मेरी धरोहर-कविता सुमन-65-आरज़ू का कोई वरक़ खोलें...

Started by Atul Kaviraje, February 15, 2023, 10:36:46 PM

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Atul Kaviraje

                                     "मेरी धरोहर"
                                   कविता सुमन-65
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मित्रो,

     आज पढेंगे, ख्यातनाम, "मेरी धरोहर" इस शीर्षक अंतर्गत, मशहूर, नवं  कवी-कवियित्रीयोकी कुछ बेहद लोकप्रिय रचनाये. आज की कविता का शीर्षक है- "आरज़ू का कोई वरक़ खोलें..."

                             "आरज़ू का कोई वरक़ खोलें..."   
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आंसुओं में उमस की रुत घोलें
आरज़ू का कोई वरक़ खोलें

कल तो मंज़िल दिखायी देती थी
आज किस आसरे पे पर तोलें

बांटता कौन दर्द किसका है
लोग ख़ुद अपनी सूलियां ढो लें

रतजगा उम्र भर मनाया है
अब तो ऐ सांस की थकन सो लें

कोई अपना सा हो तो कुछ हम भी
आदमी की तरह हँसें-बोलें

बावफ़ा चांदनी न धूप 'अहक़र'
ये तहें भी ख़याल की खोलें

--स्वर्गीय भगवती प्रसाद 'अहक़र' काशीपुरी
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--yashoda Agrawal
(Friday, November 08, 2013)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-४ यशोदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-15.02.2023-बुधवार.
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