साहित्यशिल्पी-मानवीय तपस्या की साकार प्रतिमा है नारी

Started by Atul Kaviraje, January 16, 2023, 09:36:35 PM

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Atul Kaviraje

                                       "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "मानवीय तपस्या की साकार प्रतिमा है "नारी"

मानवीय तपस्या की साकार प्रतिमा है "नारी" (नवरात्रि विशेष लेख )- [आलेख]- पंकज "प्रखर"--
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नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नभ पग तल में।
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में॥

     प्राचीन समय से स्त्रियों के नाम के साथ देवी शब्द का प्रयोग होता चला आ रहा है जैसे लक्ष्मी देवी, सरस्वती देवी, दुर्गा देवी आदि नारी के साथ जुड़ने वाले इस शब्द का प्रयोग आकस्मिक रूप में नही हुआ है अपितु ये नारी की दीर्घकालीन तपस्या का ही फल है | वास्तव में पुरुष में ऊर्जा का संचार करने वाली पथप्रदर्शिका को देवी कहा जाता है| आज की नारी भी अपने अंदर वो अतीत के देवीय गुण संजोय हुए है जिन्होंने समाज के समग्र विकास में योगदान दिया है |

     कहा जाता है पुरुष के जीवन में माँ के बाद नारी का दूसरा महत्वपूर्ण किरदार पत्नी का होता है| उसके इस रूप को सबसे विश्वास पात्र मित्र की संज्ञा दी जाती है| जीवन के कठिन क्षणों में जब सब नाते रिश्तेदार हमसे किनारा कर लेते है हमे अकेला छोड़ देते है धन संपत्ति का विनाश हो चूका होता है शरीर को रोगों ने जकड़ लिया होता है हम मानसिक अवसाद से ग्रस्त होते है, उपेक्षा जनित एक प्रकार की खीज और चिढ़चिढ़ापन हमारे अंदर आ गया होता है| उस स्थिति में केवल पत्नी ही होती है जो पुरुष को हिम्मत देती है| उससे कुछ और करते ना बन पढ़े तो भी वो कम से कम पुरुष के मनोबल को बढ़ाने उसे हिम्मत देकर उसमे आशा को जगाए रखने का काम तो करती ही है | वो पुरुष को पीयूष रुपी स्नेह से धैर्य बंधाती है उसके आत्मबल को जागृत कर उसके टूटे स्वाभिमान को समेटकर उसे इस लायक बना देती है की वो समाज की चुनौतियों को न केवल स्वीकार करता है अपितु सफल भी होता है|

     यदि नारी न होती तो कहाँ से इस सृष्टि का सम्पादन होता और कहाँ से समाज तथा राष्ट्रों की रचना होती! यदि माँ दुर्गा न होती तो वो कौन सी शक्ति होती जो संसार में अनीति एवं अत्याचार मिटाने के लिये चंड-मुंड, शुम्भ-निशुम्भ का संहार करती । यदि नारी न होती तो बड़े-बड़े वैज्ञानिक, प्रचण्ड पंडित, अप्रतिम साहित्यकार, दार्शनिक, मनीषी तथा महात्मा एवं महापुरुष किस की गोद में खेल-खेलकर धरती पर पदार्पण करते।यहाँ तक की राम और कृष्ण धरती पर कैसे उतरते मानव मूल्यों और धर्म की स्थापना कैसे होती | नारी व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र की जननी ही नहीं वह जगज्जननी हैं उसका समुचित सम्मान न करना, अपराध है तथा अमनुष्यता है।

     प्राचीन काल से ही नारी में लेने का नही अपितु देने का ही भाव रहा है नारी में दया, क्षम, करुना, सहयोग, उदारता, ममता जैसे भाव भरे रहते है ये दैवीय गुण उसे जन्म से ईश्वर द्वारा प्रदत्त किये जाते है| नारी के ये गुण उसे पुरुष से श्रेष्ठ सिद्ध करते है यदि नारी को श्रद्धासिक्त सद्भावना से सींचा जाए तो ये नारी शक्ति सम्पूर्ण विश्व के कण-कण को स्वर्गीय परिस्थितियों से ओत-प्रोत कर सकती है | उस देवस्वरूप नारी शक्ति को शत शत नमन.....

--पंकज "प्रखर "
कोटा (राजस्थान)
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                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-16.01.2023-सोमवार.
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