साहित्यशिल्पी-तिरंगा को दलगत राजनीति से धुंधलाना !

Started by Atul Kaviraje, February 09, 2023, 10:25:23 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "तिरंगा को दलगत राजनीति से धुंधलाना !"

         तिरंगा को दलगत राजनीति से धुंधलाना !- [आलेख]- ललित गर्ग--
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     15 अगस्त मात्र तारीख, महीना या वर्ष ही नहीं है। न यह कोई जन्मदिन ही है कि हम केक काट लें, न ही यह कोई वार्षिक दिवस है कि एक रस्म के रूप में इसे मात्र मना लें। यह तो उजाला है जो करोड़ों-करोड़ों के संकल्पों, कुर्बानियों एवं त्याग से प्राप्त हुआ है। आजादी किसी एक ने नहीं दिलायी। एक व्यक्ति किसी देश को आजाद करवा भी नहीं सकता। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की विशेषता तो यह रही कि उन्होंने आजादी को राष्ट्रीय संकल्प और तड़प बना दिया।

     इस उजाले को छीनने के कितने ही प्रयास हुए, हो रहे हैं और होते रहेंगे। उजाला भला किसे अच्छा नहीं लगता। आज हम बाहर से बड़े और भीतर से बौने बने हुए हैं। आज बाहरी खतरों से ज्यादा भीतरी खतरे हैं। आतंकवाद, नक्सलवाद और अलगाववाद की नई चुनौतियां हैं- लालकिले पर फहराते ध्वज के सामने। लोग समाधान मांग रहे हैं, पर गलत प्रश्न पर कभी भी सही उतर नहीं होता। हमें आजादी प्राप्त करने जैसे संकल्प और तड़प उसकी रक्षा करने के लिए भी पैदा करनी होगी। जब तक लोगों के पास रोटी नहीं पहुँचती, तब तक कोई राजनीतिक ताकत उसे संतुष्ट नहीं कर सकती। रोटी के बिना आप किसी सिद्धांत को ताकत का इंजेक्शन नहीं दे सकते।

     125 करोड़ के राष्ट्र को लालकिले का तिरंगा ध्वज कह रहा है कि मुझे आकाश जितनी ऊंचाई दो, भाईचारे का वातावरण दो, मेरे सफेद रंग पर किसी निर्दोष के खून के छींटे न लगें, आंचल बन लहराता रहे। मुझे फहराता देखना है तो सुजलाम् सुफलाम् को सार्थक करना होगा। मुझे वे ही हाथ फहरायंे जो गरीब के आंसू पोंछ सकें, मेरी धरती के टुकड़े न होने दें, जो भाई-भाई के गले में हो, गर्दन पर नहीं। अब कोई किसी की जाति नहीं पूछे, कोई किसी का धर्म नहीं पूछे। मूर्ति की तरह मेरे राष्ट्र का जीवन सभी ओर से सुन्दर हो। लेकिन बिन राजनीति चरित्र के सबकुछ धुंधला रहा है, सून हो रहा है।

--ललित गर्ग
मौसम विहार, दिल्ली
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-09.02.2023-गुरुवार.
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