साहित्यशिल्पी-नवरात्रि पर विशेष आलेख श्रंखला-आलेख–5

Started by Atul Kaviraje, January 23, 2023, 08:50:53 PM

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Atul Kaviraje

                                    "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "नवरात्रि पर विशेष आलेख श्रंखला"

नवरात्रि पर विशेष आलेख श्रंखला - देवी भद्रकाली के नाम पर है इन्द्रावती और गोदावरी नदियों का संगम- [आलेख – 5]- राजीव रंजन प्रसाद--
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     हमारी आगे बढ़ने की गति दस किलोमीटर प्रतिघंटा के आसपास रही होगी। यह लग गया था कि भद्रकाली पहुँचने-लौटने में ही आज पूरा दिन लग जायेगा। भद्रकाली गाँव के करीब पहुँचने पर हमे एक पुलिस कैम्प दिखाई पड़ा जिसके निकट से आगे बढ़ते ही अब ग्रामीण बसाहट दिखने लगी थी। यहाँ एक पहाड़ी टेकरी पर भद्रकाली का मंदिर अवस्थित है जिसके नाम से ही गाँव को पहचान मिली है। मुझे स्थानीय पुजारी ने बताया कि प्रतिमा यहाँ पर बाद में स्थापित की गयी है और मंदिर किसी तहसीलदार द्वारा बनवाया गया है। पहले पहाड़ी टीले को ही देवी भद्रकाली का सांकेतक मान पर प्रार्थना-जात्रा संपन्न की जाती रही है। लाला जगदलपुरी ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि "मंदिर के तत्वाधान में प्रतिवर्ष त्रिदिवसीय मेला लगता है। वसंत पंचमी के एक दिन पहले मेला भरता है और दूसरे दिन मेले का समापन बोनालू होता है। बोनालू के अंतर्गत हल्दी-कुमकुम से सजे हुए तीन घड़े रखे जाते हैं। एक के उपर एक। नीचे के घट में खीर रखी होती है। बीच के घड़े में खिचड़ी रखते हैं और उपर वाले घड़े में रहती है सब्जी। उपर वाले घट पर एक दीपक जलता रहता है। कई महिलायें तीनों घड़ों को सिर पर रख कर मंदिर की परिक्रमा करती हैं। प्रदक्षिणा पूरी हो जाने के बाद हंडियों में रखी खीर, खिचड़ी और सब्जी का प्रसाद दर्शनार्थियों में बांटा जाता है। इसके अतिरिक्त तीन तीन साल में यहाँ अग्निप्रज्वलन समारोह भी श्रद्धालु शैव भक्तों द्वारा आयोजित होता रहता है। अग्निकुण्डों में अग्नि समयानुसार प्रज्ज्वलित रखी जाती है। मनौतियाँ मानने वाले लोग उपवास रखते हैं और आस्थापूर्वक अग्निकुण्डों में प्रवेश करते हैं और अंगारों पर चल निकलते हैं।"

     भद्रकाली मंदिर में दर्शन करने के पश्चात यहाँ पहुँचने वाला पर्यटन उस स्थान की और अवश्य जाता है जो दो महान सरिताओं की आलिंगन स्थली है। जहाँ गोदावरी नदी में बस्तर की प्राणदायिनी नदी इन्द्रावती समा कर अपना अस्तित्व विसर्जित कर देती है, देवी भद्रकाली के नाम पर ही इस महान संगम का नामकरण हुआ है। यह स्थल न केवल पर्यटन की दृष्टि से बस्तर को उपलब्ध एक अद्वितीय जगह है अपितु धार्मिक दृष्टिकोण से भी इसकी महत्ता है। यह दु:खद है कि तीन राज्यों की सीमा होने का लाभ होने के स्थान पर हानि ही बस्तर का यह अंतिम छोर भुगतने के लिये बाध्य है। बहुत आसान है कि नावों से गोदावरी के रास्ते कोई भी बस्तर के अनछुवे सघन जंगलों और महानतम संस्कृति तक अपनी पैठ बना सकता है या कि तैर कर ही गढ़चिरौली से भद्रकाली तक पहुँच सकता है किंतु क्यों व्यापार इस रास्ते नहीं आता? प्रगति और समृद्धि को ये रास्ते दिखाई नहीं पड़ते लेकिन बारूद बेखौफ इन्द्रावती के तटों तक पहुँच रहा है।

--राजीव रंजन प्रसाद
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-23.01.2023-सोमवार.
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