II ओम नमः शिवाय II-महाशिवरात्री-कविता-6

Started by Atul Kaviraje, February 18, 2023, 11:32:18 AM

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Atul Kaviraje

                                  II ओम नमः शिवाय II 
                                       महाशिवरात्री
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मित्रो,

     आज दिनांक-१८.०२.२०२३-शनिवार है. आज महाशिवरात्री की पावन रात है.  हिंदू पंचांग के अनुसार, महाशिवरात्रि का त्योहार हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. ऐसी मान्यताएं है कि इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था. ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का धरती पर प्रकाट्य हुआ था. मराठी कविताके मेरे सभी हिंदी भाई-बहन कवी-कवियित्रीयोको महाशिवरात्री की पूजनीय हार्दिक शुभकामनाये. आईए पढते है भगवान शिवजी की कुछ कविताये-रचनाये.

     महाशिवरात्रि के महत्त्व– भारतवर्ष में महाशिवरात्रि बड़े पर्व के साथ मनाया जाता है पूरे भारत के लोग शिव जी के मंदिर को अच्छे से सजावट करते है और महिलाओं से लेकर आदमी भी ईनका पूजा करते है ओर इनके नाम से व्रत रहते है बिना दान पानी के रहते है। शिव जी की महिमा बहुत निराली है ये सभी भगवान में सेरेष्ठ माने जाते है और इनके दर्शन के लिए सब व्याकुल रहते है कि शिव जी का नाम हमेसा लेते रहते है शिव के पास अनेक शक्ति है जिसे कोई अनुमान नही लगा सकता है शिव के पास कितना शक्ति है।

महाशिवरात्रि पर कविता--
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♦ तुझें बजानी होगी डमरू की मधुर तान। ♦

भोलेबाबा आ गया तेरे पूजन का पावन त्यौहार।
तू सुन कर ही जाना भक्तों की करुण पुकार॥

तेरे जयकारे को सुनने को कितने हम तरसे।
अब तो तेरी मधुर डमरू की धुन ही बरसे॥

हेभोलेनाथ! गंगा-माँ जो समाई है जटाओं में तेरी।
बरसा दे पावन जल इसका हो जाये सुविचारों की फेरी॥

तेरा त्रिशूल करें त्रिदोष पापों का नाश समूल।
हे भोलेबाबा सब माफ कर जाना हमारी भूल॥

हे जटाधारी तेरा भोलापन सब भक्तों को ही भाए।
विषपान कर तू इस ब्रह्मांड को अमृत बरसाए॥

सुमधुर नृत्य होता जब डमरू-संग तेरा।
ब्रह्मांड में होता तब नवजीवन का सवेरा॥

बहुत तरसे भक्तों के नयन भोले अब दर्शन दो।
शिवलिंग पर दूध-जल अभिषेक से तू प्रसन्न हो॥

भक्ति से खुश होकर तू सबके दुख लेता हर।
सुर-असुर सबको ही तू प्रसन्न हो दे जाए वर॥

बसंत ऋतु में तेरा आगमन दिल को हर्षाये।
तेरे स्वागत में प्रकृति भी पुष्पों को बरसाए॥

दिलों के श्रद्धा-सुमन स्वीकार कर धरा को पावन कर जाना।
डमरू की मधुर तान पर प्रसन्नता बरसाने वाला नृत्य करते आना॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦
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                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-के एम एस राज ५१.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-१८.०२.२०२३-शनिवार
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