साहित्यशिल्पी-सजीव व्यक्तित्व का साकार मूर्तिकार है शिक्षक

Started by Atul Kaviraje, February 06, 2023, 09:38:11 PM

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Atul Kaviraje

                                      "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "सजीव व्यक्तित्व का साकार मूर्तिकार है शिक्षक"

सजीव व्यक्तित्व का साकार मूर्तिकार है शिक्षक (5 सितंबर शिक्षक दिवस पर विशेष)- [आलेख]- डॉ. सूर्यकांत मिश्रा--
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     हमनें एक मूर्तिकार को मूर्ति बनाते देखा है। वह मूर्ति मिट्टी की हो सकती है, लोहे और सीमेंट के संयोजन से बनायी जा सकती है, टेराकोटा का भी इस्तेमाल हो सकता है या फिर प्लास्टर ऑफ पेरिस का कमाल भी मूर्ति को गढऩे में देखा जा सकता है। इन सबसे अलग प्रकार की मूर्ति गढऩे वाला यदि कोई आर्टिस्ट है तो यह केवल शिक्षक के रूप में समाज के सामने आता है। एक पेशेवर मूर्तिकार द्वारा गढ़ी गई प्रतिमा निर्विकार ही होगी। उसमें जान फूंकना उसके बस की बात नहीं। एक शिक्षक जब उसी काम को करता है, तो उसकी मेहनत और ज्ञान के गारे से गढ़ी गई मूर्ति निर्विकार नहीं, साकार रूप में समाज के सम्मुख आती है। जीवन रूपी मूर्ति को गढऩे वाला व्यक्ति एक शिक्षक ही हो सकता है। उसके द्वारा तैयार की गई मूर्ति जीवन के कठिन डगर को पार लगाने वाली मूर्ति होती है। वह पूर्णत: गतिशील, भावना और समझ से लबालब, संभावनाओं का दरिया और कर्म के मार्ग पर बढऩे वाली सजीव मूर्ति होती है। हमें यह कहने में संकोच होना चाहिए कि ज्ञान को आनंद और स्नेह में बदलने वाला, कर्म को श्रम और संघर्ष के मार्ग में प्रशस्त करने वाला तथा उपलब्धि को सुख और संतोष के सागर में गोते लगाने वाला जीवन रूपी मूर्तिकार इस संसार में केवल शिक्षक ही हो सकता है।

     वर्तमान समय में ऐसे ही गतिमान और सभ्य संसार की रचना करने वाला शिक्षक और सफल मूर्तिकार कहीं लुप्त हो गया है। सरकार की नीतियों ने एक शिक्षक के ज्ञान और ज्ञान रूपी बाज से पौधों की संकल्पना को अपने स्वार्थ की बंजार भूमि में रोपकर उसे पल्लवित होने से रोक दिया है। मुझे तो ऐसा लगता है कि 70 वर्ष पूर्व आजादी के बाद से हमारी ऐसी ही ज्ञान रूपी जाति को ताबूत में रखकर उस पर कील ठोंक दी गयी है। यही कारण है कि अब हमारे देश में रविन्द्रनाथ टैगोर, महर्षि दयानंद सरस्वती, गुरू द्रोण, विनोबा भावे, डॉक्टर राधाकृष्णन और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जैसी शिक्षकीय खान का अभाव दिखाई पड़ रहा है। इन सभी शिक्षा के शूरवीरों ने जो विचार हमारे समाज को दिये, जो बड़े-बड़े प्रयोग इनके द्वारा किये गये, उनके चलते ही इनकी एक छवि हमारे हृदय में बन गयी है। अब हम ऐसे ही चित्रकारों और मूर्तिकारों के लिए तरस रहे है। हमारा आज का शिक्षक चौक चौराहों पर लगी उपेक्षित मूर्तियों का जीवन जी रहा है। जिस तरह चौक चौराहों की मूर्तियां महज जयंती और पुण्यतिथि पर ही निखार पाती है, ठीक उस तरह हमारा आज का शिक्षक भी शासकीय आदेशों का पालनकर्ता बनकर अपने कौशल और ज्ञान का नहीं कर पा रहा है, उसे भी शिक्षक दिवस पर फूल, माला, शाल, श्रीफल तक समेट कर हमारे योजनाकार वर्तमान पीढ़ी का ही नुकसान कर रहे है।

--(डॉ. सूर्यकांत मिश्रा)
राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-06.02.2023-सोमवार.
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