साहित्यशिल्पी-बस्तर के पेड़-पौधें देश में पर्यावरण प्रबंधन

Started by Atul Kaviraje, February 17, 2023, 10:48:06 PM

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Atul Kaviraje


                                      "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "बस्तर के पेड़-पौधें देश में पर्यावरण प्रबंधन"

बस्तर के पेड़-पौधें देश में पर्यावरण प्रबंधन [पर्यावरण दिवस पर विशेष आलेख]- शिवशंकर श्रीवास्तव--
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सूर्य किरणों को ताक रही है,
पर्वत घाटी नाक रही है,
पेड घने है, मोड़ है घाटी,
बस्तर पथ में बंजारी घाटी.

     प्राकृतिक का उपहार बस्तर आज भी नैसर्गिक सुंदरता के लिए विख्यात है, यहाँ का वन सम्पदा देश के लिए एक विरासत है, इसे बेहतर प्रबंधन किया जाना अति आवश्यक है। इसलिए तो कांगेर घाटी (बस्तर) एशिया का प्रथम बायो स्फीयर रिजर्व था। यहाँ से अत्यधिक मात्रा में प्राप्त होने वाली विभिन्न प्रकार के वनोपज जिसमें चारबीज, लाख, कोसा, अमचूर, इमली, महूआ फूल, महूआ बीज, तिल, तेन्दूपत्ता, चरटो बीज, इमली बीज, इत्यादि जो बस्तर के आदिवासियों का जीविकोपार्जन का माध्यम है। बस्तर के जंगलों से विभिन्न जिसमें जंगली प्याज, सफेद मुसली, काली मुसली, सर्पगंधा, सतावर, हिरला, रामदतौन इत्यादि औषधि जड़ी बूटियाँ प्राप्त होती है। इसलिए छत्तीसगढ़ प्रदेश को हर्बल स्टेट कहा जाता है।

     बस्तर में जिस प्रकार से वनों पेड़-पौधों का कटाव दोहन हो रहा है, इसे देश में प्रबंधन सुनिश्चित करना आवश्यक है। बस्तर के महत्वपूर्ण पेड़-पौधों को देश में रोपण कर पर्यावरण को एक दिशा प्रदान किया जा सकता है, क्योंकि बस्तर क्षेत्र के जंगलों में विभिन्न प्रकार के फूलदार पेड़-पौंधे एवं फलदार पेड़-पौधें पाये जाते हैं, जिसे यहाँ के लोग स्थानीय नाम से जानते तथा पहचानते हैं। इन्हीं पेड-पौधों को अनुसंधान की ओर विकसित कर देश के प्रत्येक उद्यान, राष्ट्रीय, राज्य मार्गो के किनारों की ओर रोपण कार्य किया जा सकता है और पर्यावरण को सुरक्षित किया जा सकता है।

     बस्तर साल वनों का द्वीप कहा जाता है, छत्तीसगढ़ का राजकीय वृक्ष ''साल'' है। बस्तर के पौधे- मीठा नीम, कोचाई कंद, वज्रदंती, केला, छुईमुई (एक पौधा जिसे छुने से पत्ती मुरझा सी जाती है) परिजात पुष्प (एक प्रकार का लाल फूल) कनेर फूल पौधा इत्यादि। फूलदार, फलदार पेड़-मुनगा, पपीता, डूमर, आँवला, छिन्द (छोटा खजूर) जाम (अमरूद) जामुन, कुसूम इत्यादि को रोपण कर पर्यावरण प्रबंधन में जागरूकता लाया जा सकता है। यहाँ का पूरा भू-भाग वनों से अच्छादित है, वनिकी वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ताओं पर्यावरण विद के लिए शोध का विषय है, इसे लेकर देश ही नहीं विश्व स्तर पर भी काम किया जा सकता है।

                     पेड़-पौधों की विलुप्त होती प्रजातियाँ--

     बस्तर के जंगल से कई प्रकार के विद्यमान औषधि पौधे तथा पेड विलुप्त होने की कगार पर है, स्थानीय वैधराजों को औषधि पोधों आयुर्वेद दवाई के उपयोग के लिए बहुत परिश्रम करना पड़ता है, जो आस-पास स्थित जंगल में प्राप्त नहीं होते जो चिंतन का विषय है।

--शिवशंकर श्रीवास्तव
दंतेवाड़ा (छत्तीसगढ़)
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                      (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-17.02.2023-शुक्रवार.
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