साहित्यशिल्पी-नवरात्रि पर विशेष आलेख श्रंखला-आलेख–2

Started by Atul Kaviraje, January 29, 2023, 08:51:42 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "नवरात्रि पर विशेष आलेख श्रंखला"

नवरात्रि पर विशेष आलेख श्रंखला - देवी शक्तियों का बस्तर- [आलेख – 2]- राजीव रंजन प्रसाद--
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     व्यवस्था में बदलाव वस्तुत: एक पूरी संस्कृति का पटाक्षेप भी है। बस्तर के संदर्भ में मुख्यत: दो कालखण्ड मायने रखते हैं जब इस तरह के बदलाव देखे गये। पहला समय था जब नाग राजाओं (760-1324 ई) की पराजय हुई तथा अन्नमदेव (1324-1369 ई.) सत्तासीन हुए तथा दूसरा कालखण्ड जब स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात न केवल अंगेज सत्ता द्वारा संचालित काकतीय शासन का समापन हुआ तथा इस घोर आदिवासी क्षेत्र में लोकतंत्र के चरण पड़े। इन दोनो ही समयों में बदलाव को सहज स्वीकार किया गया हो ऐसा नहीं है; अपितु बदलने वालों ने धर्म और धार्मिक मान्यताओं की आड़ ले कर ही अपनी स्वीकार्यतायें सुनिश्चित की हैं। इतिहास राजाओं के होते हैं किंतु देश-काल-परिस्थिति की प्रकृति और प्रवृति में बदलाव आम जन का ही लाया गया होता है तथापि उसकी कहानियाँ कभी भी दस्तावेज़बद्ध नहीं की गयीं। इतिहास को धर्म मान्यताओं और आस्थाओं से समझने की कोशिश यदि नहीं की गयी तो वह तलवारबाजों की जीत हार का आँकड़ा भर रह जायेगा।

     इसे समझने के लिये बस्तर अंचल की दो देवियों दंतेश्वरी तथा मणिकेश्वरी का प्रसंग लेते हैं। बस्तर में देवी महात्म्य सर्वदा से स्थापित रहा है तथापि माँ दंतेश्वरी एवं मणिकेश्वरी देवी के स्थापना समयों को ले कर विद्वानों में मतभिन्नता रही है। बस्तर राज वंशावलि (1853) में एक श्लोक विशेषरूप से ध्यान खींचता है –

नवलत्क्षनुर्धराधिनाथे पृथेवीं शासति काकतीयरूद्रे।
अभवत्परमाग्रहारपीड़ाकुचकुम्भेषु कुरंगलोचनानाम।
प्रतापदुर्ददेवस्य पुरकांचनवत्षणम।
यामात्धमहरत्कालम पुरा वै यज्ञ हेतवे।
प्रतापरुद्रनृपतिस्साक्षाद रुद्रांशसम्भव:।
शिवार्चनपरो भक्तो माणिकीशक्ति सेवित:।

     यह श्लोक वस्तुत: वारंगल के राजा प्रतापरुद्र की स्तुति की तरह ही है जो बताता है कि काकतीयों के पास प्रबल सैन्यशक्ति थी जिसमे नौ लाख धनुर्धर थे। वे धनी थे। धर्माचरणी थे। इस श्लोक की अंतिम पंक्ति कहती है कि काकतीय मणिकेश्वरी देवी के अनन्य भक्त थे तथा शिव की उपासना/अर्चना भी करते थे।

--राजीव रंजन प्रसाद
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                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-29.01.2023-रविवार.
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