मेरी धरोहर-कविता सुमन-57-मैं तिरा साया हर इक रहगुज़र से चाहूं..."

Started by Atul Kaviraje, February 07, 2023, 09:29:54 PM

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Atul Kaviraje

                                     "मेरी धरोहर"
                                   कविता सुमन-57
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "मेरी धरोहर" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- "मैं तिरा साया हर इक रहगुज़र से चाहूं..."

                          "मैं तिरा साया हर इक रहगुज़र से चाहूं..."   
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मैं नज़र आऊं हर इक सिम्त जिधर चाहूं
ये गवाही मैं हर एक आईना गर से चाहूं

मैं तिरा रंग हर इक मत्ला-ए-दर से मांगूं
मैं तिरा साया हर इक रहगुज़र से चाहूं

सोहबतें खूब हैं व़क्ती-ए-गम की ख़ातिर
कोई ऐसा हो जिसे ज़ानों-जिगर से चाहूं

मैं बदल डालूं वफ़ाओं की जुनूं सामानी
मैं उसे चाहूं तो ख़ुद अपनी ख़बर से चाहूं

आंख जब तक है नज़ारे की तलब है बाकी
तेरी ख़ुश्बू को मैं किस ज़ौंके-नज़र से चाहूं

घर के धंधे कि निमटते ही नहीं है 'नाहिद'
मैं निकलना भी अगर शाम को घर से चाहूं

--किश्वर नाहिद
बुलन्द शहर (उ.प्र.)
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--yashoda Agrawal
(Thursday, December 12, 2013)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-४ यशोदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-07.02.2023-मंगळवार.
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