनाश के प्रतीक के रूप में जलाते हैं। मुझे दशहरा पर बुराई के अंत और भलाई की विजय के संकेत के रूप जलाया जाता है।ताकि आप सब ये सबक सीख सकें कि आप कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों आप अगर दुराचरण करेंगे तो आपका पतन निश्चित है।

आप सबको विजयादशमी की शुभकामनाएं.

--सुशील कुमार शर्मा
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-14.01.2023-शनिवार.