ऑल इंडिया ब्लॉगर्स असोसिएशन-नज़र खुद से जब आईने में मिलाता हूँ

Started by Atul Kaviraje, February 13, 2023, 10:45:35 PM

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Atul Kaviraje

                            "ऑल इंडिया ब्लॉगर्स असोसिएशन"
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मित्रो,

     आज सुनते है, "ऑल इंडिया ब्लॉगर्स असोसिएशन" इस ब्लॉग के अंतर्गत, एक लेख/कविता.

                            नज़र खुद से जब आईने में मिलाता हूँ--
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नज़र खुद से जब आईने में मिलाता हूँ,
अपने पर खुद ही मुस्कराता हूँ,
देखता हूँ बदलते चेहरे को,
न बदलते देखता हूँ, देखने वाले को,

चेहरा बदलता जाता है,
आईना बदलता जाता है,
देखने वाला वही रहता है,
वो कभी न बदल पाता  है,

रूह का यही तो आलम है,
चेहरा बदलता जाता है,
देह बदलती जाती है,
रूह न बदल कर आती है,

रूह की इतनी फिजा है,
देखो गौर से न खिजा है,
पर भर चेहरे की लगी है,
रूह तो सामने खड़ी है,

आखों के पीछे से झांकती है,
मुँह के पीछे से बोलती है,
कान के पीछे से सुनती है,
नाक के पीछे से सूंघती है,

रूह के बल पर ही देह खड़ी है,
बिन रूह देह हमेशा गिर पड़ी है,
रूह का निशान पहचान लो,
देह के पीछे रूह को जान लो,

                                  ------- बेतखल्लुस

--Brahmachari Prahladanand
(गुरुवार, 15 दिसंबर 2011)
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   (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-allindiabloggersassociation.blogspot.com)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-13.02.2023-सोमवार.
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